गुरुवार, अगस्त 08, 2019

ऐतिहासिक फिल्म शोले का शूटिंग स्थल(रामनगरम) और गिद्ध अभयारण्य




"तुम्हारा नाम क्या है बसंती?"
"कितने आदमी थे"
"यहाँ से पचास-पचास कोस दूर जब बच्चा रात को रोता है तो माँ कहती है सो जा बेटे नहीं तो गब्बर आ जाएगा."
"इतना सन्नाटा क्यों है भाई"
"तेरा क्या होगा कालिया...सरदार मैंने आपका नमक खाया है... तो अब गोली खा"
"जेल में चक्की पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग."
"बहुत कटीली नचनिया है"
"मेरा नाम सूरमा भोपाली एसे ही नहीं है."

अरे रे रे...आप सोच रहे होंगे कि मैं ये फिल्म शोले के डायलॉग्स धड़ाधड़ क्यों लिख रहा हूँ।तो मित्रों आज की ये पोस्ट इसी ऐतिहासिक फिल्म से सम्बंधित है।ये सारे अमर डायलॉग्स सलीम जावेद की जोड़ी ने फिल्म शोले के लिए लिखे थे।यह एक ऐसी फिल्म है जिसे मैं जब भी टीवी पर देखता हूँ थोड़ी देर तो ठहर ही जाता हूँ।इसका एक एक डायलॉग तो लोगों की ज़ुबान पर आज तक चिपके हुए हैं ही, एक एक चरित्र आज तक जीवंत है।छोटे से छोटा चरित्र भी अभी तक जेहन में है, याद कीजिये कौन याद नहीं आ रहा आपको, सूरमा भोपाली, अंग्रेजों के ज़माने का जेलर, मौसी, छोटे से रोल में सचिन, इमाम चाचा, कालिया, साम्भा, जेलर का जासूस वगैरह वगैरह सभी ऐसे याद आते है जैसे कल ही फिल्म देखकर आये हों।एक ऐसी फिल्म जिसे "हम आपके हैं कौन" फिल्म से पहले तक सबसे ज़्यादा पैसे कमाने वाली फिल्म का ख़िताब प्राप्त है।शोले के वीडियो कैसेट की तो रिकॉर्ड बिक्री तो हुई ही थी पूरी फिल्म के ऑडियो की भी रिकॉर्ड बिक्री हुई थी.जी हाँ सिर्फ गाने नहीं पूरी फिल्म का ऑडियो.फिल्म में एक कौव्वाली भी थी जो हटा ली गयी.

वैसे तो सबको पता है फिर भी बताता हूँ।जब यह फिल्म बनी तब 3 घंटे 24 मिनट की थी और अंत में ठाकुर गब्बर को मार देता है।जब यह रिलीज़ हुई तब 3 घंटे 14 मिनट की थी और अंत में गब्बर को पुलिस हिरासत में ले लेती है।यू ट्यूब पर दोनों ही वर्शन ऑफिशियली उपलब्ध हैं।

अब आते हैं असल मुद्दे पर।जब हम कुछ दिन पहले रंगनाथीट्टू बर्ड सैंक्चुअरी जा रहे थे तब रामनगरम रुके थे तब यकायक याद आया कि यहीं कहीं शूटिंग हुई थी शोले की।वक़्त मिलेगा तो चलेंगे।उस दिन तो वक़्त नहीं मिला।इस शनिवार को सोचा कहीं घूमने चलते है.बेटी से पूछा तो बोली ज़ू देखना है।शनिवार को उसका स्कूल था एक घंटे के लिए।11 बजे जब चलने लगे तो बोली उतना दूर नहीं जाना।थोड़ी इच्छा हमारी भी नहीं थी,नहीं गए।घर आकर प्लान बना कल यानि सन्डे को कहीं चला जाए।मेरी इच्छा थी शोले के शूटिंग वाली जगह देखने की और बेटी की ज़ू की।प्लान बना पहले शोले वाली जगह चलते है।वहां कुछ तो है नहीं।आधे घंटे रुकेंगे।और हाँ कभी आपने गिद्धों के अभयारण्य के बारे में सुना है?हम वहां भी चलेंगे.  फिर चल देंगे ज़ू की ओर।शाम तक ज़ू देखेंगे और वापसी।

