अपनी डफली अपना राग
काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा . . .
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कुछ इधर उधर की
बुधवार, नवंबर 16, 2011
जीवन-दर्शन
स्याह रात है साया तो हो नहीं सकता
,
फिर ये कौन है जो साथ-साथ चलता है
घर घर दोलत दीन ह्वै, जन जन जाँचत जाय|
दिए लोभ चश्मा चखनि , लघु पुनि बड़ो लखाय।|
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