शुक्रवार, मार्च 02, 2012

केरला भ्रमण - वायनाड एरिया

इस श्रीमान की श्रीमती, चुन्नू भाई और हमारा होटल

हमारी सराय - ऐसे ही एक घर बनाने की तमन्ना है

भाई राग अलापते हुए

यही केरला है - बला की खूबसूरती

यही केरला है - बला की खूबसूरती

चुन्नू भाई मम्मी के साथ प्राकृतिक आनंद में मग्न

यही केरला है - बला की खूबसूरती

यही केरला है - बला की खूबसूरती

आनंद आनंद .. बस आनंद

यही केरला है - बला की खूबसूरती

आसन जमाये चुन्नू भाई

अब आप देख रहे हैं एसिया का दूसरा बड़ा डैम

केरला प्राकृतिक स्वर्ग 

बकुल-ध्यानम

कुछ मत सोचो - सिर्फ आनंद लो

चाय के बगान

बांस का जंगल

मत भूलिए आप केरला में हैं

इस पौधे का नाम नहीं पता

लेकिन इसकी सुगंध दूर दूर तक फैलती है.

केरला में इसकी खेती होती है

अब का बताएं भैया ये कौन हैं...

जलप्रपात-जहाँ चुन्नू भाई पानी से डर भूलकर नहाने लगे  

जलप्रपात-जहाँ चुन्नू भाई पानी से डर भूलकर नहाने लगे  

वायनाड वन्य जीव अभयारण्य

जहाँ हमने एक हाथी,एक बन्दर और एक मुर्गी देखी

WOW!!! Its Kerala !!!!!

चाय के बगान

बताने की जरूरत है क्या

The same - Above

चुन्नू भाई - मम्मी के साथ मस्ती


बूखो तो जाने - है न सुन्दर ?

मैसूर पैलेस - जिसे देखने ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा लोग आते हैं


मैसूर पैलेस - यकीनन अद्भुत !! अफ़सोस ..अन्दर की फोटोग्राफी मना है

अब फोटो नहीं खिंचवाऊंगा

मैसूर पैलेस का एक दरवाजा

अब तक सबसे साफ़ रेलवे स्टेशन मैंने देखा
बा-मुश्किल तीनों का एक साथ फोटो ढूंढ पाया 

रविवार, जनवरी 15, 2012

रामेश्वरम - मदुरै - कन्याकुमारी दर्शन

रामेश्वरम - रामानाथस्वामी मंदिर का गोपुरम
रामेश्वरम - राम पादम मंदिर के पास एक बिल्ली - कितने प्यार से फोटो खिंचवा रही है.
रामेश्वरम - टी वी टावर ( राम पादम मंदिर से लिया गया फोटो)

रामेश्वरम - एक सुबह

रामेश्वरम - समुद्र की लहरों में एक मछुआरा











रामेश्वरम - समुद्र के अन्दर से रामानाथस्वामी मंदिर का गोपुरम और टी वी टावर

रामेश्वरम - समुद्र की लहरों के साथ


रामेश्वरम - पम्बन ब्रिज से लिया गया दृश्य

मदुरै - मिनाक्षी मंदिर का गोपुरम

मदुरै - मिनाक्षी मंदिर का एक रखवाला


मदुरै - मिनाक्षी मंदिर का गोपुरम
कन्याकुमारी - सूर्योदय दर्शन के लिए इंतज़ार करते लोग-सूर्योदय हो चुका हैबादल के कारण दिखाई नहीं दे रहा.

कन्याकुमारी - गाँधी मंडपम - जहाँ गाँधी जी अस्थियाँ रखी गयी हैं.



कन्याकुमारी - विवेकानंद रॉक मेमोरिअल और संत तिरुवल्लुर

कन्याकुमारी - बूझो तो जाने

कन्याकुमारी - विवेकानंद रॉक मेमोरिअल और संत तिरुवल्लुर

कन्याकुमारी - लहरों से खेलता एक भाई

कन्याकुमारी - आनंदित लोग

कन्याकुमारी - अपनी डफली अपना राग वाला भाई

कन्याकुमारी -  गाँधी मंडपम -भारत माता की जय

कन्याकुमारी -  गाँधी मंडपम -भारत माता की जय

LADY RAMSON CHURCH

LADY RAMSON CHURCH

कन्याकुमारी - रामसन चर्च



कन्याकुमारी - विवेकानंद रॉक मेमोरिअल

कन्याकुमारी - विवेकानंद रॉक मेमोरिअल और संत तिरुवल्लुर

कन्याकुमारी - संत तिरुवल्लुर

बुधवार, जनवरी 11, 2012

पुरोहितवाद और भारत

बिना लाग लपेट के बता दूं कि अभी कुछ दिन पहले कांचीपुरम-तिरुपति-रामेश्वरम-मदुरै-कन्याकुमारी जाने का मौका मिला.मंदिरों में कोई आस्था नहीं, लेकिन घर परिवार वो भी ससुराल वालों के साथ था इसलिए इन तथाकथित देवालयों के पास तो जाना ही था.साथ ही सही सही जानकारी के लिए मूर्ति दर्शन की लाइन में भी लगा.


