शनिवार, जुलाई 07, 2018

गंगोत्री यात्रा - नेलांग वैली और गरतांग गली


इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें


अगर आप गूगल देव से अंग्रेज़ी में  "nelang "या nelong के बारे में पूछेंगे तो कुछ समाचार पत्रों के लिंक दिखाई देंगे जो "नेलांग वैली आम नागरिकों के लिए खुल गयी" के बारे में होंगे.या कुछ होटलों के वेबसाइट होंगे जो नेलांग के बारे में हल्काफुल्का ज्ञान के साथ अपने यहाँ आमंत्रित करेंगे. कुछ चित्र वगैरह भी होंगे.laddakh of  uttarakhand भी दिख जायेगा.
अगर आपने हिंदी में "नेलांग"  टाइप करते हैं तो गूगल बाबा न्यूज़ के साथ साथ "नीरजमुसाफिर.कॉम" लिंक भी दिखाएंगे. तो भाई ये कहने की बात नहीं है कि अगर आपको नेलांग घाटी के बारे में विशिष्ट जानकारी चाहिए तो नीरज साहब के वेबसाइट पर जाइये या यहाँ क्लिक कर दीजिये हमीं पहुंचा देते हैं.

हम यहाँ आपको अपनी इस यात्रा के बारे में संक्षेप में बताएँगे.

हमारी गंगोत्री यात्रा का आखिरी दिन था.प्लान पहले से तय था कि हम सुबह नेलांग जायेंगे और फिर गंगोत्री.चूँकि हर्षिल हमलोग नहीं घूम पाए थे इसलिए सोचा गया कि आखिरी दिन ही एक घंटे सुबह हर्षिल घूमकर नेलांग चले जायेंगे.लेकिन हर्षिल शायद अगली बार के लिए छूट जाना था इसलिए छूट गया.
हमलोग नाश्ता करके होटल छोड़ दिए.
नीरज साहब ने कहा कि चूँकि नेलांग में धुप तेज़ होती है इसलिए सभी लोग चश्मा पहन लें और फुल बाजू के कपडे भी.
हमारे पास चश्मे नहीं थे और बेटी के पास तो फुल बाजू के कपडे भी नहीं थे.फिर क्या, ऐसे ही चल पड़े.नेलांग का रास्ता मुख्य गंगोत्री मार्ग पर स्थित भैरोघाटी से कट जाता है. 8 बजे के क़रीब भैरोघाटी पहुँच चुके थे.  यहाँ से गंगोत्री लगभग 10 किलोमीटर है.यहाँ जंगल विभाग तो अपना परमिट दिखाया गया. हमें हिदायत भी दी गयी कि अगर प्लास्टिक की बोतल या पोलोथिन लेकर जा रहे हों तो वापस साथ लाना न भूलें. और हम कूच कर गए नेलांग की तरफ.

नेलांग वाली सड़क जाधगंगा नदी के किनारे किनारे है. और अभी चौड़ीकरण का काम चल रहा है इसलिए काफी ख़राब हालत में हैं.सड़क हालाँकि बहुत चौड़ी है. दोपहिये वाहनों को इस सड़क पर चलने की इजाजत नहीं है.इस सड़क पर पर्यटकों को केवल 23 किलोमीटर तक जाने की ही इजाज़त है.तिब्बत(चीन) बॉर्डर होने के कारण २३ किलोमीटर के बाद सिर्फ सेना और ITBP के जवान रहते हैं.रास्ते में ३ नाले भी पड़ते हैं इनपर पुल का निर्माण कार्य चल रहा है.ये पूरी सड़क बीआरओ(बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन) बनवा रहा है.नीरज भाई की पैठ बीआरओ के अंदर तक है और इनका दावा है कि 10 साल में भी ये सड़क ऐसी की ऐसी ही रहेगी.
हमलोग 9:30 बजे तक 23 किलोमीटर दूरी तय करके नेलांग पहुँच चुके थे. यहाँ पर सेना के एक जवान से बात भी हुई.उन्होंने हमें लगभग सभी चोटियों के नाम भी बताये.एक को छोड़कर बाक़ी मैं भूल चूका हूँ.

