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घरेलू कारणों से घर जाने का प्लान था।पंकज फ़ोन किया कि बच्चों की दो दिन की छुट्टी है और मेरी भी।चलो कहीं पहाड़ों में चलें।चकराता का प्लान बनते बनते गंगोत्री तक पहुँच गया।अब बात हुई कि जाएं कैसे।छोटे बड़े मिलाकर 8 जने थे।चर्चा ये हुई कि इनोवा बुक करते हैं देहरादून से।पंकज ट्रेन से देहरादून आ जायेगा।फिर एक मित्र ने सलाह दी, देहरादून परेड ग्राउंड से उत्तरकाशी के लिए 10 सीटर छोटी गाड़ियाँ चलती हैं।उनको रिज़र्व करने पर वो सस्ते में चलीं जाती है।फिर उत्तरकाशी से आगे भी इसी तर्ज़ पर यात्रा की जाएगी।इसी कार्यक्रम की रेकी के लिए एक दिन परेड ग्राउंड गया. गाड़ियां सस्ती तो बिलकुल नहीं लगीं. 10 सीट के 400 के हिसाब से 4000 मांग रहीं थी. और कम करने को कोई तैयार नहीं था. मतलब बहुत सस्ता मालूम नहीं पड़ा।फिर वही इनोवा। लेकिन पता किया एक ट्रेवल एजेंसी में तो समझ आया इनोवा 8 के हिसाब से छोटी भी होगी और महँगी भी।हालाँकि बच्चे थे इसलिये एडजस्ट किया जा सकता था। हम फिर उसी प्लान में आ गए।परेड ग्राउंड से उत्तरकाशी...
देहरादून से उत्तरकाशी के लिए 10 सीटर गाड़ियां चलती हैं जिनका किराया 400 रुपये प्रति व्यक्ति है. 10 सवारी होने पर ही ये चलती हैं. उत्तरकाशी पहुँचने में 140 किलोमीटर का सफर 5 से साढ़े पांच घंटे में तय होता है. ये छोटी गाड़ियाँ रिसपन्ना पुल से भी चलती हैं. उत्तरकाशी के लिए बसें भी हैं जिनका किराया 300 रुपये है. समय वही 5 साढ़े 5 घंटे. सरकारी बस केवल दो हैं जो रेलवे स्टेशन वाले बस स्टैंड से चलती हैं. समय सुबह साढ़े 5 बजे.. और दूसरी 1030 बजे. प्राइवेट बसें परेड ग्राऊंड से 7 बजे से शायद 2 बजे तक हैं.
14 अप्रैल की सुबह सवा पाँच बजे घर से चलकर साढ़े पाँच बजे परेड ग्राउंड पहुँचे।तुरंत एक टैक्सी बुक किये।टैक्सीवाला रेलवे स्टेशन जाने को तैयार हो गया।स्टेशन पहुंचे।पंकज की ट्रेन भी आ चुकी थी।6 बजे हमारी सवारी चल पड़ी।8 बजे के आसपास सुआखोली पहुंचे।वहां चाय और आलू पराठे का नाश्ता किये।बालकों ने भारत का राष्ट्रीय भोजन "मैगी" खाया।और आगे बढ़े।
रास्ता चिन्यालीसौड़ तक कहीं अच्छा तो कहीं ख़राब है।सड़क चौड़ीकरण का काम जो चल रहा है।हिचकोले खाती गाड़ी ने सबके पेट से मैगी का वमन करा दिया।
चिन्यालीसौड़ से गंगोत्री राजमार्ग NH34 मिल गया जो शानदार है।गाड़ी फ़र्राटे से उडी और 11:15 पर उत्तरकाशी।
थकान बहुत हो गयी थी तो काशी विश्वनाथ मंदिर में आराम करने लगे।फिर हुआ कि खाना खाकर आराम करते हैं जिससे खाना थोड़ा एडजस्ट हो जाय पेट में।मन्दिर के पास ही रोटी सब्ज़ी दाल उदरस्थ करके वापस मन्दिर में आराम किये।
हमारा आज का पड़ाव सुक्खी टॉप था जहाँ हमने ठहरना तय किया था यह उत्तरकाशी से 2 घन्टे की दूरी पर था।
