बुधवार, जनवरी 29, 2020

सकलेशपुर कर्नाटका - बेट्टा भैरवेश्वर मंदिर, अब्बी फॉल, मंजराबाद किला और श्रवणबेलागोला



एक दिन यतीश तिवारी ने फ़ोन किया और कहा चलो कहीं घूमने चलते हैं शनिवार(18 जनवरी) को.बेटे का कुछ प्रोग्राम था स्कूल में इसलिए मैंने सलाह दी अगले हफ्ते यानि 25 तारीख़ की.तिवारी जी बोले कानपुर का प्लान बन रहा है, अगर नहीं गया तो चलेंगे.तुम तैयार रहना.23 तारीख को तिवारी जी ने कहा चलते हैं.प्लान ये बना कि तिवारी जी अपनी गाड़ी से चलेंगे और हम भी उसमे लद जायेंगे.इससे बढ़िया और क्या हो सकता था.मैं सोच रहा था कि कोई गाड़ी करनी पड़ेगी.
कुछ देर बाद 23 तारीख को ही तिवारी जी बोले यार साला आ रहा है.प्लान कैंसिल करना पड़ेगा.मैंने सहर्ष स्वीकार किया.वैसे भी हिन्दू धर्म में ससुराल को परमतीर्थ का स्थान प्राप्त है और ससुराल के सभी जनों को देवी देवताओं का.उसपर से साला हो तो क्या कहने. तो सहर्ष मैंने तिवारी जी के हाँ में हाँ मिलाई.कहा चलो कभी और चलेंगे.


ऑफिस से घर गया.बेटे का बहुत दिन से प्रोग्राम बन रहा है हम्पी जाने का.एकदम से सोचा क्यों न हम्पी चला जाये.जनता से सलाह ली, सभी राज़ी.अब समस्या थी आज चलें या कल.आज का ट्रेन टिकट देखा - हम्पी एक्सप्रेस में करेंट टिकट उपलब्ध था.ट्रेन 2240 रात को थी और अभी 2000 बज रहे थे.मतलब 2 घंटे 40 मिनट.स्टेशन जहाँ से ये ट्रेन चलेगी वो हमारे घर से पांच किलोमीटर ही है.मतलब जाया जा सकता है.ट्रेन टिकट बुक करने चला.फ़ोन हैंग हो गया.इस दौरान डिनर भी करने लगे और ट्रेन बुक करने की कोशिश भी.तबतक फिर से फ़ोन बजा. फिर से तिवारी जी.बोले अबे यार साला, साला नहीं आ रहा.चलो चलते हैं.फिर मैंने हाँ कहा. तय ये हुआ कि शनिवार को 6 बजे तिवारी जी चलेंगे और हेब्बाल फ्लाईओवर के नीचे से हमलोगों को पिक करेंगे.

अरे हाँ ये बताना भूल गया कि जायेंगे कहाँ.

तिवारी जी का मन सकलेशपुर जाने का था.वो भी अच्छा था.सकलेशपुर कॉफ़ी बागान के लिए प्रसिद्द है.चारों तरफ सिर्फ कॉफ़ी ही कॉफ़ी .अपने को तो तो घूमने से मतलब है.कहीं ले चलो.सकलेशपुर पहाड़ी एरिया है और सुन्दर है.हाँ अब गर्मी शुरू हो गयी है.दोपहर में ठीक ठाक गर्मी है.

25 जनवरी सुबह सवा छह बजे..