जाने का रूट भी मैसूर रोड वाला न लेकर हेब्बाल, आउटर रिंग रोड, मगाडी रोड चंद्रप्पा रोड होते हुए मंचन्बेले और फिर अक्रावती नदी के किनारे किनारे रामनगर।

मैसूर रोड होते हुए मेरे यहाँ से दूरी 72 किलोमीटर है और इस रूट से 74 किलोमीटर।और फिर गाँव गिरांव से होकर ग़ुज़रने का मजा ही कुछ और है।मगाडी रोड छोड़ते ही पहाड़ियां साथ साथ चलती हैं और शानदार नज़ारा होता है।मंचन्बेले में एक वाटर रिजर्वायर भी है जो अक्रावती नदी को बांधकर बनाया गया है।यह जल संग्रह उस एरिया को पेय जल आपूर्ति करता है।मैप देखा तो सोचा वहां भी फोटो वोटो खींच लेंगे।

सुबह उठे 6 बजे।नहाते धोते नाश्ता करते 7:30 बज गए।7:45 पर हमारी सवारी चल पड़ी ।लगभग 9:30 बजे पहुंचे मंचन्बेले गाँव।वहां एक जगह ऊंचाई पर है जहाँ से डैम शानदार दिखेगा, ऐसा गूगल में लिखा था। हम भी उसी जगह रुके।टॉप पर गए और कुछ फोटो भी लिए। नीचे उतरते समय श्रीमती जी फिसल गयीं और जोरदार चोट लगी।पाँव में चोट अभी तक है।और हाँ डैम के पास जाना मना है।लेकिन अगर आप उनके संतरी को 50 रुपये देंगे तो वो गेट खोल देगा।हम नहीं गए।हिलटॉप से जो नज़ारा दिखेगा वो डैम से थोड़े दिखेगा।बालकों को भूख लग गयी और हम इडली ढूंढने लगे।डैम के एक गेट पर एक दुकान वाले से पूछा तो उसने थोड़ा पीछे जाने को बोला।हम पीछे के बजाय आगे बढ़ने की सोचे क्योंकि मैप रामनगर 35 मिनट बता रहा था।बालकों को मनाये कि आधा घंटा और रुक जाओ फिर रामनगर रोटी चावल वगैरह खाएंगे।बालक ने कहा वैसे तो आगे बढ़ो लेकिन मैं खाऊंगा इडली ही।हम आगे बढे।यही से सारा रास्ता अक्रवती नदी के किनारे किनारे है और नदी के पार हरी भरी पहाड़ियां हैं।नदी के किनारे नारियल और केले की भरपूर खेती दिखी।शानदार नज़ारे थे।हम उन नज़ारों को भर भर नज़र देखते बढे जा रहे थे।

मंचन्बेले से रामनगरम लगभग 20 किलोमीटर है।जब पास आये तो सड़क धूल भरी हो गयी और हम मैसूर हाईवे पर रामनगरम थे।यहीं से 2.5 किलोमीटर दूर शोले की शूटिंग वाली जगह है।पक्की सड़क बनी है।
रामनगर आते आते मुनमुन भूख से बेहाल हो गयी।फटाफट एक फलवाले के यहाँ से फ्रूट चाट लिए।फ्रूट्स जबरदस्त जायकेदार थे।सभी ने खाया।फिर जान में जान आयी।अब बारी थी रेस्टोरेंट ढूंढने की।आस पास कोई नज़र नहीं आ रहा था।गूगल किया तो वो लगभग एक दो किलोमीटर दूर बता रहा था।वहाँ एक पकौड़ी वाला था।उसके यहाँ पकौड़ियाँ खाईं गयीं।पानी पिए और रामदेवरा बेट्टा की ओर चल दिए।रुको भाई.. ये कहाँ चल पड़े, अभी तो शोले देखने जा रहे थे...तो भाई शोले देखने ही चलेंगे।दरअसल उस जगह का नाम रामदेवरा बेट्टा ही है।बेट्टा कन्नड़ा में हिल को कहते हैं।

