रविवार, फ़रवरी 04, 2018

रैथल उत्तरकाशी - नीरज मुसाफ़िर के साथ

क्या आप "neerajmusafir.com" से परिचित हैं? शायद हाँ और शायद नहीं भी.चलिए थोड़ा परिचय कराता हूँ.यह "नीरज" द्वारा की गयी यात्रा वृत्तांतों/घुमक्कड़ी का सचित्र संकलन है.इस वेबसाइट के बारे में इतना लिखना काफी है-हिंदी में इससे बेहतर (कुछ मायनों में अंग्रेज़ी में भी) यात्रा वृत्तांत उपलब्ध नहीं है.इसके लिए नीरज की जितनी तारीफ़ की जाय कम है.पहाड़ों को अपने क़दमों से नापना और भारतीय रेल को अंदर तक महसूस करा देना नीरज की खासियत है .साथ ही इस क्रम में बिताये एक एक पलों को जीवंतता से लिखने में नीरज का कोई सानी नहीं है.

अब अपनी बात करता हूँ.मैं स्वाभाव से घुमंतू हूँ.हाँ प्राइवेट नौकरी वाला हूँ तो छुट्टियों का टोटा हमेशा लगा रहता है.इसलिए ज़्यादा विचरण संभव नहीं हो पाता.लेकिन यात्राओं से सम्बंधित अनेक websites और ब्लॉग्स पढ़ते रहता हूँ.इसी क्रम में "neerajjaatji.blogspot.com" से रूबरू हुआ.साल था 2007 .नीरज के लिखने का अंदाज़ पसंद आया."चित्र पहेली" में हिस्सा लिया.एक दो बार दूसरा तीसरा स्थान भी पाया.....तो नीरज की यात्राओं के साथ साथ अनगिनत लोगों की तरह हमने भी यात्रायें कर डाली नीरज के साथ ब्लॉग पढ़कर.

बाद में नीरज ने ब्लॉग को वेबसाइट में बदल दिया और नाम "नीरज जाट" से "नीरज मुसाफ़िर" कर दिया.शायद घुमक्कड़ी करते करते "जाटत्व" कम हो गया हो.खूबी ही यही है घुमक्कड़ी का. कई प्रकार के "..ism " ख़तम हो जाते हैं और "humanism " शेष रह जाता है.साल दर साल बीते और हम नीरज की यात्राओं में डूबते उतराते रहे.नीरज की तीन पुस्तकें भी आईं.उनमे मुझे सबसे पसंद "पैडल पैडल" है."एवरेस्ट हमसफ़र" का नाम जिसने भी चुना कमाल का चुना.यह पुस्तक वास्तव में एवरेस्ट बेसकैंप जाने वालों के लिए हमसफ़र की तरह काम करेगी.इसे पढ़ने के बाद मैंने इसे एक सहकर्मी को दिया जो कि खुद एक ट्रैकर हैं और बेसकैंप जाना भी चाहते हैं.उनके विचार इस पुस्तक के बारे में ये हैं-"यह एक बेहतरीन document है बेसकैंप जाने वालों के लिए." नीरज के घुमक्कड़ी लेखन की खूबी ये है कि आप कुछ ऐसे अनछुए रास्तों,पेड़ों,जानवरों और चरित्रों के बारे में जान जाते हैं जो गूगल देव भी नहीं बता पाते.

अब आते हैं असल मुद्दे पर.बड़ी दिनों से इच्छा थी नीरज से मिलने की.कई बार सोचा फ़ोन करूँ और शास्त्री पार्क मिल आऊं.पता नहीं क्यों बात टलती रही.एक दिन यूँ ही नज़र गयी ब्लॉग के एक लिंक पर"हिमालयी गाँव की यात्रा".लिंक पर क्लिक किया तो पाया कि यह एक फेसबुक पेज है.कुछ दिन के लिए मैंने फेसबुक deactivate कर दिया था.फिर उसे लॉगिन किया .यात्रा विवरण पढ़ा .श्रीमती जी से पूछा.और बुकिंग अमाउंट ट्रांसफर कर दिया.बाद में बताया भी कि वहां कुछ नहीं है.न जाना चाहो तो बता देना.लेकिन वो भी उत्साहित और बच्चे भी.बच्चों का सारा उत्साह बर्फ में होता है.एक बार मनाली गए थे तब से बर्फ नाम सुनते ही खुश हो जाते हैं.

यात्रा की शुरुआत साधारण बस से होने वाली थी लेकिन बाद में टेम्पो ट्रेवेल्लर और उसके बाद इनोवा तक आ गयी. बजट की हल्की सी आहट नीरज ने अपने ब्लॉग में लिखा है.25 तारीख की रात 11 बजे हम चल पड़े अपने पड़ाव की ओर. रुकते , चाय पीते , हरिद्वार से दिवाकर जी को साथ लेते 8 :30 बजे तक हम चम्बा पहुंचे. आगे की कहानी चित्रों की ज़ुबानी...


26 जनवरी हमारा गणतंत्र दिवस - चम्बा में प्रभातफेरी करते बच्चे.

चम्बा से निकलते ही हमारा टायर पंक्चर हो गया.हमारे ड्राइवर खेमा ने फटाफट टायर बदला.पंक्चर टायर को कमांड में ठीक कराया गया.चम्बा से निकलते ही गंगोत्री और श्रीकंठ चोटी के दर्शन हो गए. शानदार नज़ारा.