ज्ञान की बात-नेलांग क्षेत्र में 1962 के भारत चीन युद्ध से पहले आबादी भी रहती थी.नेलांग और जादुन्ग गाँव के आदिवासी शायद भोटिया रहते थे.ये बहुत अच्छे शिल्पकार थे और 1962 से पहले भारत और तिब्बत का व्यापर बहुत उन्नत था.व्यापर का रास्ता जाधगंगा के उसपार की पगडंडी थी जिसपर खच्चर से व्यापर होता था.कहीं कहीं उस पगडण्डी के अवशेष अभी भी दीखते हैं.भैरों घाटी से थोड़ी ही दूर पर लकड़ी का एक गलीनुमा सरंचना है जो अभी भी इंजिनीयरिंग का बेतरीन नमूना है.इसके बारे में ज़्यादा विस्तार से नीरजमुसाफिर.कॉम पर लिखा है.इसे गारतांग गली कहते हैं.1962 के युद्ध के समय इन गाओं को ख़ाली करा दिया गया और बगोरी और डुंडा में बसाया गया.

सेना के जवान ये भी बताया कि जादुन्ग गाँव के मूल निवासियों को साल के एक दिन उनके ग्राम देवता के पूजन हेतु गाँव में जाने की इजाज़त दी जाती है.उस दिन सेना की सुरक्षा बढ़ा दी जाती है.ग्रामवासियों को ट्रकों में भरभर ले जाया जाता है और गाँव के अलावा कहीं भी जाना मना होता है.
इस तरह हमलोगों ने गप्पें करते हुए फोटो खींचते हुए आनंद लिया.मौसम बेहद मस्त था.हल्की ठण्ड थी. 
लगभग 40-45 मिनट के बाद हमलोग वापसी की राह पकडे. रास्ते में बोतल मोड़ पर रुके.बोतल मोड़ की कहानी कुछ यूँ है कि सेना के तीन जवान यहाँ पानी भरने आये और लैंड स्लाइड की वजह से वो मारे गए.इसीलिए वहां उनके सम्मान में एक मेमोरियल पत्थर गाड़ा गया जिसपर उस घटना का उल्लेख है. और बोतलों में पानी  भरकर रखा जाता है क्यूंकि उनकी मौत पानी लाने के वक़्त हुयी थी.ऐसा कहते हैं कि वो सैनिक बोतल का पानी पी जाते हैं.क्यूंकि वहां का मौसम एकदम शुष्क है.आर्द्रता नाम मात्र की है इसलिए पानी बोतल में रखे रखे उड़ जाता है.
यहाँ फोटो वोटो लेने के बाद आगे बढे और सीधे गरतांग गली रुके.
बाक़ी फोटो में देखिये...


जाधगंगा
कुछ ऐसी सड़क थी
हनुमान जी अभी पर्वत पर हैं,बस पर्वत उठाने की देर है.

और ये नेलांग.सामने बर्फ वाला पहाड़ नंदी टॉप है.ऐसा सेना के जवान ने बताया.
फोटो में नंदी टॉप ने नीचे मटमैले रंग का ग्लेशियर है.नंदी टॉप और ग्लेशियर ने बीच में एक झील है.वहां जाना मना है.सेना को भी.नंदी टॉप के पीछे गौमुख ग्लेशियर है जो कि भागीरथी(गंगा) का उद्गम है.
बिटिया यहाँ थोड़ी सुस्त थी और वो गाडी में जाकर बैठ गयी थी.


है न लद्दाख जैसा माहौल
हमारी सीमा यहीं तक थी
बोतल बेंड

कुछ दूर तक सड़क ऐसी भी है



बोतल मोड़ के पास
गरतांग गली - खड़े पहाड़ को काट कर बनाया गया लकड़ी का रास्ता . यह भारत तिब्बत व्यापर का मुख्य मार्ग था

जाधगंगा और हमारी सड़क जिसपर से हम आ रहे हैं

इस तरह नेलांग भ्रमण बेहद शानदार और ज्ञानवर्धक रहा 
अगला और अंतिम भाग - गंगोत्री मंदिर 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह संजय जी आनंद आ गया, हम तो आपके खर्चे पर ही घूम आए 😀

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  2. वाह संजय जी आनंद आ गया, हम तो आपके खर्चे पर ही घूम आए 😀

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  3. बढ़िया...
    आप भी नेलांग घाटी देखने वाले विशिष्ट लोगों में शामिल हो गए...👍

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  4. संजय जी बहुत बढ़ीया,सूंदर।

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