हालत देखकर बहुत दुःख हुआ.मंदिर निश्चित ही भव्य बने हुए हैं किन्तु सभी मंदिरों को तंग गलीनुमा आकार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है.मुख्य प्राचीर के अलावा एक और चाहरदिवारी जो कि मुख्य मूर्ति को घेरकर रखे है-हर जगह मिली.यह दूसरी चाहरदीवारी अगर ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि बाद में बनाई गयी है.तंग गलियारा का रूप देने का उद्देश्य ये न समझें कि तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बनाई गयी हैं.दरअसल अत्यंत भीड़ को और ज्यादा परेशान और व्याकुल करने की सफल कोशिश है.अन्यथा ये मंदिर इतने बड़े हैं कि हजारों की भीड़ को आसानी से आत्मसात कर सकें.मुख्य मूर्ति के पास तीन चार पुजारी आरती और टीके कि थाली लिए होते हैं और अगर आप 11 रुपये से कम थाली में डालते हैं तो आपको अपशब्दों के साथ बाहर भगाया जाता है.और अगर आप 100 रुपये डालते हैं तो हजारों की उस भीड़ को रोककर आपको स्पेशल दर्शन कराया जाता है.रामेश्वरम के रामानाथस्वामी मंदिर की लाइन में तो एक पंडित बोल रहा था कि पता नहीं कहाँ से ये दरिद्र चले आते हैं 10 रुपये भी नहीं डालते .ऐसा ही एक नजारा कांचीपुरम में भी मिला.बनिए की दुकान की तरह सभी मंदिरों पर आपको भगवन के अलग अलग तरह के दर्शन का रेट लिखा मिलेगा.फ्री दर्शन,स्पेशल दर्शन - 50 रुपये ,अति स्पेशल दर्शन - 100 रुपये .पूजा करने की कीमत 100 रुपये.विशेष पूजा 1500 रुपये.रथ पर भगवन की परिक्रमा 25000 रुपये इत्यादि.भगवान के नाम पर इतनी बनियागीरी मथुरा वृन्दावन में भी नहीं है.

साथ ही सभी सरकारी दफ्तरों की तरह यहाँ भी सभी मंदिरों के बाहर दलालों का एक जत्था होगा जो कि आपको 200 रुपये में 5 मिनट में दर्शन की गारंटी लेगा.कई जगह मैंने पटना के पासपोर्ट ऑफिस की तरह लाइन के बीच में लोगों को जबरदस्ती घुसते देखा.ये वही 200 रुपये की गारंटी वाले लोग थे.वहां खड़े सुरक्षा कर्मी देश के सरकारी दफ्तरों के सुर में सुर मिला रहे थे.

ये सब देखने के बावजूद क्या हमारे देश के लोग इतने मूर्ख हैं जो ये मान रहे हैं कि भगवान इन कन्दरानुमा बने घर में रहता होगा और वहां सदियों से चल रहे संस्थागत अमानवीय व्यवस्था का पालन पोषण करता होगा.भारत के सभी मंदिरों में ज्यादातर जगह कैमरे ले जाना मना है. असली कारन वहां जाकर समझ में आता है-कोई वहां हो रहे कुकृत्यों को कैदबंद न कर ले.

कहीं कहीं तो तुगलकी फरमान भी था.शरीर के ऊपर का भाग वस्त्ररहित होना चाहिए.इसके सही कारण को मैं अभी तक ढूंढ रहा हूँ.

आमतौर पर मंदिरों में नहीं जाता लेकिन शुक्रिया अपने ससुरालवालों का जिनके सौजन्य से पुरोहितवाद का असली रूप देखने को मिला.ज्यादातर मंदिरों की स्थापत्य कला का दर्शन मुख्य मंदिर के बाहर से ही किया.एक दो जगह देखने के बाद इतनी हिम्मत नहीं हुयी कि मैं इस दुर्दांत,अमानवीय,शुष्क,प्रेमहीन और सहानुभूतिरहित देवालयों के दर्शन नजदीक से कर सकूं.

घूम फिर आने के बाद इन घटनाओं का बयां अपने एक इतिहासविद मित्र तिवारी जी से किया.वो बोले संजय भाई,भारत के लिए यह खुशी कि बात है कि लोकतंत्र है.आजकल दुत्कार के साथ ही ,किन्तु एक गरीब भी मंदिर में जाता तो है.पहले मंदिर केवल अमीरों के लिए ही खुलते थे.छोटी जातियों को तो उनके पास भी फटकने नहीं देते थे.सभी मंदिरों के बनाने में गरीब निरीह जनता का ही खून लगा है.ये सारे मंदिर राजाओं ने अपने याद्कार के लिए बनवाए और अपने को शिव,विष्णु आदि का अवतार घोषित किया.ये पुरोहित आज भी यही चाहते हैं कि मंदिरों में केवल अम्बानी,अमिताभ बच्चन ,श्रीलंका के राष्ट्रपति आयें और करोड़ों देकर जाएँ.ये तो लोकतंत्र का दबाव कहिये कि आप भी वहां जा पाए.मैंने कहा ठीक कहते हो मित्र , जिस देश का निर्माण ही ऐसी संस्थाओं से हुआ और यहाँ की सरकारें इन व्यवथाओं का भरण पोषण करती हों, वहां कभी भी भ्रष्टाचार का मिटना एक सपने जैसा है.फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है.

