रविवार, मई 03, 2020

मुन्नार


बहुत कम यात्राएं पहले से तय होती हैं।मुन्नार की हमारी यात्रा भी उनमे से एक थी।हुआ यूं कि एक दिन पंकज ने कहा कि मैं साउथ घूमने जा रहा हूँ।मैंने makemytrip से 5 दिन का पैकेज लिया है।उसकी यात्रा में दो दिन मुन्नार था।मैंने कहा चलो मैं भी मुन्नार आता हूँ।घूम भी लेंगे और मुलाकात भी हो जाएगी।ट्रेन देखी।आने जाने दोनों की टिकट मिल गयी।मैप देखा तो पता चला मुन्नार के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आलुवा है।यहां से बस या टैक्सी कुछ भी मिल जायेगी जो 3-4 घंटे में मुन्नार पहुंचा देगी।

तय दिन पर हमने ट्रेन पकड़ ली और सुबह 7 बजे आलुवा उतर गए।यहां बस अड्डा रेलवे स्टेशन के सामने ही है।यहां से मुन्नार की नियमित एसी नॉन एसी दोनों प्रकार की बसें मिल जाती हैं।हमारी प्राथमिकता नॉन एसी बस थी।पहाड़ों के हवा का एक अपना आकर्षण है।एसी उस आकर्षण का गला घोंट देता है।7 बजकर 20 मिनट पर बस चल पड़ी।रास्ते मे 2 जगह दस दस मिनट के लिए रुकी।बेटी को हमेशा पहाड़ी बसों में उल्टी होती है।मुझे भी।बेटी ने उल्टी कर भी दिया।

क़रीब साढ़े 11 बजे हम मुन्नार थे।पंकज कोची हवाई अड्डे से उतरकर मुन्नार के लिए चल चुका था।बस अड्डा शहर से पहले है।लेकिन बस शहर तक जाती है।हमारा होटल बस अड्डे के पास था लेकिन अनजाने में बस के आखिरी पड़ाव शहर तक पहुंच गए।फिर वहां से ऑटो किये और होटल आये।होटल अच्छा था।जाते ही होटल वाले ने चाय ऑफर की।चाय बिना दूध की थी और अत्यंत स्वादिस्ट थी।थोड़ी देर में कमरे में गए।नहाए धोये और होटल के ही रेस्टोरेंट में खाना खाया।मौसम अच्छा था।न ही ठंड न ही गर्मी।उधर पंकज साहब भी रास्ते मे एन्जॉय करते गए मुन्नार की तरफ बढ़ रहा थे।लेकिन अभी मुन्नार पहुंचने में देर थी।हमने सोचा चलो टी म्यूज़ियम देखते हैं।

मुन्नार केरल का एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है।जैसे हिमाच्छादित हिमालय है वैसे ही चाय आच्छादित मुन्नार के पहाड़ हैं।दूर दूर जहां तक नज़र जाय सिर्फ चाय के बागान।यहां की मुख्य कंपनी देवन कानन कंपनी है जो टाटा बेवरेज लिमिटेड की सब्सडीयरी कंपनी है।जिसने कभी चाय के बागान न देखे हों उन्हें कल्पना करना मुश्किल होगा कि लाखों वर्गमीटर में फैले पहाड़ जिनपर सिर्फ चाय के बागान कितने मनमोहक होते हैं।

टी म्यूज़ियम 5 बजे शाम तक खुला रहता है।समय बहुत था।एक ऑटो वाले को पकड़े 10 मिनट में उसने म्यूज़ियम पहुंचा दिया।टी म्यूज़ियम में एक छोटी सी प्रोसेसिंग यूनिट है जहां आप चाय की हरी पत्ती से चाय बनने तक के सारे चरण देख सकते हैं।आखिर में 12 तरह की चाय बनती है वो भी एक ही पत्ती से।3 तरह के तो tea waste थे।और ये भी बिकते हैं।हमारे होटल मैनेजर ने बताया था कि वो लोग waste ही पीते हैं क्योंकि वो ज़्यादा कड़क होता है।म्यूज़ियम में टाटा टी की एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म भी दिखाई जाती है जिसमे मुन्नार के टी एस्टेट की पूरी कहानी बताई जाती है।डॉक्यूमेंट्री देखकर आपको लगेगा कि कंपनी अपने कामगारों के कितना ख़याल रखती थी।हालांकि दिखाई जानेवाली बातें पूरी तरह सच नहीं हैं।चाय के बागान में काम करने वालों का रक्तरंजित इतिहास है।मुन्नार में काम करने वाले एक डॉक्टर ने लिखा है कि चाय का एकएक पौधा मनुष्य के एक एक लाशों पर बना है।

