रविवार, अक्टूबर 03, 2021

जॉर्ज एवरेस्ट हाउस-मसूरी-चिन्दी सी यात्रा

2 अक्टूबर 2021।गांधी जयंती।वैसे तो शास्त्री जयंती भी है लेकिन दुनिया गांधी जयंती के नाम से ज़्यादा जानती है।

कहीं जाने का प्लान था लेकिन कहाँ, पता नहीं।सुबह उठे नहा धोकर तैयार।सोचा कहीं कोई गांधी म्युज़ियम जैसा कुछ हो तो देख आएं।गूगल बाबा ने जब हाथ खड़े कर दिए तब सोचे मसूरी की तरफ चलते हैं।जहाँ तक मन करेगा चलेंगे फिर वापस। नाश्ता किये।गूगल मैप में मसूरी लगाया और चल पड़े।
गूगल बाबा एक छोटा रास्ता बता रहे थे।हमने कहा वो भी अच्छा है।मेन मसूरी रोड पर ट्रैफिक बहुत रहता है।वो भी छुट्टी का दिन हो तो फिर क्या कहने।तो हम उस छोटे रास्ते पर चल पड़े।थोड़ी ही देर बाद हम किसी आर्मी कैंट एरिया में थे।रास्ता दिव्य।तो भाई हम रास्ते की दिव्यता से अभिभूत हुए आगे बढ़े जा रहे थे।जैसे जैसे गूगल बाबा का पतरा बोला वैसे वैसे हमने अपनी स्कूटी की हैंडिल घुमाई। 3-4 किलोमीटर बाद एक बैरियर लगा था, एक आर्मी वाले भाई भी थे।पूछ बैठे - कहाँ।
"मसूरी"
"ये रास्ता केवल आर्मी की गाड़ियों के लिए है।" आम पब्लिक, यानि हम जैसे गए गुजरे नहीं जा सकते। मैंने पूछा-ये मसूरी जाता है रास्ता?हाँ लेकिन आप नहीं जा सकते।
फिर क्या वापस हुए।
एक आम आदमी से पूछे वो बताया जिधर से आये हैं उधर ही चले जाइये।यहां आने के लिए आपने लेफ्ट लिया होगा, राइट ले लीजिए।
कुल मिलाकर गूगल ने ऐसी की तैसी कर दी।जैसा कि बंधु न बताया था चल पड़े। बाबा गूगल बार बार याद दिला रहे थे अबे उल्टा कहाँ जा रहा है।कह रहा हूँ इधर जाने को ऊधर कहाँ जा रहा है बे।यू टर्न मार जल्दी।लेकिन हमने एक न सुनी।जब मुख्य रास्ते से दायीं हो गए तब बाबा ने रास्ता बदला और एक और रास्ता बताया।यह भी मसूरी मुख्य सड़क नहीं है।
यह सड़क भी शानदार है।पहाड़ों में शानदार का मतलब हाईवे नहीं होता, साफ सुथरी बिना गड्ढे की सर्पाकार लहराती सड़क को हम शानदार कहते हैं।
यह सड़क देहरादून के बीचर रोड से लेफ्ट होकर किमडी होते हुए मसूरी पहुंच जाती है।शनिवार और 2 अक्टूबर होने बावजूद कोई ट्रैफिक नहीं।
किमडी से थोड़ा पहले किसी गांव में कचरे वाली गाड़ी जा रही थी और गाना बज रहा था-गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल, गाड़ीवाला आया घर से कचरा निकाल।तो यह गाना ज़बान पर ऐसा चढ़ा कि रास्ते भर यही गाते गए।
किमडी पहुंचे और सड़क किनारे लगे एक बेंच पर बैठ गए।यहां से मसूरी 20 किलोमीटर।
विचार ये हुआ कि अब वापस चला जाय।चुन्नू बाबू बोले एक घंटा मसूरी जाने में लगेगा, और इतना ही वापस घर जाने में लगेगा।फिर हुआ कि आगे ही चलते हैं।बहुत टाइम है अभी।चुन्नू बाबू बोले कि मेरी इच्छा तो हाथी पाँव देखने की हो रही है।जी हाथी पाँव भी एक जगह है जो किमडी से 12 किलोमीटर है।वैसे हमलोग उसी रास्ते पर जा रहे थे।
