गुरुवार, दिसंबर 30, 2021

कौसानी यात्रा - अनासक्ति आश्रम, पंत म्यूजियम और बैजनाथ

तुम वहन कर सको जन मन में मेरे विचार,
वाणी मेरी, चाहिए तुम्हें क्या अलंकार।

पंत जी की यह कविता मेरी पसंदीदा कविता थी हाई स्कूल में. इसमें कवि भाषा के अलंकरण से ज़्यादा जन जन तक सरलता से विचारों के पहुँच को प्रमुख माना  है. सुमित्रा नंदन पंत की जन्मस्थली उत्तराखंड की कौसानी थी. कई सालों से से वहाँ जाने की भी इच्छा थी. मुख्य कारण पंत जी की जन्मस्थली और गाँधी आश्रम जिसे अनासक्ति आश्रम भी कहा जाता है, था. अन्त्ततः यह मौका इस साल मिल ही गया.

12 दिसम्बर 2006 को हमारी शादी हुई थी।यूँ तो सालगिरह जैसा कुछ नहीं मनाते लेकिन घूमने वाले प्राणी हैं तो मौक़ा मिलते ही घूम आते हैं।9 दिसम्बर को दिन में 1 बजे प्लान बना कहीं चलते हैं।10,11,12 तीन दिन का ही समय था सो बहुत दूर नहीं जा सकते थे।श्रीमती जी ने इंटरनेट पर देखकर कहा कौसानी चलते हैं।कौसानी देहरादून से लगभग 320 किलोमीटर है और सारा रास्ता पर्वतीय होने के कारण बस 12 घंटे लगाती है।उत्तराखंड में पहाड़ों में रात में बसें नहीं चलती।मतलब सुबह चलो शाम को पहुंचो।यह हमारे लिए उपयुक्त नहीं था।दूसरा तरीका था।ट्रेन से काठगोदाम और फिर बस या शेयर्ड टैक्सी।काठगोदाम के लिए ट्रेन देखी।14120 रात को 1130 पर चलेगी और सुबह सवा सात बजे काठगोदाम पहुंचेगी। उसके बाद बस या टैक्सी के साथ  पांच घंटे का पहाड़ी रास्ता .टिकट चेक किया।वेटिंग लिस्ट 4,5,6,7।लगा कन्फर्म हो जाएगा।बुक कर लिया।साथ ही प्लान ये बना कि अगर टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो यात्रा कैंसिल।कन्फर्म हो गया तो रिटर्न का टिकट भी करवा लेंगे।1130 रात की ट्रेन की चार्टिंग शाम साढ़े सात बजे तक होती  है।तबतक कोई तैयारी भी नहीं की।ऑफिस का काम भी था सो व्यस्त ही रहा।साढ़े सात बजे टिकट कन्फर्म का मैसेज आ गया।फटाफट चार बैग में कुछ कपड़े रखे।आजकल रेलवे ने बेडिंग देना बंद कर दिया है इसलिए पतले पतले 4 कम्बल रखे और बेडशीट डाले।9 बजे तक खाना खाकर तैयार। 