उत्तरकाशी में नीरज को तिलक सोनी जी को अपनी किताबें भेंट करनी थी. उत्तरकाशी के बाद भटवारी से रैथल का रास्ता अलग हो जाता है. गाँव से थोड़ा पहले सड़क के किनारे बर्फ पडी थी.देखते ही बच्चे चार्जड हो गए.गाडी से उतरे और कुछ फोटू खिंचवाई.


तो इस तरह मौज मस्ती करते 26 जनवरी को शाम 4 बजे हम रैथल गांव पहुँच चुके थे.तुरंत आलू का नाश्ता मिला और चाय.खाये और रज़ाई में घुस गए.अगले दिन कुछ प्लान तो था नहीं.हमने दबाकर आलू पराठे खाये. कुछ सुबह 10 की फोटो लिए.बानगी देखिये.


चुन्नू बाबू की मुस्कुराती हुयी दुर्लभ तस्वीर

नीरज ने वहां फारेस्ट रेंजर से बात की और हमें कुछ दूर तक दयारा बुग्याल वाले रास्ते पर जाने का परमिशन मिल गया.हम लोग दयारा वाले रास्ते पर एक डेढ़ किलोमीटर ऊपर गए.वहां अच्छी बर्फ मिली. फिर क्या था.देखिये.

चुन्नू -मुन्नू 

बिटिया रानी बड़ी सयानी
एक पेड़ जिसपर हमने कई चित्र लिए .त्रिदेवियाँ .

अद्भुत , अविस्मरणीय , सिर्फ आनंद

शाम चार बजे तक होटल आये.चाय पी और निकल गए गाँव देखने.कुछ चित्र गांव के.

एक पांच मंज़िला लकड़ी और पत्थर की ईमारत.हमलोग इसके अंदर भी गए थे.

गांव का खूबसूरत मंदिर

रैथल की शाम

28 तारीख को लौटने का दिन था.हमारे चार साथी हरिद्वार के लिए सुबह ही निकल गए.हमलोग भी ब्रेकफास्ट करके 10 बजे चल पड़े.रास्ते में रैथल से थोड़ी दूर पर नदी पर एक पुल था.नीचे नदी की कल कल और खूब सारी बर्फ. नीचे जाकर खूब मजे किये.इतना कह सकता हूँ कि ऐसी जगहों पर नीरज ही ले जा सकते हैं.

अपने मोबाइल से लिए फोटो में से ये फोटो मुझे सबसे ज़्यादा अच्छा लगा.
वही नदी के पुल के पास ली गयी तस्वीर.

नीरज ने एक ज्ञान भी दिया.नदी से एकदम सटे हुए एक घर था.नीरज ने बताया यह एक घराट है.पानी से चक्की चलायी जाती है और गेंहूं पीसा जाता है.कभी कभी टरबाईन लगाकर बिजली भी बनाई जाती है.


रास्ते में ली गयी एक और तस्वीर

तो इसतरह मौज मस्ती करते 9 बजे हरिद्वार पहुंचे.सुबह चले साथियों में से एक अक्षय जी के बेटे का बर्थडे था.उन्होंने सबको बुलाया.सभी उनके घर गए.छोले भठूरे खाये और घने कोहरे के बीच गाड़ी में सवार होकर 3 बजे तक दिल्ली और 4 बजे तक ग्रेटर नॉएडा.

यात्रा के समापन शब्द - बेहद शानदार यात्रा रही.सबने आनंद उठाया.हाँ इतनी लम्बी यात्रा के बाद कम से कम दो पूरे दिन का कार्यक्रम रहता तो अच्छा था. नीरज एक खास शख्सियत हैं.यात्राओं और पहाड़ों के विषय में नीरज के साथ एक घंटे की परिचर्चा होती तो मजा आ जाता.

और आखिर में एक और दुर्लभ तस्वीर 
(छाया चित्र - रणविजय सर.कभी इनके फेसबुक पेज को देखिये इनके क़ायल हो जायेंगे.)

और हमारी इस यात्रा के सूत्रधार - नीरज और जिनके वे सहचर हैं - दीप्ति
(छाया चित्र - उदय झा सर)

चलते चलते एक और बात-लौटते समय मेरठ के आस पास नीरज ने एक गाना बजाया.यह मेरा आल टाइम फेवरिट सॉन्ग है.महेंद्र कपूर के इस गीत को मैंने कई महफ़िलों में गया भी है.

अभी अलविदा मत कहो दोस्तों 
न जाने कहाँ फिर मुलाक़ात हो.
क्यूंकि...
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी.
ख्वाबों में ही हो चाहे मुलाक़ात तो होगी..

-इति यात्रा 

मित्रों इस यात्रा में ली गयी सुन्दर चित्रों की भरमार है.जगह ही ऐसी थी.ब्लॉग बहुत लंबा हो जाता इसीलिए मैंने मित्रों की तस्वीरों को नहीं लगाया. कृपया मित्र नाराज़ न हों. बहुत सारे बेहतरीन चित्र कमेंट के साथ यहाँ पर .

बहुत कुछ छूटी हुयी बातें  "neerajmusafir.com" पर.

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