उत्तरकाशी में काशी विश्वनाथ दर्शन और आराम के बाद गंगोत्री जाने वाली टैक्सी स्टैंड पहुंचे।वहां भी बात बनी 2000 रुपए में।साथ ही रास्ते में गंगनानी हॉट स्प्रिंग पर थोड़ी देर रुकने की बात हुई।टैक्सी वाला बोला एक घंटा रुक जायेगा।लगभग ढाई घंटे उत्तरकाशी में ठहराव के बाद हम आगे बढ़े।गंगनानी उत्तरकाशी से 45 किलोमीटर दूर है।गंगनानी पहुंचे तो बारिश होने लगी।गंगनानी में सल्फर के पानी का एक चश्मा है जिसे दो अलग अलग कुंड में लाकर स्विमिंग पूल जैसा बना दिया गया है।एक पुरुष के लिए दूसरा महिला के लिए।महिला वाला कुंड चारों तरफ से घिरा हुआ है और दरवाज़ा भी लगा है।मौसम ठंडा हो गया था और बारिश हो रही थी इसलिए नहाने का प्लान सबने कैंसल कर दिया।थोड़ी देर कुंड में पांव डाले वही पास की दुकान में चाय पिए (जो एकदम बकवास थी) और चल पड़े अपने होटल की ओर।बारिश हो ही रही थी।इतना पक्का था कि सुबह हिमाच्छादित पर्वत हमारा स्वागत करेंगे।0415 शाम को हम अपने होम स्टे पहुंचे।
दो कमरे जो कि पहले महले पर थे हमारे लिए रिजर्व थे। बैग पटके, थोड़ा आराम किए और फिर नीचे आए चाय के लिए।होम स्टे के मालिक राम प्रकाश राणा जी ने चाय के साथ आलू की पकौड़ियां भी खिलाई, वैसे बोले थे प्याज और आलू दोनों की।लेकिन शायद उम्र हो जाने की वजह से हमे प्याज़ नहीं दिखा हो।हालांकि पकौड़ियां अच्छी थीं और चाय थोड़ी ज्यादा मीठी।
सुक्खी टॉप पर यह होम स्टे के सामने का व्यू शानदार है।दो चोटियो के बीच से बहती भागीरथी की धार सुनाई देती है। कमरों के आगे बैठने की अच्छी जगह है जहां से हम अनंत हिमालय के नयनाभिराम दृश्य का अवलोकन कर सकते हैं और अपनी आत्मा को तृप्त कर सकते हैं।जिओ और एयरटेल दोनों नेटवर्क को मैंने अच्छा पाया .रात के खाने में राणा जी ने लेंगडे की अत्यंत स्वादिष्ट सब्जी और पहाड़ी राजमा खिलाया।थक गए थे इसलिए जल्दी सो गए।
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यह एक ओवरफ्लो वाटर है. थोड़े पहले एक हाइड्रो पावर है.वहाँ नदी के पानी को रोककर बिजली बनाई जाती है. एक्सेस वाटर को यहाँ से गिराया जाता है. |
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होम स्टे से दृश्य |
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होम स्टे से दृश्य |
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पहाड़ों में इसका आनंद ही और है |
सुबह उठे तो दृश्य अद्भुत था।बारिश बंद हो चुकी थी और और चारों तरफ पहाड़ों पर बर्फ़ पड़ चुकी थी।आज का प्लान था : गंगोत्री, गरतांग गली, मुखबा, मार्कण्डेय मंदिर और अगर समय बच गया तो कुछ और आस पास।
दिनभर के लिए 2500 रुपए, में एक टैक्सी बुक किए।सबसे पहले फोटो वोटो खींचते हुए गंगोत्री पहुंचे।धूप विकट तेज़ लेकिन तापमान मात्र 8 डिग्री।पहाड़ों में ऐसा होता है।माइनस तापमान की धूप भी जला देती है।
गंगोत्री मंदिर अभी बंद था। कपाट 3 मई को खुलेंगे।दुकानों में रंगरोगन चल रहा था।कुछ खाने पीने की दुकानें खुल चुकी थीं।होटल सारे बंद थे।काफी देर रुकने के बाद दो बोतलों में पानी भर साथ ले चले।पंकज के छोटे बच्चे ने तो अपने बोतल से दो चार घूंट पी भी लिया।मैंने जब देखा तो बोला बेटा अभी इसमें रेत होगा इसलिए मत पियो, मस्त बोला मैंने तो पी भी लिया, मैंने बोला - अब पी ही लिया तो पी लिया।अब मौज करो।यूँ तो पार्थ जी का साथ उनके पेट ने घुमावदार रास्तों पर कम ही दिया.. लेकिन ये हमारे ग्रुप के बलिष्ठ सदस्य थे. बिना थके आराम से पर्वतों का विचरण करते हुए 2 दिन मौज किये.सूर्य कुंड दर्शन करते हुए वापस लौट चले।
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गंगोत्री रास्ते में |
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गंगोत्री मंदिर |
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गंगोत्री - भागीरथी |