रेलवे स्टेशन घर से 3 किलोमीटर है सो आधे घंटे से ज़्यादा नहीं लगता। 10 बजे निकले. एक ऑटो वाला तुरंत मिल गया. और 15 मिनट में में स्टेशन।गाड़ी लगी हुई थी लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला था. 1045 पर दरवाज़ा खुला और हम कम्बल ओढ़कर सो गए. ट्रेन कब चली पता ही  नहीं चला. यूँ तो मुझे ट्रेन में नींद बहुत कम आती है लेकिन आ गयी और सीधे पांच बजे नींद खुली. गाडी रामपुर के आसपास खड़ी थी. 7 बजे हल्द्वानी पहुंचे. टिकट काठगोदाम तक था लेकिन सारी  बसें हल्द्वानी से चलती हैं जो काठगोदाम होकर जाती हैं. हल्द्वानी उतर गए. बाहर निकलते ही अल्मोड़ा अल्मोड़ा चिल्लाते हुए कई टैक्सी वाले मिले लेकिन हमें जाना था कौसानी। बस अड्डा थोड़ी ही दूर है पैदल चल पड़े। बस अड्डे से पहले रास्ते में एक बहुत पुराना होटल दिखा-वाड़ी होटल. मैं ज़ोर ज़ोर से पढ़ते हुए गुज़रा -वाड़ी होटल.. एक व्यक्ति जो बाहर ही खड़ा था, बोला, वाड़ी नहीं तिवाड़ी लिखा है. ति मिट गया है. हम हँसते हुए आगे बढ़ गए. इससे विलियम शेक्सपीयर  फ़ेमस उक्ति "What is in the name" ग़लत साबित हुई. यूँ तो यह उक्ति ग़लत साबित होती आयी है वरना नरेंद्र ने अपना नाम विवेकानंद क्यूँ रखा होगा. या स्वामी जी इक्कीसवीं सदी के नरेंद्र को फोरकास्ट कर गए होंगे और निश्चय किया होगा "नरेंद्र" तो नहीं रखना अपना नाम भाई..

बस अड्डे पर कौसानी वाली बस ढूंढी, नहीं मिली. अल्मोड़ा की बस खड़ी थी.बोला आठ बजे अल्मोड़ा पहुंचाऊंगा. उसके बाद कौसानी चले जाना. हम चाहते थे कोई सीधी गाड़ी मिल जाय तो 5-6 घंटे में पहुँच जांय. लेकिन नहीं मिली. बस अड्डे के बाहर टैक्सी वाले बहुत रहते हैं, एक ने पूछा कहाँ जाना है, मैंने कहा-कौसानी. बोला  बैठ जाओ एक सवारी 500 रुपये लगेंगे. मोलभाव की तो बोला  450 से कम नहीं। बैठ गए. यह एक टाटा सूमो थी. ड्राइवर ने और सवारियां तलाशने में समय लगाया। लेकिन 740 पर चल पड़ा. यहाँ पर एक गड़बड़ थी. 11 बजे उसने अल्मोड़ा छोड़ दिया और एक और टाटा सूमो में बैठा दिया. हमें अफ़सोस हुआ कि इससे अच्छा तो रेलवे स्टेशन से ही अल्मोड़ा चल पड़ते समय बचता. अल्मोड़ा वाला भी हमें कौसानी नहीं ले गया. वह हमें सोमेश्वर तक ले गया जहाँ से अभी भी कौसानी 12 किलोमीटर था. हमने वहां से बस पकड़ ली और 25 मिनट में कौसानी पहुँच गए. दिक्कत तो नहीं हुई लेकिन समय ज़रूर एक घंटा ज़्यादा लगा. लगभग 2 बजे कौसानी पहुंचे. एक होटल में खाना खाया. उसी होटल वाले से अनासक्ति आश्रम का पता पूछा और चल पड़े पैदल ही. जहाँ बस या टैक्सी मिलती है उस बाजार से अनासक्ति आश्रम 10 मिनट की दूरी पर है. 
कौसानी बाज़ार जहाँ से गाड़ियां मिलती हैं यह एक तिराहा है. अल्मोड़ा से अगर आप आ रहे हैं तो सीधे रास्ता बागेश्वर चला जाता है और बाएं एक सड़क. यह बायीं वाली सड़क थोड़े ही आगे दो भाग में बँट जाती है. यहाँ से बाएं अनासक्ति आश्रम है. और दायीं वाली सड़क पर असली कौसानी है जिसे कौसानी एस्टेट कहते हैं. कौसानी एस्टेट में ही पोस्ट ऑफिस है,इंटर कॉलेज है, मिलिट्री बेस है, केंद्रीय विद्यालय वगैरह वगैरह हैं. कुमाऊं मंडल का रेस्ट हाउस भी इसी सड़क पर है. हमें अनासक्ति आश्रम ही रुकना था. प्लान था कि अगर यहाँ कमरा नहीं मिला तो कोई होटल ले लेंगे. लेकिन आश्रम लगभग ख़ाली ही था. हमने जो कमरा लिया यह यहाँ की नयी कंस्ट्रक्शन है. एक दिन का किराया 800 रुपये था. इसमें कुल चार बेड लगे थे हमारे लिए ठीक थे. फटाफट काग़ज़ी काम निपटाया।