जब चाय की कंपनी खुली तब भारी संख्या में मजदूरों की ज़रूरत पड़ी।गरीब मजदूरों को अच्छे सपने दिखाकर लाया गया।उन्हें 20 रुपये पेशगी दिए जाते थे और उनकी तनख्वाह होती थी 50 पैसे प्रतिदिन।अनुबंध ये था कि वो काम तभी छोड़ सकते हैं जबकि वो 20 रुपये कंपनी को चुकाएं।न वो चुका पाते थे न वो छोड़ पाते।शुरुआती दिनों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं थी।न जाने कितने मजदूर मर गए बीमारी से।
वर्तमान स्थिति ठीक ठाक है।प्रति दिन 450 रुपये की मजदूरी दी जाती है।बागानों ने बीच बीच मे गांव बसाये गए हैं जहाँ ये कामगार रहते हैं।इन गाँवों में बाहरी लोगों को जाने की मनाही है।क्यों, पता नहीं।शायद परदे के पीछे की कहानी न पता चले।अस्पताल भी हैं।हमने एक गांव में देखा था।

म्युज़ियम में एक चाय की दुकान भी है जहां से चाय ख़रीद सकते हैं।हम वहां लगभग 40-45 मिनट रहे।अभी दिन था।सोचा आसपास घूम लिया जाय।पैदल पैदल  चल पड़े।कई फ़ोटो लिए।कुछ आप भी देखिए।


बस में जो डोरी दिख रही है उसे कहीं से भी खींचिए घंटी बजेगी और ड्राइवर बस रोक देगा. 

केरल की बस. खिड़की पूरी तरह खुलने लायक. एकदम हवादार.हर खिड़की में शटर लगा है
जो ऊपर उठ जाता है.बारिश में नीचे गिरा सकते हैं. 

हमारे होटल में लगा एक मैप 

होटल की खिड़की से नज़ारा. सामने मुन्नार की बाजार


म्यूज़ियम के अंदर

म्यूज़ियम के बाहर

चाय का फूल 




रास्ते में कहीं धतूर दिख गया.





पंकज को फ़ोन किया।बोला मैं कलारी कला केंद्र जा रहा हूँ।शो 6 बजे से है।मैंने कहा मेरे लिए भी टिकट ले लो।मैं भी पहुंचता हूँ।एक ऑटो किये और समय रहते कलारी केंद्र पहुंचे।पंकज से मुलाकात हुई।कलारी शो एक बेहतरीन शो है जिसमे जांबाज़ खिलाड़ी अपना करतब दिखाते हैं तरह तरह के हथियारों से जैसे तलवार, भाला वगैरह।कुलमिलाकर मजा आया।फ़ोटो लेना मना था।कलारी देखने लायक है।लौटते वक़्त हम पंकज की गाड़ी से ही अपने होटल पहुंचे।पंकज परिवार ने भी हमारे यहाँ खाना खाया।


कलारी के जांबाज खिलाडी 

कलारी के जांबाज खिलाडी 


आखिर में सबने तलवारों के साथ फोटो खिंचवाई 

दूसरे दिन का प्लान था।पंकज हमारे यहां आएगा और हम साथ साथ घूमेंगे।सुबह सुबह पंकज का प्लान था टी म्युज़ियम का।मैं देख चुका था।इसलिए तय ये हुआ कि मैं थोड़ा आगे बढूँ और किसी ठिकाने पर रुक जाऊं।पंकज के आने पर साथ साथ चलें।यहीं पर हम गलती कर गए।मुन्नार के बाहर निकलते ही एयरटेल, जिओ, वोडाफोन सारे ग़ायब हो जाते हैं सिर्फ BSNL रह जाता है।नतीजा।पंकज से बात नहीं हो पाई।और पूरे दिन हम कहीं नहीं मिले।हमने एक जीप लिया और दिन भर घूमे।हमलोग माडूपेट्टी  डैम, कोंडला डैम, एको पॉइंट और टॉप व्यू पर गए।सभी एक ही दिशा में थे।टॉप व्यू पर चाय के बागानों के बीच का भ्रमण शानदार रहा।एको पॉइंट पर गोल वाली नाव पर भी बैठे।यहां ज़ोर से चिल्लाने पर आपको अपनी आवाज़ सुनाई पड़ती है।हम तो नहीं चिल्लाये लेकिन लोगों को चिल्लाते हुए और उनका एको सुना।कोंडला डैम पर भी नौका विहार किया।यहां समस्या थी कि नाव पर एक बार मे 3 लोग ही बैठ सकते थे।खैर हम बारी बारी से बैठे और आनंद लिए।शाम को मुन्नार की बाज़ार में पंकज से मुलाक़ात हुई।मिलने जुलने के बाद हम अपने अपने होटल गए।अगले दिन पंकज को सुबह सुबह मुन्नार छोड़ना था और मेरी ट्रेन रात को एर्नाकुलम से थी।गोया मेरे पास काफी समय था।सोचे सुबह कुछ बचे हुए स्पॉट देखेंगे और वापसी कर लेंगे


मुन्नार में ही एक चर्च था जो राह चलते दिख गया.हम  पहुँच गए.