12 बजे हम वल्चर सैंक्चुअरी(गिद्ध अभयारण्य) के गेट पर थे। ...अब फिर गड़बड़ किये...।...कहाँ जा रहा है बे...।तो फिर बताता हूँ, वो पूरा इलाक़ा गिद्धों का अभयारण्य है।कभी ढेर सारे गिद्ध रहते थे।अब काफी कम हो गए है।हमें एक भी नहीं दिखे।हाँ रास्ते में एक जगह सैकड़ों बाज देखे।फोटो लिया लेकिन अच्छे नहीं आये इसलिए बाजों का फोटो यहाँ नहीं लगाएंगे।अब क्योंकि यह सैंक्चुअरी है तो टिकट भी लगेगा।वयस्क 25 रुपये, बालक 10 रुपये स्कूटर के 10 रुपये।कुल 90 रुपये लगे।गेट से पार्किंग 700 मीटर अंदर है जो थोड़ी चढ़ाई चढ़कर है।यहाँ शोले फिल्म का कोई अवशेष नहीं रह गया है।बीबीसी के अनुसार फिल्म की शूटिंग खत्म होते ही गाँव को उजाड़ दिया गया था और बहुमूल्य सामानों को वहीँ बेच दिया गया।यहाँ दो फिल्मों की शूटिंग हुई है "शोले " और "पैसेज टू इंडिया".वहां वन अधिकारी के अनुसार इन दोनों फिल्मों से गिद्धों को बहुत नुकसान हुआ और उनकी संख्या में भारी घटोत्तरी हुई।

इस जगह को एक शब्द में कहूँ - मनोरम।मन शीतल कर देने वाला।रविवार होने की वजह से कुछ लोग भी थे अन्यथा बहुत कम लोग आते हैं यहाँ।जहाँ पार्किंग है वही पर शौचालय है।एक छोटी सी दुकान जिसपर चिप्स और पानी की बोतल थी।पहाड़ी पर एक बेहद सुंदर राम मंदिर है जिसकी सीढियां यहीं पार्किंग से शुरू होती हैं।पहाड़ों की सीढ़ियां बहुत तकलीफ देती हैं।400 सीढियां चढ़ने में हमारी हालात खराब हो गयी।मंदिर बेहद सुरम्य जगह पर है।मंदिर में भंडारा चल रहा था ।रसम और चावल।मंदिर के पास पीने का पानी उपलब्ध है और शौचालय भी है।मंदिर के बगल से ही रास्ता पहाड़ी की चोटी पर जाने वाला रास्ता है।500 मीटर हरी भरी चढ़ाई  चढ़ने के बाद एक खड़ी चट्टान है जो लगभग 200 मीटर होगी।उसे काटकर सीढियां बनाई गयी हैं और लोहे की रेलिंग लगाई गई है।यह बेहद रोमांचक है।ज़्यादातर लोग फिसलने के डर से नंगे पांव चढ़ रहे थे।हम तो जूते के साथ ही गए।बेटी भी चढ़ गयी।लोग उसे देखकर चकित थे, क्योंकि बच्चे तो थे लेकिन कोई भी डर के मारे ऊपर नहीं ले जा रहा था.।अगर आप जूते के साथ चढ़ रहे हैं तो बेहद सावधानी बरतें.जूते फिसलने वाले न हों.गिर गए तो इहलीला तो समाप्त नहीं होगी लेकिन शरीर छिन्न भिन्न ज़रूर होगा.

ऊपर पहुंचे तो अद्भुत नज़ारा था। एक पानी का कुंड भी था.वैसे तो जबसे यहाँ आया हूँ ठंडी हवा से परेशान हूँ.लेकिन ऊपर ये हवा आंधी की तरह लग रही थी.बेटी तो बोली मैं तो उड़ ही जाउंगी.खूब सारे फोटो लिए.आधे घंटे रुके.

अब बारी उतरने की थी.उतरना ज़्यादा चैलेंजिंग था.जब मुनमुन उतरने लगी तो नीचे के लोगों के लिए किसी सेलेब्रेटी से कम नहीं थी.लोग धड़ाधड़ फोटो ले रहे थे.दो लोग हमारे लिए ऊपर आये और बेटी को उतरने में मदद किये.धन्यवाद सभी का.नीचे आते आते 2 :15  बज गए. ज़ू जाना संभव नहीं था.बेटी भी किसी और दिन जाने के लिए तैयार हो गयी.भूख ज़ोरों की लगी थी.वापस लौटे.अबकी बार मैसूर रोड लिए.प्लान किये जो सबसे पहला ढाबा दिखेगा उसी में खाना खाएंगे.2:45 पर पहुंचे "De Parathzzaa Cafe ". बढ़िया रोटी चावल पनीर और दाल खाये.इडली यहाँ नहीं मिली.3:30 पर यहाँ से चले और 5:45 पर घर.अब थोड़े चित्र देखिये।