नहा धोकर तैयार हुए. सोचे अभी समय है तो कौसानी बाजार के आस पास जो देखने लायक हैं देखते हैं. अनासक्ति आश्रम में तो हम ठहरे ही थे सो एक जगह तो देख ही ली. अनाशक्ति आश्रम के सामने हिमालय का दृश्य अद्भुत है. यह अद्भुत दृश्य कौसानी एस्टेट की मुख्य सड़क से हर जगह से दीखता है और यही कौसानी का मुख्य आकर्षण है. 

अनासक्ति आश्रम : यह कौसानी का गाँधी आश्रम है. गाँधी के विचार मुझे आकर्षित करते हैं. गाँधी का समाज, उनका अर्थशास्त्र जिसमे समाज का अंतिम तबका भी शामिल हो, गाँधी का लोकतंत्र जिसमे निर्बल की भी सहभागिता हो, ये सारे विचार मुझे प्रभावित करते हैं. उनके हिदुत्व का विरोध अम्बेडकर करते थे क्यूंकि उनका मानना था  कि उंच नीच, छुआ छूत और भेदभाव की जड़ हिन्दू धर्म है और गाँधी हिंदुत्व के घनघोर पक्षधर थे. अम्बेडकर के इस विचार से मैं भी सहमत हूँ. 
गाँधी कौसानी में 19 जून 1929 को पहुंचे थे और  14 दिन तक रुके थे.यहाँ उन्होंने ने अनासक्ति योग का अनुवाद व समीक्षा लिखी थी. इसीलिए इस आश्रम का नाम अनासक्ति आश्रम  रखा गया. इसकी स्थापना गाँधी जी की एक अनुयायी सरला बेन ने की थी जिनका असल नाम Catherine Mary Heilman था. उत्तराखंड में सरला बेन का सामाजिक योगदान अतुलनीय है. ये चिपको आंदोलन में भी शामिल रहीं. इन्होने एक लक्ष्मी आश्रम(कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल) नामक संस्था की भी स्थापना की जिसमे वर्तमान में भी लड़कियां पढ़ने लिखने के साथ साथ कढ़ाई बुनाई, खेती बाड़ी, सारा काम खुद करती हैं. 

अनासक्ति आश्रम का प्रवेश द्वार 

अनासक्ति आश्रम


यही मुख्य आकर्षण है कौसानी का 

त्रिशूल पर्वत 


चुन्नू भाई और मुनमुन 
अनासक्ति आश्रम में लगी यह पट्टी यहाँ से दिखने वाले सभी पर्वतों की लोकेशन और ऊंचाई बताती है.. 

