बुधवार, नवंबर 23, 2011

जगजीत सिंह की याद में...

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी


उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी

फिर उसके बाद खुदा का भी नाम ले साकी

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी



फिर उसके बाद हमें तिशनगी रहे न रहे

कुछ और देर मुरौव्वात काम से काम ले साकी

उठा सुराही....



फिर उसके बाद जो होगा वो देखा जायेगा

अभी तो पीने पिलाने से काम ले साकी

उठा सुराही...



तेरे हुज़ूर में होशो-खिरद से क्या हाशिल

नहीं मय तो निगाहों से काम ले साकी

उठा सुराही ये शीशा-ओ-जाम ले साकी

बुधवार, नवंबर 16, 2011

कबीर-माया महा ठगनी हम जानी

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
 
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।

जीवन-दर्शन



स्याह रात है साया तो हो नहीं सकता,
फिर ये कौन है जो साथ-साथ चलता है



घर  घर  दोलत  दीन  ह्वै,  जन जन जाँचत जाय|
दिए लोभ चश्मा चखनि , लघु पुनि बड़ो लखाय।|

रविवार, नवंबर 06, 2011

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो ।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो ।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहां
फिर जा सकता वह सत्त्व कहां
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो ।
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे ।
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।।

(मैथली शरण गुप्त)