गुरुवार, जुलाई 05, 2018

गंगोत्री यात्रा - धराली से सात ताल ट्रेकिंग

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पहला दिन बेहद शानदार रहा.दूसरे दिन का प्लान था सात ताल की ट्रैकिंग। ये वो सात ताल नहीं जो नैनीताल के पास है. ये सात तालों का समूह धराली के पास है. 24 की शाम को ही हमारे मौसम वैज्ञानिक नीरज ने कहा कि अगर कल सुबह बादल  होते हैं तो दोपहर तक पक्का बारिश होगी. ऐसे में हमलोगों को 7 बजे सुबह चलना होगा ट्रैकिंग के लिए, जिससे हमलोग दोपहर तक लौट सकें. मौसम साफ़ रहा तो 9 बजे तक चलेंगे. फिर भी  हम लोग 25 जून को 6 बजे जग चुके थे.मौसम देखा, एकदम साफ़. फिर क्या, बात समझ आ गयी कि जनता 9 बजे ही चलेगी.नास्ता करके चलते चलते 10 बज गए. एक बात और - मुझे अपनी बेटी के बारे में थोड़ा  संशय था कि 10 किलोमीटर का आना जाना वो कर पाएगी कि नहीं. ऐसे में सभी मित्रों ने हौसला बढ़ाया. बोले चलने दो. नहीं चल पाएगी तो  हम पांच लोग तो हैं ही. और हमारी ट्रैकिंग शुरू हो गयी। सड़क से ऊपर की तरफ धराली गॉंव में कुछ सीढ़ियां दिखीं. हमें उनपर  ही चलना था. वहां एक बोर्ड भी लगा है सात ताल ट्रैकिंग मार्ग का पुनरुद्धार किया गया है. लागत - रुपये.... ये सीढ़ियाँ धराली प्राथमिक विद्यालय के बगल से जंगल की तरफ चली जाती हैं. जहाँ तक गाँव है पक्की सीढ़ियां बनी हैं और चढ़ने में बेहद तकलीफ़देह। सांस चढ़ जाती थी. जब ये सीढ़ियां ख़तम हुई और जंगल का रास्ता आया तब जाकर थोड़ा आराम मिला. फिर भी चढ़ाई जारी रही. केवल 2 ही वीर पुरुष थे भागे जा  रहे थे। एक चुन्नू बाबू और दूसरे हमारे ग्रुप के सबसे मजबूत सदस्य अजय साहब.

लगभग 40 -45  मिनट बाद सभी रुके. अजय जी पहले से मौजूद थे. वहां एक पानी का पाइप था. सभी ने बोतलें भरीं. वापसी में भी सभी जन यहीं रुके थे.
यहाँ एक पौधा था,कीड़े खाने वाले पौधे जैसा. "पिचर प्लान्ट ". बालक ने बताया ये पिचर प्लांट है. नहीं-ये पिचर प्लांट जैसा है. आगे बढे - कभी कभी चढ़ाई बहुत ज़्यादा महसूस हो रही थी.  उमेश जी की हालत एकदम ख़राब। सबसे ज़्यादा आराम करने वालों में से एक.
रास्ते में एक ग्रामीण मिले अपने खेतों में  काम करते हुए।उन्होंने नाग मंदिर  और भीम गुफ़ा के बारे बताया। लगभग 11:30 बजे हमलोग पहले ताल पहुंचे. ताल क्या  छोटी तलैया कहिये। हमारे  साहब ने पहले ही बता दिया था कि ताल तो बहाना है असल लक्ष्य तो ट्रैकिंग करनी है.पहले ताल पर थोड़ी देर रुके.फोटो वोटो खींचे.आराम किये.और चलते बने.थोड़ी चढ़ाई करने पर दूसरा ताल मिला.काफी बड़ा था लेकिन  पानी नहीं था.शायद बीच में कीचड था.वहां सभी फिर से आराम करने लगे.नीज भाई ने कहा भीम गुफा ढूंढते हैं.साथ चलने के लिए मैं,चुन्नू बाबू,रूद्र हनुमान तैयार हुए.बाकि जनों ने आराम को चुना.