इन नम्बरों पर बुकिंग की जा सकती है 





आश्रम में ही किसी से पूछने पर पता चला सुमित्रानंदन पंत संग्रहालय बाजार के पास ही है. कौसानी के मुख्य तिराहे की जिसकी चर्चा हमने की थी वही से ऊपर की तरफ सीढ़ियाँ जाती हैं. 50-60 सीढ़ियां चढ़ने पर दाहिने साइड में पंत संग्रहालय है. यहाँ पंत जी के चित्रों के अलावा उनके कुछ सामान रखे गए हैं. वहां के केयरटेकर ने हमें बड़े उत्साह से सभी सामानों और चित्रों के बारे में बतलाया. 40-45 मिनट पंत जी के दर्शन करने के बाद लक्ष्मी आश्रम देखने चले. किसी से पूछा तो पता चला स्टेट बैंक के पास से जो सीढ़ियां ऊपर जा रही हैं उन्हें छोड़ना नहीं. उनका अंत आश्रम के गेट पर ही होगा. लगभग आधा घंटा लगा लक्ष्मी आश्रम पहुँचने में. बालिकाएं मौज मस्ती करती हुईं अपना काम कर रही थी. उन्होंने बताया कि उनके एक्साम्स चल रहे हैं इसलिए प्रदर्शनी अभी बंद है लेकिन आप आश्रम, गौशाला वगैरह देख सकते हैं. बहुत दिव्य और मनोरम जगह पर आश्रम है. लेकिन पैदल ही जाना होगा. हम लोग थोड़ी देर वहां व्यतीत किये और वापस आ गए. साढ़े पाँच बज गए थे.




ढेर सारे चित्रों में यह चित्र मेरे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्यूंकि इसमें एक चित्र भगवती चरण वर्मा का है जिनके चित्रलेखा उपन्यास ने जीवन के प्रति मेरे सोच को एकदम बदल दिया।

लक्ष्मी आश्रम का रास्ता 












कौसानी में एक शॉप है जिसमे एक दूरबीन से आकाश को और विभिन्न प्रकार के ग्रहों/उपग्रहों को दिखाते हैं. बच्चों में इसका बड़ा आकर्षण है. अनासक्ति आश्रम जाते वक़्त बीच में ही यह पड़ता है. नाम है-Stargate Observatory - Kausani. शाम में यह साढ़े पांच बजे खुलता है. हमलोग पहुंचे। टिकट लिया एक व्यक्ति का 500 रुपये. थोड़ा महंगा लगा. लेकिन जो व्यक्ति 12-15 लाख की दूरबीन से आकाश को दिखता हो और ज्ञान भी देता हो, 500 रुपये ठीक ही हैं.  ज्ञान मेरा भी बढ़ा. वीनस, जुपिटर और सैटर्न की आकाशीय स्थिति वही से जान पाया. चन्द्रमा को एकदम पास से देखना एक अलग अनुभव था. सैटर्न के छल्ले को दूरबीन से ही देखा जा सकता है. कुल मिलाकर बच्चों को भी बड़ा मजा आया और मुझे भी. पैसा वसूल. 
एक बात और कौसानी में चन्द्रमा डेढ़ बजे दिन में ही दिखने लगता था. मतलब चाँद और सूरज एक साथ एक लम्बे समय के लिए. 
साढ़े सात बजे आश्रम पहुंचे। वही खाना खाया. दाल चावल रोटी सब्ज़ी सलाद। बिना लहसुन प्याज़ के. कीमत 80 रुपये. जल्दी ही सो गए. नींद अच्छी आयी.. 