तिवारी जी का फ़ोन आया. यार गाडी स्टार्ट नहीं हो रही.लगता है बैटरी डाउन हो गयी है.कोई मैकेनिक नहीं मिल रहा.एक ने साढ़े आठ बजे आने को बोला है.अगर 10 बजे तक चल पड़े तो ठीक नहीं तो प्लान कैंसिल. पता नहीं क्यों आजकल गुस्सा नहीं आ रहा.बोला ठीक है बता देना. पोहा बनाया गया जो मूलतः बांगलादेशी डिश है(ऐसा अभी हाल ही में बीजेपी के नेता ने कहा) और खाया भी गया.इससे हमारी देशभक्ति में भी थोड़ी कमी आयी होगी. तिवारी जी से कहा एक काम करते हैं.मैं तुम्हारे यहाँ आता हूँ.तब तक तुम गाड़ी ठीक कराओ.इससे कम से कम एक घंटा तो बचेगा ही.हम लोग ओला बुक किये मेट्रो स्टेशन पहुंचे.फिर मेट्रो से एलाचेनाहल्ली स्टेशन पहुंचे.तिवारी को फ़ोन लगाया.गाडी स्टार्ट हो चुकी थी.9:30 बजे तिवारी दंपत्ति बालक के साथ अपनी गाडी से प्रकट हुयी.हमलोग अंततः चल चुके थे. चुन्नू बाबू स्केटिंग के दौरान अपने आपको घायल कर चुके थे. उनके लिए दवाई भी ली और आगे बढे. एक घंटे चलने के बाद एक शुद्ध शाकाहारी ढाबे पर नाश्ता किये और आगे बढे.सकलेशपुर से थोड़ा पहले एक और शुद्ध शाकाहारी भोजनालय में खाना खाये और सकलेशपुर पहुंचे. रास्ते में मोबाइल पर होटल भी देख रहे थे.एक होटल बाकी सभी रिसोर्ट दिख रहे थे. रिसोर्ट दूर जंगल में थे इसलिए हमारी प्राथमिकता में नहीं थे.उस इकलौते होटल में पहुंचे. पूछताछ की.कमरा ख़ाली मिला और वेबसाइट से सस्ते रेट में भी.बैग पटके और आराम फरमाने लगे. शाम को पास के एक झील में गए.फोटो शोटो लिए.पास ही में सकलेशपुर स्टेशन भी था.वहां भी चाय के लिए गए लेकिन वह एक भूतिया स्टेशन जैसा लगा.चाय की दुकान बंद मिली.सकलेशपुर बैंगलोर कनवार लाइन पर है और हासन के बाद पड़ता है.यह लाइन पहले मीटर गेज थी अब ब्रॉड गेज है.

मुश्किल 4-5 ट्रेन गुजरती हैं यहाँ से.हमारे स्टेशन पहुँचने पर वहाँ किसी कर्मचारी ने लाइट चालू की.

होटल आये, चाय पिए , अगले दो दिन का प्लान बनाये, फिर डिनर किये और सो गए.

शुरुआती प्लान केवल 25 और 26 जनवरी का था.लेकिन सबकुछ जल्दी जल्दी न हो जाय, इसलिए एक दिन और बढ़ाया गया.


सकलेशपुर बस स्टैंड के पास की एक छोटी सी झील.

सकलेशपुर रेलवे स्टेशन निकट ही है.



26 जनवरी-जय हिन्द

बेट्टा भैरवेश्वर मंदिर

ब्रेकफास्ट करते करते 9 बज गए.एकदम से मेरा मन बदला और सुझाव दिया.ट्रैकिंग छोड़ते हैं और बेट्टा भैरवेश्वर मंदिर चलते हैं.बेट्टा भैरवेश्वर मंदिर सकलेशपुर बस स्टैंड से लगभग 35 किलोमीटर है.लगभग 20 किलोमीटर तक रास्ता शानदार है और उसके बाद शानदार से थोड़ा कम.कामचलाऊ.सड़क के दोनों ओर कॉफ़ी के बागान दूर दूर तक फैले मिलेंगे.सकलेश पुर से मुदिगिरी वाली सड़क से हन्बल तक चलते है और उसके बाद बाएं वाली सड़क पकड़ लेते हैं.ज़्यादातर रस्ते पर जिओ का नेटवर्क और गूगल मैप काम कर रहा था.हन्बल से देवरुन्दा(devarunda) चलकर फिर से बाएं वाली सड़क पर चले. मेकनागड्डे(Mekanagadde) गाँव पहुंचे जिसको मंदिर का आधार कह सकते हैं. यहाँ एक छोटी सी दुकान है जहाँ ज़रूरी सामान के साथ चाय और कोल्ड ड्रिंक भी उपलब्ध है.हमने चाय पी.हालाँकि सड़क मंदिर के गेट तक बनी है लेकिन एक किलोमीटर पहले से बेहद ख़राब हालत में है और चढ़ाई भी बहुत है. इस सड़क के जीर्णोद्धार का काम शुरू होने वाला है इसलिए मंदिर के थोड़े पहले यह ख़राब सड़क भी सीमेंट की बोरियों से बंद पड़ी थी. ख़राब सड़क के बावजूद हमारी गाड़ी ऊपर तक जाने में कामयाब रही.यहाँ से करीब 100 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर पहुंचा जा सकता है. सड़क निर्माण पूरा होने के बाद  मंदिर के गेट तक गाड़ी से जा सकते हैं.

