बुधवार, जनवरी 11, 2012

पुरोहितवाद और भारत

बिना लाग लपेट के बता दूं कि अभी कुछ दिन पहले कांचीपुरम-तिरुपति-रामेश्वरम-मदुरै-कन्याकुमारी जाने का मौका मिला.मंदिरों में कोई आस्था नहीं, लेकिन घर परिवार वो भी ससुराल वालों के साथ था इसलिए इन तथाकथित देवालयों के पास तो जाना ही था.साथ ही सही सही जानकारी के लिए मूर्ति दर्शन की लाइन में भी लगा.


हालत देखकर बहुत दुःख हुआ.मंदिर निश्चित ही भव्य बने हुए हैं किन्तु सभी मंदिरों को तंग गलीनुमा आकार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी है.मुख्य प्राचीर के अलावा एक और चाहरदिवारी जो कि मुख्य मूर्ति को घेरकर रखे है-हर जगह मिली.यह दूसरी चाहरदीवारी अगर ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि बाद में बनाई गयी है.तंग गलियारा का रूप देने का उद्देश्य ये न समझें कि तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए बनाई गयी हैं.दरअसल अत्यंत भीड़ को और ज्यादा परेशान और व्याकुल करने की सफल कोशिश है.अन्यथा ये मंदिर इतने बड़े हैं कि हजारों की भीड़ को आसानी से आत्मसात कर सकें.मुख्य मूर्ति के पास तीन चार पुजारी आरती और टीके कि थाली लिए होते हैं और अगर आप 11 रुपये से कम थाली में डालते हैं तो आपको अपशब्दों के साथ बाहर भगाया जाता है.और अगर आप 100 रुपये डालते हैं तो हजारों की उस भीड़ को रोककर आपको स्पेशल दर्शन कराया जाता है.रामेश्वरम के रामानाथस्वामी मंदिर की लाइन में तो एक पंडित बोल रहा था कि पता नहीं कहाँ से ये दरिद्र चले आते हैं 10 रुपये भी नहीं डालते .ऐसा ही एक नजारा कांचीपुरम में भी मिला.बनिए की दुकान की तरह सभी मंदिरों पर आपको भगवन के अलग अलग तरह के दर्शन का रेट लिखा मिलेगा.फ्री दर्शन,स्पेशल दर्शन - 50 रुपये ,अति स्पेशल दर्शन - 100 रुपये .पूजा करने की कीमत 100 रुपये.विशेष पूजा 1500 रुपये.रथ पर भगवन की परिक्रमा 25000 रुपये इत्यादि.भगवान के नाम पर इतनी बनियागीरी मथुरा वृन्दावन में भी नहीं है.

साथ ही सभी सरकारी दफ्तरों की तरह यहाँ भी सभी मंदिरों के बाहर दलालों का एक जत्था होगा जो कि आपको 200 रुपये में 5 मिनट में दर्शन की गारंटी लेगा.कई जगह मैंने पटना के पासपोर्ट ऑफिस की तरह लाइन के बीच में लोगों को जबरदस्ती घुसते देखा.ये वही 200 रुपये की गारंटी वाले लोग थे.वहां खड़े सुरक्षा कर्मी देश के सरकारी दफ्तरों के सुर में सुर मिला रहे थे.

ये सब देखने के बावजूद क्या हमारे देश के लोग इतने मूर्ख हैं जो ये मान रहे हैं कि भगवान इन कन्दरानुमा बने घर में रहता होगा और वहां सदियों से चल रहे संस्थागत अमानवीय व्यवस्था का पालन पोषण करता होगा.भारत के सभी मंदिरों में ज्यादातर जगह कैमरे ले जाना मना है. असली कारन वहां जाकर समझ में आता है-कोई वहां हो रहे कुकृत्यों को कैदबंद न कर ले.

कहीं कहीं तो तुगलकी फरमान भी था.शरीर के ऊपर का भाग वस्त्ररहित होना चाहिए.इसके सही कारण को मैं अभी तक ढूंढ रहा हूँ.

आमतौर पर मंदिरों में नहीं जाता लेकिन शुक्रिया अपने ससुरालवालों का जिनके सौजन्य से पुरोहितवाद का असली रूप देखने को मिला.ज्यादातर मंदिरों की स्थापत्य कला का दर्शन मुख्य मंदिर के बाहर से ही किया.एक दो जगह देखने के बाद इतनी हिम्मत नहीं हुयी कि मैं इस दुर्दांत,अमानवीय,शुष्क,प्रेमहीन और सहानुभूतिरहित देवालयों के दर्शन नजदीक से कर सकूं.

घूम फिर आने के बाद इन घटनाओं का बयां अपने एक इतिहासविद मित्र तिवारी जी से किया.वो बोले संजय भाई,भारत के लिए यह खुशी कि बात है कि लोकतंत्र है.आजकल दुत्कार के साथ ही ,किन्तु एक गरीब भी मंदिर में जाता तो है.पहले मंदिर केवल अमीरों के लिए ही खुलते थे.छोटी जातियों को तो उनके पास भी फटकने नहीं देते थे.सभी मंदिरों के बनाने में गरीब निरीह जनता का ही खून लगा है.ये सारे मंदिर राजाओं ने अपने याद्कार के लिए बनवाए और अपने को शिव,विष्णु आदि का अवतार घोषित किया.ये पुरोहित आज भी यही चाहते हैं कि मंदिरों में केवल अम्बानी,अमिताभ बच्चन ,श्रीलंका के राष्ट्रपति आयें और करोड़ों देकर जाएँ.ये तो लोकतंत्र का दबाव कहिये कि आप भी वहां जा पाए.मैंने कहा ठीक कहते हो मित्र , जिस देश का निर्माण ही ऐसी संस्थाओं से हुआ और यहाँ की सरकारें इन व्यवथाओं का भरण पोषण करती हों, वहां कभी भी भ्रष्टाचार का मिटना एक सपने जैसा है.फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है.

यहाँ आकर लगता है कि बुद्ध , महावीर,कबीर ,नानक जैसे कितने संत जो पुरोहितवाद से जूझते हुए संसार छोड़ गए लेकिन हिंदुस्तान में उनकी जड़ें जम नहीं पायीं.यहाँ संस्थागत पुरोहितवाद कितना मजबूत है इस बात का अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि बुद्ध का प्रचार प्रसार चीन, श्रीलंका इत्यादि देशों में हुआ और इसके जनक भारत में नहीं.

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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