रास्ते मे एक कैफ़े मिला, नाम था-बेस कैम्प।रुके, चाय(मियां बीबी) और मैगी(बच्चे) की दावत हुई और आगे बढ़े।वहां पहुंचे जहां से एक रास्ता जॉर्ज एवरेस्ट हाउस की ओर जाता है और एक मसूरी की ओर। मसूरी एक बार गया था।गुडगांव सदर बाजार जैसा लगा था मुझे।शनिवार था इसलिए सदर बाजार का लुत्फ़ नहीं लेना था।सोचे जॉर्ज एवरेस्ट हाउस देखते हैं और फिर वापसी।
रास्ता भयंकर खराब और जबरदस्त ढलान।100 मीटर नीचे उतरे, गाड़ियां सड़क के किनारे खड़ी थीं।एक भलेमानुस ने कहा, बस मुश्किल से 200 मीटर तक ही गाड़ी जाएगी उसके बाद पैदल जाना है।कोई फायदा नहीं।आप यहीं गाड़ी खड़ी कर लें।जगह थी इसलिए स्कूटी किनारे लगा लिए और आगे बढ़े।तलहटी में पहुंचकर जहां से चढ़ाई शुरू होती है वहां कई दुकानें हैं।पराठा और विश्व प्रसिद्ध मोमो यहां सहज उपलब्ध हैं।वाशरूम नहीं है इसलिए यहां शौच आदि महत्वपूर्ण क्रियाएं, खुले में ही करनी होगी।
अबतक दोपहर का एक बज चुका था।पूछा तो पता चला ऊपर जाने में एक घंटा लगेगा। इसलिए पेट पूजा करके जाने में ही भलाई है।हमने आलू पराठे और बालकों ने मोमो खाये।
पेटपूजा करके आगे बढ़े तो एकदम खड़ी चढ़ाई ने स्वागत किया।रास्ता शानदार बना है इसलिए चढ़ने में दिक्कत नहीं हो रही थी।15 मिनट चलते ही एक कैफ़े आया।
बेटी बोली अब नहीं जाउंगी।यहां बहुत लोग थे।झूले वुले थे।हमारी इच्छा तो थी आगे बढ़ने की लेकिन बेटी नहीं जाएगी तो वापसी की राह लेनी पड़ी।वही थोड़ी देर बैठे और वापस हो लिए।
स्कूटी लेकर चढ़ना शुरू किए कि दो गाड़ियां आमने सामने हो गईं।उनको निकलने में और हमे मेन सड़क पर आने में 20-25 मिनट लग गए।
प्लान ये बना कि यहां आ ही गये हैं तो मसूरी-पहाड़ो की रानी के दर्शन करते चलें।ये जानते हुए भी कि गुड़गांव सदर जैसा ही होगा मसूरी चले।3 ही किलोमीटर की तो बात थी।मसूरी बाजार सदर बाजार से भी गयी गुजरी हालात में था।लगा जैसे मेला लगा हो।अपार भीड़।ख़ैर ये पूर्वानुमान के हिसाब से ही था।मसूरी चौराहे पर गांधी जी की प्रतिमा है लेकिन वहाँ भीड़ को देखकर स्कूटी आगे बढ़ा दी. हमलोग उतरने लगे।हम तो धीरे धीरे उतर गए लेकिन मसूरी पहुंचने वाली कारों और बसों की लाइन 4 किलोमीटर लंबी थी।
जैसे तैसे बाहर निकले।मसूरी मुख्य मार्ग शानदार है।रास्ते में बेतरतीब बेहिसाब चलती गाड़ियों को देखते ही हम कहते यह पक्का दिल्ली हरियाणा की गाड़ी होगी और अनुमान शत प्रतिशत सही होता।इनको देखकर भी सफाई वाला गाना याद आता, गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल। रास्ते मे भुट्टा खाते, देहरादून में घुसने से पहले वड़ा, डोसा खाते पीते घर वापस आ गए।






















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