मंदिर एक दिव्य और सुरम्य जगह पर है.मेरे एक मित्र ने पूछा दिव्य आप किसे कहते हैं.मेरा जवाब था- “जहाँ बेवजह आनंद आ जाय”. चारों तरफ जंगल हो और बीच में एक छोटा सा मंदिर हो.बैठने की जगह हो.जिधर तक नज़र जाय उधर तक हरे भरे पहाड़ हों.और क्या चाहिए.मंदिर के सामने एक पहाड़ी पर कुछ लोग टहलते दिखे. मैंने वहां चलने की इच्छा जाहिर की.मेरे मित्र ने एकदम मना कर दिया.पागल हो गए हो वहाँ पहुँचने में 3 घंटे लगेंगे.शाम हो जाएगी.बेटे की भी बहुत इच्छा थी चलने की.फिर भी मन मार लिया.थोड़ी देर बैठने के बाद देखा तीन लोग ऊपर से आ रहे हैं. उत्सुकतावश मैंने पूछा ऊपर पहाड़ी पर जाने में कितना टाइम लगता है.वो बोले हाफ ऐन ऑवर. मैंने फिर कहा चलते हैं.तिवारी जी बोले एक काम करो.तुम घूम कर आओ.हम यहीं इंतज़ार करते हैं.ये बात भी ठीक थी. हम चल पड़े.15 मिनट में ही ऊपर पहुँच गए.गर्मी बहुत थी. थकान बहुत हुई.लेकिन ऊपर पहुँचकर आनंद दुगुना हो गया.ये नग्न पहाड़ हैं अन्यथा थोड़ी देर बैठ सकते थे. एक घण्टे में हम आना जाना दोनों कर चुके थे.सबने एन्जॉय किया.थोड़ी ही सही ट्रेकिंग तो हो ही गयी थी.मंदिर की ऊंचाई 1056 मीटर है और इस चोटी की 1171 मीटर.मतलब आधे किलीमीटर में 100 मीटर से ऊपर चढ़ गए.सीढ़ी की तरह.

वापस लौटे. वहां पानी का नल है जो खुल गया था और पानी बह रहा था.जल निर्मल और शीतल था.अच्छे से मुंह धोये.पानी पिया.बोतल में पानी भरे.अपने आपको ठंडा किया.फोटो खींचे और वापस चल पड़े.यहाँ शौचालय बना है लेकिन उसमे ताला लगा था.मंदिर भी बंद था.


मेकनागड्डे(Mekanagadde) गाँव - यहाँ चाय चूय पी सकते हैं-यहाँ के बाद एक किलोमीटर तक गाड़ी जा सकती है.सड़क बेहद ख़राब है. 

तिवारी जी और उनके कुंवर साहब

सूखती हुई कॉफ़ी

एकदम ताज़ी कॉफ़ी सूकजने के लिए धुप में डाली गयी है 

भैरवेश्वर मंदिर की तरफ जाती हुई सीढ़ियां

भैरवेश्वर मंदिर की तरफ जाती हुई सीढ़ियां
तिवारी दंपत्ति

भैरवेश्वर मंदिर-गूगल के कुछ पुराने फोटो में चारों तरफ के चबूतरे नहीं हैं.
मंदिर के अंदर टाइल्स लगी हैं और साफ़ है.मतलब पूजा पाठ होता होगा अभी.

भैरवेश्वर मंदिर से सामने की चोटी-ज़्यादा से ज़्यादा एक किलोमीटर.चढ़ाई जबरदस्त है.बरसात में जाना थोड़ा मुश्किल होगा. कुछ पुराने फोटो देखकर लगा पहले चोटी के नीचे तक जीप जा सकती थी.अब रास्ता नहीं है.

चोटी पर कुछ लोग.इन्हे देखकर और फिर पूछकर हमलोग जा पाए.

मंदिर और उसके आस पास


मंदिर और उसके आस पास

मंदिर और उसके आस पास
मंदिर और उसके आस पास

हमारी सम्पूर्ण टोली

मंदिर का एक गेट ऐसा भी

चोटी के तरफ जाते हुए मंदिर का नज़ारा

चोटी के तरफ चढ़ती और हांफती हुईं श्रीमती जी

चोटी पर से मंदिर

चोटी के ऊपर एक और चोटी से लिया गया चित्र.नीचे श्रीमती जी, मुनमुन और दिव्य जी हैं.

नीचे उतर आये और फिर से एक फोटो लिए जहाँ गए थे.

वापसी
मगझल्ली फॉल/अब्बी फॉल/ हन्बल फॉल
(Not Abbey Fall)अब हमारा अगला पड़ाव मगझल्ली फॉल/अब्बी फॉल/ हन्बल फॉल था. ये सभी एक ही फॉल के नाम हैं.यह फॉल सकलेशपुर से 21 किलोमीटर है इसके आगे 14 किलोमीटर भैरवेश्वर मंदिर है. मतलब हमारा अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर था. यहाँ पहुँचते पहुँचते 1 बज चुका था.सबने फॉल में एन्जॉय किया.पानी ज़्यादा नहीं था लेकिन कम भी नहीं था.2:30 बजे यहाँ से चले.