इधर उधर दाएं बाएं करते हुए, ये सोचते हुए कि भालू आ गया तो, मोबाइल में गाना बजाते हुए, चलते रहे.थोड़ी ही देर में एक बाड़ मिली.बाड़ के अंदर घुसे तो एक झोपड़ी जैसी दिखी जिसे नीरज साहब छानी कहते हैं.वहां सेब के बागान,राजमा के खेत, गुलाब, सौंफ, चेरी और न जाने क्या क्या ..था.वहां जाकर पता चला कि यह एक बहुत बड़ा सेब का बाग़ है जिसके मालिक धराली के ही रहने वाले हैं.वहां पर एक केयरटेकर 56 वर्षीय राजबहादुर रहते हैं.वो नेपाल के रहने वाले हैं और अपनी बेटियों के साथ यहाँ की रखवाली करते हैं.इत्तेफ़ाक़ की बात थी कि उस वक़्त उस फार्म के मालिक भी अपने मित्रों के साथ मौजूद थे.वो एक दिन पहले पिकनिक मनाने आये थे.आज धराली वापस जा रहे थे.उनलोगों से भी काफी बात हुयी.दुआ सलाम हुआ.साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि रात को यही रुकिए, खाना बनाइये, सारी व्यवस्था है यहाँ.एन्जॉय कीजिये.इस दौरान राजबहादुर से नीरज ने भीम गुफा की बात की.उन्होंने रास्ता बता दिया साथ ही ये भी कहा कि मालिक के जाने पर मैं आपको दिखा दूंगा.

चूनु बाबू को भूख लग चुकी थी. वो अब चलते को बोल रहे थे.हम लोग ढेर सारे आलू के पराठे लाये थे जो कि आराम फ़रमा रहे लोगों के पास थे.मैंने कहा भाई अब चलते हैं चुन्नू बाबू को भूख लग गयी. राजबहादुर ने कहा यही खा लो हमने साग बनाये हैं और चावल.मैंने कहा ले आओ.फिर क्या चुन्नू बाबू साग भात खाकर मस्त हो गए.बोले मजा आ आगया.थोड़ा मैंने भी चखा.अप्रतिम.अद्भुत था.ग़ज़ब का ज़ायका. भीम गुफा वाली बात फार्म मालिक भी सुन चुके थे.बोले गुफा में सालों भर बर्फ रहती थी लेकिन 2 साल से बर्फ न पड़ने के कारन अभी बर्फ नहीं है.बहादुर दिखा देगा आपको.
थोड़ी देर में राजबहादुर अपने मालिक के साथ और हमलोग भी चल पड़े.बहादुर और हमलोग भीम गुफा की ओर बाक़ी लोग धराली की ओर.भीम गुफा पास में ही थी.अंदर बेहद ठंडा. नीरज तो आरपार भो हो आये.और बोले चलो सबको बताता हूँ.राजबहादुर भी वापिस चले गए.
बाक़ी जनता हमारा इंतज़ार कर रही थी.बेटी सो चुकी थी.उसे जगाया गया.उठते ही उसने खाने की फरमाइश की.हमने एक पराठा रोल करके दे दिया.चावल साग की भी चरचा हुई.सबने कहा भाई अकेले अकेले खा आये और हम सभी भूखे इंतज़ार कर रहे हैं.उन्हें बताया गया कि केवल चुन्नू बाबू ही खाये हैं.तब जाकर सबको संतोष हुआ.इतने में राजबहादुर भी आ गए.मालिक का सामान लेकर धराली जा रहे थे.सबने साग खाने की इच्छा जताई.बहादुर ने कहा-अभी तो बहुत चावल साग रखे हैं.चलिए खा लीजिये.फिर क्या सभी फिर से फार्म.चावल साग खाकर तृप्त.फोटोग्राफी.आराम.वगैरह वगैरह.चुन्नू बाबू का सर भी दुःख रहा था.तो वो आराम भी कर लिए आँख मूंदकर. ये भी निर्णय लिया गया कि इस निःस्वार्थ सेवा के लिए बहादुर को कुछ देना बनता है.नीरज ने कुछ दे भी दिया.कितना, हमें नहीं पता.मौज करते करते लगभग 4 बज गए थे और अभी 2 ताल बाकी थे देखने के लिए.7 तालों में 4 रस्ते पर हैं बाकी इधर उधर.हमारा प्लान चौथे ताल तक ही जाने का था.नीरज ने कहा कि बाकी दो ताल हैं तो पास में लेकिन उन्हें देखकर आने में 1 घंटा तो लग ही जायेगा.अजय जी हड़बड़ी में थे कि भाई जल्दी चलो.चारों ताल देखने हैं.लेकिन बाकी किसी की बहुत इच्छा नहीं थी.वापसी हुई.भीम गुफा गए.सबने आरपार किया.अजय भाई गुफा देखने नहीं गए.वो आगे के दो ताल देखने चले गए.भीफ गुफा देखते देखते 4:30 बज गए.और थोड़ी बूंदा बांदी भी शुरू हो गए.हुक्म ये हुआ कि मौसम ख़राब हो सकता है.इसलिए हमें जल्दी से नीचे उतर जाना चाहिए.अजय भाई को मना लिया गया.
अरे हाँ रास्ते में जंगली चेरी थी.हमने चुन चुन कर खाये.बड़ा मजा आया.बच्चों को रेनकोट पहनाये और चल पड़े  धराली की ओर...


