रविवार, अक्तूबर 21, 2018

चकराता ट्रिप - टाइगर फॉल, गौराघाटी, पांडव गुफा, लाखामंडल, कृष्णा फॉल और वापसी

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हमारी यात्रा का आखिरी दिन था.2 अक्टूबर, गाँधी/शास्त्री जयंती, मंगलवार. और पहले से तय था कि बस 7 बजे चलेगी.लेकिन पकौड़ियाँ खाते खाते कुछ समय ज़्यादा हो गया और हम चल पाए 7:45 पर. टाइगर लॉज की विशेषता यह है कि यह एक बेहद शानदार लोकेशन पर है. सनराइज देखने के लिए आपको कहीं जाना नहीं पड़ेगा.टाइगर फॉल जाने की पगडण्डी भी ठीक सामने है.तो कुछ फोटोज हम सनराइज के खींचे.नीरज ने हमें पहले ही बताया था कि हम लाखामंडल कम रुकेंगे.उसके रास्ते का आनंद लेंगे और जमकर फोटोग्राफी करेंगे.हम चले और बस थोड़ी ही दूर पर शानदार प्राकृतिक गेंदे का बागान सड़क के दोनों तरफ.अहा..इन नज़ारों के बारे लिखना तो नीरज गुरु जैसे लेखकों का काम है हम तो बस उस अनुभूति से ही आनंदित थे.वहां हम चित्र विचित्र मुद्राओं में फोटोग्राफी किये.

मंगलवार, अक्तूबर 16, 2018

चकराता ट्रिप - चकराता और टाइगर फॉल


अपनी इस चकराता भ्रमण की चरचा जब मैंने एक सहकर्मी से की तो उन्होंने कहा, अरे आप तो सारा जौनसार घूम कर गए. मेरे लिए यह एक नया शब्द था. जब पूछताछ की तो पता चला कि चकराता को दो हिस्सों में बांटा जाता है-जौनसार और बावर. जौनसार निचला हिस्सा है और बावर ऊपरी हिस्सा. चकराता एक आर्मी कैंटोनमेंट एरिया है.यहाँ अभी भी रूल्स रेगुलेशंस आर्मी से नियंत्रित हैं.नया मकान बनाने की लगभग मनाही है.मकान में बदलाव के लिए भी आर्मी के परमिशन की ज़रुरत पड़ती है. लगभग लैंसडाउन की तरह. चकराता से आगे का एरिया 2-3 साल पहले तक एकल दिशा मार्ग था.मतलब एक टाइम पर एक ही दिशा में गाड़ियां चलेंगी.कालसी के पास एक गेट था जो सात बजे सुबह खुलता था.इस गेट को हर ढाई घंटे पर खोला जाता था.और भी पाबंदियां थीं.कालसी से सहिया 18 किलोमीटर है और हर गाडी को इसे 1 घंटे में ही पार करना होता था.मतलब अगर आप चले 7 बजे और सहिया पहुंचे 7:30 बजे.आपको सहिया में रुके रहना पड़ता था 8 बजे तक.कुल मिलाकर आपकी ऐसी की तैसी.हालाँकि यह कवायद रोड काफी पतली होने के कारन था.अब सड़क अच्छी है और इस तीन पांच की ज़रुरत नहीं. शायद हुक्मरानों को इस बात का अंततः पता चला गया और यह व्यवस्था ख़तम की गयी.अब कभी भी आओ कभी भी जाओ.

सोमवार, अक्तूबर 15, 2018

चकराता ट्रिप - लोखंडी टिब्बा, मोइला टॉप, बुधेर गुफा























आज का ब्लॉग एक फोटो अल्बम है.30 तारीख की सुबह अपनी आदत के हिसाब से जल्दी उठ गए थे और नहा धोकर तैयार.जब तक बीवी बच्चे भी तैयार होते हैं तब तक घूम आता हूँ बाहर.होटल के ठीक सामने एक बड़ा सा टीला जैसा था.उसपर चढ़ आया.उससे भी ऊंची जगह दिख रही थी वहां नहीं गया.थोड़ी देर में श्रीमती जी और बच्चे जब तैयार होकर आये तब और ऊपर जाने का मन बनाया.बालक तो ज़्यादा ऊपर नहीं गए लेकिन मैं ऊपर गया.वहां से पता चला उससे भी ऊपर एक चोटी जैसा है.नहीं गया.दरअसल वो पूरी धार है जो होटल से कम ही दिखती है.वहीँ पर बेटी को ठण्ड लगने लगी.कुछ फोटोग्राफ लिए और फटाफट नीचे आये.बेटी के पैर में तेल लगाकर खूब रगड़े,कम्बल ओढ़ाए. डर था कहीं ठण्ड लग जाय नहीं तो सारी ट्रिप का सत्यानाश.लेकिन ये सिर्फ बुरे ख़याल ही रहे.थोड़ी ही देर में बेटी चंगी हो चुकी थी.पराठे खाये गए.आज की योजना थी मोइला टॉप और बुधेर केव जाने की.

गुरुवार, अक्तूबर 11, 2018

चकराता ट्रिप - देहरादून, उदय झा जी, डाकपत्थर बराज, लोखंडी आगमन

हमारे घूमगुरु नीरज के साथ की गयी यात्राओं का हासिल कुछ विशिष्ट होता है. मसलन रैथल यात्रा की बात करूं तो एक एक पल हासिल ही था. मैं एक पर्यटक कैटेगरी का व्यक्ति हूँ. शिमला मनाली नैनीताल जैसे जगहों  से इतर किसी भी पर्वतीय जगह पर नहीं गया था. रैथल एक शानदार यात्रा रही जिसमे एक हिमालयी गाँव के अलावा कुछ अद्भुत(जो बाद में पता चला) महामानवों से मुलाक़ात हुयी. गंगोत्रीयात्रा भी यादगार रही जिसमे नेलांग, सातताल ट्रेक के दौरान साग भात और मार्कण्डेय मंदिर भूलने वाले पल हैं. इसी कड़ी में चकराता यात्रा भी विशिष्ट है.

"रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलयुग आएगा |
दोनों तरफ से मैसेज होंगे, मिलने कोई नहीं आएगा ||"

यह मैसेज भेजा था उदय झा जी ने जो हमारी रैथल यात्रा के सहयात्री थे. जिन्हे मैंने उनके घर पर मिलने का वादा कर चुका था. मैं बहुत जल्दी घुलने मिलने वाला व्यक्ति नहीं हूँ. रैथल यात्रा भी महज दो दिनों की थी. जिसमे से सिर्फ एक दिन ही झा जी का साथ मिला.