मगाडी रोड से बाएं मुड़ने के बाद एक गाँव के बाहर एक मंदिर

मंचनाबेले जल संग्रह


मंचनाबेले जल संग्रह

मंचनाबेले जल संग्रह को देखने हिल टॉप पर जाते हुए 

मंचनाबेले जल संग्रह को देखने हिल टॉप पर जाते हुए 


इस कमल के तालाब का फोटो मुनमुन के कहने पर लिया गया

रामनगरम  जाने का रास्ता अक्रावती नदी के किनारे किनारे

रामनगरम  जाने का रास्ता अक्रावती नदी के किनारे किनारे


और ये पहुंचे रामनगर..यहाँ हमने फ्रूट चाट खाये . और सामने हनुमान जी हैं उनके नीचे से शोले की शूटिंग वाली जगह का रास्ता जाता है.

 हनुमान जी हैं उनके नीचे से शोले की शूटिंग वाली जगह का रास्ता जाता है.

पहुँच गए

रामदेवरा बेट्टा गिद्ध सैंक्चुअरी के जानकारी


राम मंदिर जाने का द्वार - यहाँ से 400 सीढ़ियों के ऊपर मंदिर है. 

मंदिर की ओर चढ़ती हुई सीढ़ियां

मंदिर की ओर चढ़ती हुई सीढ़ियां

मंदिर के थोड़े पास.

मंदिर के पास से लिया गया चित्र

और ये रहा राम मंदिर

ये पास में एक खूबसूरत विश्राम स्थल है 

चोटी पर जाने के रास्ते में 


चोटी पर जाने के लिए बनी बेहद खतरनाक सीढ़ियां.ज़्यादातर लोग यहाँ आकर लौट जा रहे थे.

और ये पहुंचे चोटी पर

चोटी से नीचे का दृश्य


चोटी पर एक छोटा तालाब 


चुन्नू बाबू बमुश्किल अपना फोटू खिंचवाते हैं.

चोटी से रामनगरम 




बाप रे... पेट मटका बनता जा रहा है.आज समझ आया..





यह एक और हिल है पास में.कहते हैं गिद्धराज जटायू रावण से लड़ते लड़ते उसी पर गिर पड़े थे. वहां एक मंदिर भी है.झंडी तो आपको दिख रही है.वहां जाना कठिन हैं और मना भी. कारण, अभी हाल ही में एक प्रेमी युगल कूदकर....

उतरने की तैयारी


उतरने लगे . दो लोग नीचे से ऊपर चुन्नू मुन्नू की मदद करने आ रहे हैं.



आस पास की हरियाली





मंदिर सामने से.एक बात मैंने गौर किया है.यहाँ कर्णाटक में राम और हनुमान मंदिर बहुत हैं जबकि तमिलनाडू में नहीं या बेहद कम..इसका मतलब ये कि राम का प्रभाव इस इलाके में ज़्यादा था.

मंदिर से नीचे की ओर जाती हुई वही सीढ़ियां..



गिद्ध तो दिखे नहीं लेकिन वहां बने सूचना केंद्र से कुछ चित्र ज़रूर ले लिए.








ये सारे चित्र वहीं के हैं.मतलब वहां हाथी..तेंदुआ और भालू भी पाए जाते थे..


यहाँ पर पेट पूजा..खाना बहुत अच्छा था..और जगह तो आप देख ही रहे हैं..

रेस्टोरेंट के पास-हमारी दोनों स्कूटियां...


और ये रहा हिलटॉप का वीडियो..

अगर आप शोले देखने जा रहे हैं तो निराश होंगे..लेकिन जगह शानदार है..इसलिए ज़रूर जाइये..शोले फिल्म एक बार देखकर जाइये..कुछ पहाड़ियां पहचान में आ जाएँगी..चुनु मुन्नू तो रोज़ आजकल अंग्रेज़ों के ज़माने वाला जेलर और सूरमा भोपाली -  दृश्य देखते हैं और खूब हँसते हैं..

-इति यात्रा