बुधवार, नवंबर 16, 2011

कबीर-माया महा ठगनी हम जानी

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
 
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।

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