अनासक्ति आश्रम से सूर्योदय 

अनासक्ति आश्रम से सूर्योदय 

अनासक्ति आश्रम से सूर्योदय 

अनासक्ति आश्रम से सूर्योदय 

अनासक्ति आश्रम से सूर्योदय 
दूसरे दिन का कुछ प्लान नहीं था. पूछने पर पता चला एक रुद्रधारी  झरना है जो 10 किलोमीटर सड़क और डेढ़ किलोमीटर जंगल का पैदल रास्ता है. पिन्नाथ मंदिर है जिसके लिए 7 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी पड़ेगी वो भी एक तरफ से.  14 किलोमीटर. मतलब इसमें दिनभर लग जाना था. इसलिए पिन्नाथ का प्लान अगली बार  के लिए स्थगित कर दिया गया. 17 किलोमीटर दूर बैजनाथ मंदिर समूह है. निर्णय ये लिया गया कि रुद्रधारी चलते हैं और समय मिला तो बैजनाथ चलेंगे. एक गाड़ी वाले से बात की. बोला कि सिर्फ रुद्रधारी और आसपास 1500 रुपये. बैजनाथ जायेंगे तो कुल 2200 रुपये. मोलभाव का कुछ फायदा नहीं हुआ.. और हमारी टाटा सूमो चली रुद्रधारी की ओर. रुद्रधारी वॉटरफॉल के लिए कांटली(Kantali) गाँव जाना पड़ेगा उसके बाद पैदल रास्ता है जंगल का. पिन्नाथ मंदिर के लिए ट्रेक भी यहाँ से शुरू होता है. पगडण्डी एकदम क्लियर है.शुरुआती रास्ता थोड़ा पथरीला है उसके बाद बढ़िया पगडण्डी है जो कोसी नदी के साथ साथ चलती है. यहाँ गाइड भी मिल जाते हैं. डेढ़ दो किलोमीटर तो हम बिना गाइड के भी जा सकते हैं लेकिन जब बन्दे ने 200 रुपये कहा तो साथ चलने को कह दिया. बढ़िया बंदा था.रास्ते भर बातें करते गया. जब ये बोला कि यही कोसी बिहार वाली है तो हमने कहा भाई इतना मत फेंक। खैर वो अपना काम बखूबी कर रहा था. मजे करते फोटो लेते रुद्रधारी वाटर फॉल पहुंचे. फॉल तो नाम का है लेकिन रास्ता शानदार है. वहां एक मंदिर भी है. इतने अंदर जंगल में पानी के लिए नल और शौचालय देखकर अच्छा लगा.  

रुद्रधारी रास्ते कोसी नदी और मुनमुन 

एक दुर्लभ चित्र जो हर यात्रा में एक ही होता है 


रुद्रधारी के रास्ते 
रुद्रधारी झरना 

शौचालय 

रुद्रधारी मंदिर 

वहां से वापसी किये और बैजनाथ के तरफ चल पड़े. रास्ते में चाय बागान के पास खाना खाये. बैजनाथ मंदिरों का समूह है और गोमती नदी के किनारे है. दिव्य जगह है. गोमती पर बैराज है और यहाँ बोटिंग वगैरह होती है. तो हमने भी एन्जॉय कर लिए.वापसी में चाय बागान देखने का आईडिया ड्रॉप कर दिए और शॉल फैक्ट्री पहुँच गए. हथकरघा देखा, कुछ खरीदने की सोची लेकिन बहुत महंगा होने की वजह से नहीं खरीदा. और दूसरे दिन का समापन हुआ.