स्कूल के पास का एक पेड़ - कभी हम भी हरे भरे थे

स्कूल के पास ही एक भोजपत्र का पेड़ था.प्राकृतिक काग़ज़.इसकी छाल बेहतरीन कागज़ की तरह होती है.अभी भी कई ग्रंथों की पांडुलिपियां भोजपत्र पर लिखी हुई संग्रहीत हैं.

हनुमान जी और थके हारे उमेश साहब.
दीप्ति जी - परिचय की ज़रुरत नहीं-बस नाम ही काफी है.


बिटिया रानी बड़ी सयानी


और ये पानी का पाइप जहाँ हमने पानी भरीं
पिचर प्लांट(कीड़े खाने वाला पौधा) जैसा
आओ जी पानी भरा जाय - पहले बोतल ख़तम करो फिर भरो.

ऐसे कितने नज़ारे नज़रों से गुज़रे
यहाँ कुछ आग वाग से लगा रखी थी किसी ने 
उमेश जी का फेवरेट पोज़
यत्र तत्र सर्वत्र

पहुँच गए पहले ताल पर-अजय जी - पेट कुलबुला रहा है भूख लग गयी.  

रूद्र हनुमान-हालाँकि हमने इनका रौद्र रूप कभी नहीं देखा
चुन्नू बाबू


पहला ताल थोड़े ऊपर से
मुसाफिर हूँ यारो
बस थोड़े ऊपर और
फ़र्न
जंगली फूल - लग रहा है जैसे कोई कीड़ा खाने जा रहा हो 
बाड़ के अंदर राजमा के खेत
मदमस्त कर देने वाली हरियाली
जिधर नज़र घुमाओ उधर
छोटा ट्रैक्टर
बताना पड़ेगा क्या ...

बहुत भूख लगी है. चलो न यहाँ से
छानी के पास. फार्म के मालिक(नाम नहीं मालूम) अपने दोस्तों के साथ 
भीम गुफा के अंदर जाते मुसाफिर
राजबहादुर जी - इन्होने हम सबको चावल साग खिलाया

बाग़ के अंदर
जंगली चेरी चुनते हुए
और ये वापसी.थोड़ी बूंदाबांदी थी इसलिए सर ढँक लिया
वापसी
अब जाके लगा असली हनुमान जी हैं राणा साहब
हनुमान जी ने हमारी ली तस्वीर - जिन भी फोटो पर टाइम स्टाम्प ब्राउन कलर का है वो फोटोग्राफ रूद्र हनुमान(अमित राणा) जी के हैं
पानी के पाइप के पास आराम
पानी के पाइप के पास आराम
बेटी पिचर प्लांट को धरासायी करते हुए.क्यूंकि ये कीड़े को खा जाता है.

धराली गाँव से मुखबा और भागीरथी

अगला भाग - नेलांग वैली

8 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह, संजय जी बहुत कमाल का लिखते हैं आप तो। और हर फोटो की कैप्शन भी बहुत मज़ेदार है। और आखिर हनुमान जी ने सुमेरु पर्वत (पेड़) उठा ही लिया।
    बहुत बढ़िया लगा।

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    1. धन्यवाद जी. ये सब आनंद आपलोगों की बदौलत आया

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  2. आपके आने वाले ब्लॉग के लिए आपको फॉलो करना जरूरी है but follow का option nahi आ रहा

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    1. धन्यवाद जी. अब शायद आ गया होगा. चेक करके बताइयेगा

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