शुक्रवार, अक्तूबर 07, 2016

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात

(नवा-ए-मीर = मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल)

कहें न तुमसे तो फिर और किससे जाके कहें
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात

(सियाह = काली)

सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गए हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात

दिये रहो यूँ ही कुछ देर और हाथ में हाथ
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात

-फ़िराक़ गोरखपुरी

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