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हमारे ग्रुप के सबसे एक्टिव सदस्य |
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अब बारी थी गरतांग गली की। गरतांग गली का गेट भैरव घाटी के पास जो पुल है वहीं पर है।यह पुल जाड़गंगा नदी पर है जो पास में ही भागीरथी में मिल जाती है। जाड़गंगा के एक तरफ एक पगडंडी है जो 1962की लड़ाई से पहले तक भारत तिब्बत का एक मुख्य व्यापारिक मार्ग थी।यह एक पैदल मार्ग था जिसपर घोड़े खच्चर वगैरह से सामान का लेन देन होता था।इस मार्ग पर एक ऐसी जगह है जहां लगभग डेढ़ सौ मीटर तक एक खड़ी चट्टान है जिसपर पगडंडी असंभव थी।इस समस्या का समाधान इस चट्टान को काटकर उसमें में से गली निकलकर किया गया साथ ही लकड़ी बिछा दी गई।कुछ जगह पर इस लकड़ी के नीचे जड़गंगा नदी ही है दो लगभग दो सौ फुट नीचे बह रही होती है।मार्ग बंद हो जाने के बाद यह लकड़ियां सड़ गई और रास्ता पूर्णतः बंद हो गया।2016 के आस पास इस लकड़ी की गली का जीर्णोधार करके पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।यही गली गरतांग गली कहलाती है।गेट के अंदर लगभग दो किलोमीटर के बाद यह लकड़ी की गली आती है और पर्यटकों के लिए यहीं तक आना अलाउड है। शुरुआती रास्ता एकदम खड़ी चढ़ाई सा है इसलिए हालत एकदम ख़राब हो जाती है।बाद में उतराई है।आते समय यह उलट हो जाता है।कुलमिलाकर दर्शनीय जगह है।बच्चों का विशेष ध्यान रखें। उछल कूद जानलेवा हो सकता है।पगडंडी बहुत चौड़ी है फिसलने का कोई खतरा नहीं।
यह स्थान गंगोत्री नेशनल पार्क के अंतर्गत है इसलिए इसकी एंट्री फीस 150 रुपए प्रति व्यक्ति है।
जादगंगा के दूसरी साइड नेलोंग वैली की पक्की सड़क है।मुख्य सड़क से नेलॉन्ग वैली 23 किलोमीटर हैं।यहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है जो उत्तरकाशी से बनता है। हम भी चाहते थे नेलोंग जाना लेकिन परमिट नहीं ले पाए।चलिए नेक्स्ट टाइम।कुल मिलाकर गरतांग गली का भ्रमण अच्छा रहा।
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पगडंडी |
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नीचे जाड़गंगा |
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GARTANG GALI - है न हवा में लटकी हुई.. |
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थके मांदे जनाब पंकज |
आगे बढ़े तो धराली में खाना खाए।अगला पड़ाव मुखबा गाँव था। गंगोत्री कपाट जब बंद होता है तो मूर्ति यहीं मुखबा गांव में एक मंदिर में रहती है और उसकी पूजा अर्चना होती है।यह मंदिर भी गंगोत्री मंदिर के जैसा ही है लेकिन छोटा है।मुखबा के लिए धराली से ही एक झूला पुल से जाया जा सकता है लेकिन सभी थक चुके थे तो टैक्सी से गए।मंदिर दर्शन के बाद हमलोग मार्कण्डेय मंदिर जो मेरी पसंदीदा जगह है वहां गए।मुखबा में श्रीमती जी की तबियत थोड़ी नासाज लगने लगी तो वो टैक्सी में ही सो गई।चुन्नू भी मम्मी के साथ रहा बाकी जन मार्कण्डेय मंदिर गए।यहां का आनंद लेते लेते शाम हो गई और हम वापसी किए अपने होटल की ओर।रास्ते में पंकज ने पकौड़ों में प्याज दिखे उसके लिए प्याज खरीदे और होटल आकर राणाजी को दिए।इसका फायदा यह हुआ कि अबकी बार पकौड़ों में थोड़ी प्याज़ दिखी।
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मुखबा का एक घर |