1910 का चर्च

चर्च की बागवानी 

चर्च की बागवानी 



चर्च के अंदर-यहाँ भूतिया फिल्म की शूटिंग हो सकती है 


खास बात- यह मलयालम स्कूल नहीं है. 

और चल पड़े वादियों की ओर 


माडूपेट्टी 

माडूपेट्टी 

एको पॉइंट 

एको पॉइंट 

टॉप व्यू - चाय के बागान 


टॉप व्यू - चाय के बागान 


बागान में विचरण 

बागान में विचरण 

बागान में विचरण 



कुण्डला डैम 

कुण्डला डैम 


कुण्डला डैम 


कुण्डला डैम 

कुण्डला डैम 




ऐसे कई गार्डन मुन्नार में हैं जो प्राइवेट हैं. एंट्री फी लगती है. लगभग  50 रुपये. 



हमारे होटल के मैनेजर सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक पर जाते थे और जो गेस्ट भी इंटरेस्टेड होते थे अपने साथ ले जाते थे।लेकिन इसके लिए शाम को ही बताना होता था।मॉर्निंग वॉक 7-8 किलोमीटर की थी और कुछ चाय के बागान और एक गाँव से होकर जाती थी।हमलोग भी तैयार हो गए।होटल के स्टाफ ने कहा सर आपके साथ बच्चे हैं, सुबह का तापमान 15 डिग्री होता है।पैदल चलना भी 8 किलोमीटर है।इसलिए बेहतर होगा आप न जाँय।लेकिन उन्हें शायद हमारे बालकों के बारे में नहीं पता था ये बालक 16 किलोमीटर 3000 मीटर ऊंचाई पर बर्फ में चल चुके हैं।मैंने कहा आप हमारा नाम लिख लीजिये।ज़्यादा प्रॉब्लम होगी तो हम वापस लौट आएंगे।

सुबह 6 बजे हमारा भ्रमण शुरू हुआ।हम एक गांव की सड़क से होते हुए एक चाय बागान तक पहुंचे।मैनेजर साहब ने मुन्नार की कई कहानियां सुनाई।सुबह सुबह हरे भरे वादियों के बीच विचरण, अहा! हमारे साथ एक फैमिली इसराइल की, दूसरी स्विट्ज़रलैंड की और तीसरी बॉम्बे की थी।मुन्नार भ्रमण का सबसे खूबसूरत पल रहा यह मॉर्निंग वॉक।साथ वाले मुनमुन को देख चकित थे।इसके बाद होटल आये।नहाए।नाश्ता किये।और वापसी की राह ली।बाकी जगह घूमना कैंसल कर दिया।

12 बजे पास ही बस अड्डे से बस पकड़ी।

4 बजे कोचीन पहुंचे।सोचा ट्रेन में अभी समय है इसलिए कोचीन बीच चलते हैं।थोड़ी देर बैठेंगे और फिर खा पीकर ट्रेन पकड़ लेंगे।लेकिन बीच अत्यधिक बदबूदार था।हालांकि बहुत लोग वहां आनंद ले रहे थे।हम वहां नहीं बैठ सकते थे।प्लान बना चलो भाई स्टेशन पर ही बैठते हैं। मैप देखा।दो रास्ते-एक रास्ता 18 किलोमीटर और दूसरा 7 किलोमीटर।दरअसल 7 किलोमीटर वाले में बीच मे समुंदर आता है।और आधे किलोमीटर के लिए फेरी लेनी पड़ती है।हमने कहा चलो भाई फेरी भी देख लेते हैं।साढ़े सात बज चुके थे।चकित करने वाली बात ये थी कि फेरी पर एक बार मे 50 कारें, 50 मोटरसाइकिल और सैकड़ों लोग जा सकते हैं।कार किराया 50 रुपये और एक आदमी का 3 रुपये।मोटरसाइकिल का पता नहीं।हमने झट से 12 रुपये के चार टिकट लिए और फेरी के आगे खड़े हो गए।यह भी मजेदार अनुभव था।हमने एक आदमी से पूछा , भाई साहब 3 रुपये किराये में फेरी को घटा नहीं होता।उसने कहा होना तो नहीं चाहिए।फेरी प्राइवेट है।सरकार हर साल ठेके पर देती है।

फेरी से उतरते ही टैक्सी बुक की।बहुत जल्दी स्टेशन पहुंच गए।वहीं कुछ खाया।ट्रेन पकड़ी और सुबह बैंगलोर

यह रोपवे चाय के बागानों के लिए था.अब बंद है. 
सुबह-ए-मुन्नार

सुबह-ए-मुन्नार

सुबह का भ्रमण-हमारी टोली 



एक गाँव, नाम याद नहीं आ रहा 

हमारे होटल मैनेजर जिनके सौजन्य सुबह शानदार रही 

चाय बागान में जाता एक ट्रैक्टर 

अस्पताल 

अस्पताल 

बागान में जाता एक रास्ता 

लिखा है-एक बार में एक व्यक्ति ही पुल पार करे 



बागान के अंदर जाती हमारी टोली 






 - इति  यात्रा