सोमवार, अक्तूबर 24, 2016

अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ - तलत अज़ीज़

आज तलत अज़ीज़ की शानदार ग़ज़ल सुनी..लाजवाब

कैसे सुकून पाऊं तुझे देखने के बाद
अब क्या ग़ज़ल सुनाऊँ तुझे देखने के बाद

आवाज़ दे रही हैं मेरी ज़िन्दगी मुझे
जाऊं मैं या न जाऊं तुझे देखने के बाद

तेरी निगाहें मस्त ने मखमूर कर दिया
क्या मैक़दे को जाऊं तुझे देखने के बाद

आँखों से हो बयान तो साँसों को रोक लूँ
चेहरा कहाँ छुपाऊं तुझे देखने के बाद

काबे का एहतेराम भी मेरी नज़र में है
सर किस तरफ झुकाऊं तुझे देखने के बाद

मखमूर- शराब पीकर मस्त

शुक्रवार, अक्तूबर 07, 2016

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभू लब खोले हैं

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभू लब खोले हैं
पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं

दिन में हम को देखने वालो अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन ख़ुस्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं

फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मुहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं

बाग़ में वो ख़्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर
डाली डाली नौरस पत्ते सहस सहज जब डोले हैं

उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें
हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गाँ जब फ़ित्ने पर तोले हैं

इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम
खल्वत में वो नर्म उंगलियाँ बंद-ए-क़बा जब खोले हैं

ग़म का फ़साना सुनने वालो आख़िर-ए-शब आराम करो
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं

हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-"फ़िराक़"
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात

(नवा-ए-मीर = मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल)

कहें न तुमसे तो फिर और किससे जाके कहें
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात

(सियाह = काली)

सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गए हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात

दिये रहो यूँ ही कुछ देर और हाथ में हाथ
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात

-फ़िराक़ गोरखपुरी