बैजनाथ मंदिर समूह 


बैजनाथ मंदिर के पास बोटिंग 

बैजनाथ मंदिर के पास बोटिंग 






चूनु मुनमुन का आनंद 



गोमती नदी 

गोमती नदी 

गोमती नदी 

हथकरघा 


तीसरा दिन वापसी का दिन था. शाम को काठगोदाम से ट्रेन थी. कौसानी से हल्द्वानी के लिए प्राइवेट बसें बहुत हैं. हमने आते समय ध्यान नहीं दिया नहीं तो बस से आ जाते. हम सिर्फ सरकारी बस के फ़िराक़ में रह गए. सुबह सुबह सोचा थोड़ी सैर कर ली जाय फिर बस पकड़ लेंगे. किसी से पूछा अनासक्ति  आश्रम वाली सड़क कहाँ तक जाती है. पता चला बस चार पांच होटल हैं उसके बाद फॉरेस्ट एरिया शुरू हो जाता है. जंगल में एक मंदिर आएगा लगभग एक किलोमीटर बाद उसके बाद मिलिट्री एरिया है. जाना मना है. लेकिन मंदिर से ही एक पक्की पगडण्डी नीचे वाली सड़क, जिसपर कुमाऊं मंडल का गेस्ट हाउस है ,पर जाती है. तय किये कि ऊपर वाली सड़क से चलते हैं जंगल घुमते हुए नीचे वाली सड़क से कुमाऊं मंडल गेस्ट हाउस तक चलकर नीचे से ही वापसी कर लेंगे. फिर वापसी की ओर. अनासक्ति आश्रम के एकदम बगल में जिला पंचायत अतिथि गृह है. पूछा कि इसे कौन चलाता  है, पता चला अब यह प्राइवेट ठेके पर है. किराया हज़ार पंद्रह सौ है. आगे बढे तो सड़क ऊपर की तरफ बढ़ चली. एक गेट मिला. नेचर पार्क टिकट घर. लेकिन वहां कोई नहीं था. हम बिंदास बेधड़क अंदर गए. कच्ची  लेकिन अच्छी सड़क है वन विभाग की.. बहुत अच्छे अच्छे quotations लिखे मिले जंगल के बारे में. लगभग आधे घंटे बाद मंदिर मिला। मिलिट्री की फेंसिंग दिखी और सामने पगडण्डी भी. नीचे उतरे. बालकों को भूख लग गयी. उस सडक पर कई होटल हैं. लेकिन सुबह सुबह कुछ खुला नहीं मिला. एक आदमी टहलता हुआ दिखा तो पूछ बैठा कहीं कुछ खाने को मिलेगा क्या।जवाब मिला-इतनी सुबह तो नहीं. उस समय 8 बज रहे थे. आगे कुमाऊं मंडल का गेस्ट हाउस है.वहां एक दुकान है शायद कुछ मिल जाय. आगे बढे। केंद्रीय विद्यालय दिखा.फिर इंटर कॉलेज. फिर राज्य अतिथि गृह. उसके गेट पर सुन्दर आकृति उकेरी गयी थी. उसे ही देखने लगा. वहां के कर्मचारी यूँ पूछ बैठे। कहाँ ठहरे हैं. बताया अनासक्ति आश्रम. साथ ही पूछ लिया यहाँ कुछ खाने को मिलेगा क्या. बोले अंदर आ जाइये..हम ही पराठा दही खिला देंगे. ग़ज़ब शानदार प्रॉपर्टी थी. एकदम दिव्य जगह पर. 1922 की बनी. बातों बातों में वहां के मैनेजर ने बताया कि इसकी बुकिंग सचिवालय देहरादून से होती है. सरकारी कर्मचारी के लिए कमरे का किराया 500 रुपये है. सचिव स्तर के अधिकारियों  के किये किराया 150 रुपये है.  मंत्री, राज्यपाल के लिए एकदम मुफ्त. है न उलटी गंगा.. हमारा देश भारत है यहीं बह सकती है उलटी गंगा. मैंने पूछा आम पब्लिक के लिए भी बुकिंग होती है क्या. बोले हाँ - ख़ाली  रहने पर. किराया मात्र 1000 रुपये.. हालाँकि 1000 रुपये में भी यह प्रॉपर्टी एकदम सस्ती है.आधे घंटे में हमारा नाश्ता आया. एकदम तमीज से. भूख लगी थी , खाकर मजा आ गया.. फिर कभी ज़रूर आएंगे यह कहते हुए वापसी किये. यह मॉर्निंग वॉक  शानदार  और यादगार रहा. आश्रम आये हिसाब किताब किये 1030 बजे बस पकडे और 4 बजे काठगोदाम। 

सुबह की मॉर्निंग वॉक 

ये हरियाली और ये रास्ते 

ये हरियाली और ये रास्ते 




और पहुँच गए मंदिर के पास 

मंदिर के सामने की पगडण्डी 


नीचे की सड़क  के पास घंटी लगी है 


सड़क के किनारे का दृश्य













अतिथि गृह से १५वीं सालगिरह 

एक पुराना  घर 



लौटते लौटते सरला बेन संग्रहालय। यह अनासक्ति आश्रम के पास में है 





-इति यात्रा

 

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