सोमवार, दिसंबर 31, 2007

शायर हूँ कोई ताजा गज़ल सोच रहा हूँ,
मस्जिद में पुजारी हो मंदिर में मौलवी,
हो किस तरह मुमकिन ये जतन सोच रहा हूँ।
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है