मंजराबाद किला

सबको भूख लग चुकी थी. प्रथम काम खाना था और उसके बाद मंजराबाद किला.किले से 2 किलोमीटर पहले सम्राट ग्राण्ड होटल दिखा.शुद्ध शाकाहारी भोजन मिला और अत्यंत स्वादिष्ट भी.किला सकलेशपुर बस स्टैंड से 4 किलोमीटर की दूरी पर है. 4 बजे के क़रीब किले पहुंचे.किला ऊंचाई पर है और अंदर जाने के लिए 250 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.हम 4:15 पर किले के अंदर थे.किला जीर्ण शीर्ण है.टिकट नहीं लगता.8 बजे से पांच बजे तक खुला रहता है. किले के अंदर या बाहर कहीं भी शौचालय नहीं है.नीचे सड़क के किनारे एक शोचालय बना है लेकिन अभी उसका उद्घाटन नहीं हुआ है.ताला लगा है. बेटी के पेट में प्रेशर बना और शौचालय ढूढ़ते ढूंढते सड़क की शरण लेनी पड़ी.कमाल की बात ये है कि कम से कम 50 दुकाने हैं लेकिन एक भी शौचालय नहीं. सरकार न सही कम से कम इन दुकान वालों को ही कोई व्यवस्था करनी चाहिए. यहाँ कोई जंगल झाड़ भी नहीं विशुद्ध हाईवे है.
सड़क से किले की तरफ जाता रास्ता

250 सीढ़ियां


एक चेतावनी




भारतीय इलायची अनुसन्धान संस्थान - किले से थोड़ी दूर सकलेशपुर की तरफ है

भारतीय इलायची अनुसन्धान संस्थान के अंदर 
वापस होटल लौटे.आराम किये.7:30 बजे यहाँ के प्रसिद्द मंदिर सकलेश्वर मंदिर गए. हेमवती नदी के किनारे भी एक सुन्दर मंदिर है.वहां से तारे एकदम साफ़ नज़र आ रहे थे.दिल्ली बैंगलोर जैसे शहरों में ये नज़ारे कभी नहीं दिखते.बेटे ने सप्तर्षि और ध्रुवतारा ढूंढने की कोशिश की.
खाना खाये और सो गए.जबरजस्त नींद आयी.

27 जनवरी-श्रवणबेलागोला
श्रवणबेलागोला बैंगलोर से 150 किलोमीटर दूर है और सकलेशपुर से 80 किलोमीटर.सुबह नाश्ता करके 9 बजे चल पड़े और सीधे श्रवणबेलगोला पहुंचे.यह एक प्रसिद्द जैन तीर्थ है.पहाड़ी पर जैन मंदिर है.पहाड़ी को काटकर सीढ़ियां बनाई गयी हैं.गर्मी शुरू हो चुकी है.मोज़े बेचने वाले डरा रहे हैं कि पाँव जल जायेगा इसलिए मोज़े ले लो.ऊपर जूते चप्पल ले जाना मना है.लगभग 700 सीढ़ियां हैं ऐसा स्थानीय लोगों ने बताया.लेकिन सीढ़ियां छोटी छोटी हैं इसलिए चढ़ना ज़्यादा मुश्किल नहीं है.यहाँ सभी प्रकार की जन सुविधायें उपलब्ध हैं.श्रवणबेलागोला के बारे में इंटरनेट पर बहुत जानकारी सहज उपलब्ध है. हम भी मंदिर देखने गए.ऊपर चढ़ने में लगभग 20 मिनट और नीचे उतरने में 10 मिनट लगते हैं.कुलमिलाकर एक घंटे में आप इस पहाड़ी को देख सकते हैं.यहाँ और भी जैन आकर्षण हैं लेकिन हम बैंगलोर के जाम से बचना चाह रहे थे. इसलिए लौट पड़े.रास्ते में खाना खाया. NICE रोड से पहले यतीश को विदा कहा, पुनः ओला की सेवा ली और शाम 6 बजकर 20 मिनट पर घर.






लगभग 700  सीढ़ियां








श्रवणबेलागोला की सीढ़ियां चढ़ने के बाद थकी हारी जनता

और अंत में दुर्लभ चित्र - सौजन्य - तिवारी जी की तिवराइन जी
-इति यात्रा.