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मुखबा मंदिर |
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मुखबा गाँव |
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मुखबा से धराली |
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मार्कण्डेय मंदिर के पास |
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मार्कण्डेय मंदिर |
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मार्कण्डेय मंदिर के पास |
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मार्कण्डेय मंदिर |
यूँ तो अगले दिन का प्लान कंडारा बुग्याल का था जो की आना जाना 10 किलोमीटर का ट्रेक है।लेकिन गरतांग गली में हालत ख़राब हो गई थी और हिम्मत जवाब दे रही थी।प्लान बना कि कल यहीं आराम किया जाय।हमने भी हामी भरी।अगले दिन पंकज ने सत्तू के पराठे बनवाए।सत्तू झा जी ले गए थे।प्याज आ गई थी और मेरे पास 2 नींबू का ज़ब्त करने लायक स्टॉक था।फटाफट स्टॉक खत्म करने के लिए प्याज नींबू और अजवाइन युक्त सत्तू का मिश्रण तैयार करके पराठा बनाया गया।और जमकर खाया गया।10 के करीब थोड़ी हिम्मत आई।आराम का प्लान बदला।सुक्खी गांव से लगभग एक किलोमीटर ऊपर थुनेर का जंगल है।राणाजी जी ने बताया कि जंगल पार करके एक पानी का स्रोत आता है।वहां तक जाइए घूमकर आइए।हमलोग आगे बढ़े, थके,फिर आगे बढ़े।जंगल की ठंढक आनंद लिया।पेड़ पर चढ़कर फ़ोटो खींचे खिंचवाए।जंगल पारकरके आगे बढ़े लेकिन पानी का स्रोत नदारद।राणाजी को फोन किए।जवाब बोला थोड़ा और आगे बढ़िए।मैंने और चुन्नू ने निर्णय लिया 5 मिनट और चलते हैं, पानी नहीं मिला तो वापस।लेकिन चमत्कार हो गया 3 मिनट में ही पानी मिल गया।फिर क्या पानी में पैर डाले प्रकृति का आनंद और क्या..
बारिश की संभावना लगी तो वापस हो लिए।नीचे आते आते बारिश होने लगी थी और जोरदार बारिश हुई जिसका परिणाम यह हुआ कि सुबह सारे पहाड़ बर्फ से लकदक हो गए। उस दिन तो आराम का दिन ही रहा लेकिन मजा आया।
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सुक्खी गाँव |
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थुनेर के जंगल की ओर |
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सेब के बागान - सुक्खी गाँव में चारों तरफ हैं |
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थकान के बाद विश्राम |
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इस पेड़ पर सबने फोटो खिंचवाए |
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कॉमरेड चुन्नू बाबू |
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ऊपर से सुक्खी गाँव |
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गाँव के जल का मुख्य स्रोत |
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With Laughing Budhhas |
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और अगली सुबह |
आखिरी दिन हरसिल जाना था और वापसी।हरसिल गए, उस फिल्मी पोस्ट ऑफिस के दर्शन किए और वापस उत्तरकाशी।फिर दूसरी टैक्सी से शाम 6 बजे तक देहरादून।
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हमारा होम स्टे |
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हरसिल |
इति यात्रा।