यहाँ आकर लगता है कि बुद्ध , महावीर,कबीर ,नानक जैसे कितने संत जो पुरोहितवाद से जूझते हुए संसार छोड़ गए लेकिन हिंदुस्तान में उनकी जड़ें जम नहीं पायीं.यहाँ संस्थागत पुरोहितवाद कितना मजबूत है इस बात का अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि बुद्ध का प्रचार प्रसार चीन, श्रीलंका इत्यादि देशों में हुआ और इसके जनक भारत में नहीं.

शुक्रवार, दिसंबर 16, 2011

चेन्नई में लुंगी की तात्कालिक सार्थकता

आजकल चेन्नई में बारिश का मौसम है.हमारे एक मित्र अभी अभी गुडगाँव से चेन्नई आये हैं.कह रहे थे यार यहाँ की हालत भी काफी ख़राब है.थोड़ी देर की बारिश में यहाँ भी गुडगाँव की तरह घुटनों तक पानी भर जाता है.बाकि सब तो ठीक,घुटनों तक पानी में पैंट भी उतनी ऊपर नहीं हो सकती.मोटरसाइकिल के बंद होने का खतरा है.लेकिन यहाँ के लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती.
मैंने पूछा - वो कैसे?
बोले बिंदास, लुंगी उठाई और चल पड़े पानी में.
हम तो पैंट मेहनत करके सरका भी लें तो भी उतने गंदे पानी में चल नहीं सकते.
मेरी आँख खुल गयी.लुंगी की कितनी जरूरत है यहाँ.पुरखों ने बड़ी सोच समझकर परिधान बनाये थे.जानते थे-आने वाले बेवकूफ घर बनायेंगे लेकिन नालियों में कूड़ा  करकट भर देंगे.झीलों को पाटकर घर बनायेंगे और उसी झील का पानी जब घर में घुसेगा तो लुंगी तो उठानी ही पड़ेगी.हा हा हा हा... 

शुक्रवार, दिसंबर 02, 2011

यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे
ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीची हो जाती यह कदम्ब की डाली

तुम्हे नहीं कुछ कहता, पर मै चुपके चुपके आता
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता
वही बैठ फिर बड़े मजे से मै बांसुरी बजाता
अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हे बुलाता

सुन मेरी बंसी माँ, तुम कितना खुश हो जाती
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आती
तुमको आती देख, बांसुरी रख मै चुप हो जाता
एक बार माँ कह, पत्तो में धीरे से छिप जाता

तुम हो चकित देखती, चारो ओर ना मुझको पाती
व्याकुल-सी हो तब कदम्ब के नीचे तक आ जाती
पत्तो का मरमर स्वर सुन, जब ऊपर आँख उठाती
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितना घबरा जाती

गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती नीचे आ जा
पर जब मै ना उतरता, हंसकर कहती मून्ना राजा
नीचे उतरो मेरे भैया, तुम्हे मिठाई दूंगी
नए खिलौने-माखन-मिश्री-दूध-मलाई दूंगी

मै हंसकर सबसे ऊपर की डाली पर चढ़ जाता
वही कही पत्तो में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता
बुलाने पर भी जब मै ना उतारकर आता
माँ, तब माँ का ह्रदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता

तुम आँचल फैलाकर अम्मा, वही पेड़ के नीचे
ईश्वर से विनती करती, बैठी आँखे मीचे
तुम्हे ध्यान में लगी देख मै, धीरे-धीरे आता
और तुम्हारे आँचल के नीचे छिप जाता

तुब घबराकर आँख खोलती और माँ खुश हो जाती
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे


-सुभद्राकुमारी चौहान

बुधवार, नवंबर 23, 2011

जगजीत सिंह की याद में...

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी


उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी

फिर उसके बाद खुदा का भी नाम ले साकी

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी



फिर उसके बाद हमें तिशनगी रहे न रहे

कुछ और देर मुरौव्वात काम से काम ले साकी

उठा सुराही....



फिर उसके बाद जो होगा वो देखा जायेगा

अभी तो पीने पिलाने से काम ले साकी

उठा सुराही...



तेरे हुज़ूर में होशो-खिरद से क्या हाशिल

नहीं मय तो निगाहों से काम ले साकी

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी

बुधवार, नवंबर 16, 2011

कबीर-माया महा ठगनी हम जानी

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
 
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।

जीवन-दर्शन



स्याह रात है साया तो हो नहीं सकता,
फिर ये कौन है जो साथ-साथ चलता है



घर  घर  दोलत  दीन  ह्वै,  जन जन जाँचत जाय|
दिए लोभ चश्मा चखनि , लघु पुनि बड़ो लखाय।|

रविवार, नवंबर 06, 2011

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

(मैथली शरण गुप्त)