रविवार, दिसंबर 30, 2018

जंजैहली शिकारी माता यात्रा



दिनांक : 22.12.2018
समय    : शाम 05:05 

एक बड़ा सा ट्रैवेलर बैग ढेर सारे कपड़ों से भरा जा चुका था.एक हैंडबैग में खाने की सामग्री से लैश होकर भोपाल के लिए कूच करने ही वाले थे कि एक धमाकेदार मैसेज से मोबाइल की स्क्रीन चमकी.भोपाल जाने के लिए लिया गया वेटिंग टिकट वेटिंग ही रह गया था और श्रीमती जी का भोपाल जाना स्थगित.
  • हालाँकि पता नहीं क्यों चेहरे पर मायूसी के बजाय मुस्कान बरकरार थी.ऐसा अक्सर नहीं होता.पत्नियों के लिए मायका हमेशा से अति विशिष्ट होता है.आइये कुछ मजेदार बात समझते हैं.थोड़ा गौर कीजियेगा.हर पत्नी के लिए उसका मायका उसके पति के घर से कई गुना बेहतर होता है.मसलन मेरी मां को भी मेरे नानी गाँव की हर चीज़ हमारे यहाँ से बेहतर लगती है.हालाँकि हमें ऐसा बिलकुल नहीं लगता.मतलब पीढ़ी दर पीढ़ी पीछे जांय तो मायका बेहतर और बेहतर और बेहतर ..अब दूसरा पक्ष लेते हैं.बतौर जावेद अख्तर, पति को हमेशा उसके माँ के हाथ का खाना पत्नी से बेहतर लगता है.यानि पीढ़ी दर पीढ़ी खाने की क़्वालिटी ख़राब और ख़राब और ख़राब..आनेवाली पीढ़ी और ख़राब खाना खायेगी क्योंकि मां से अच्छा तो कोई बना ही नहीं सकता..चलो जी ये हुई मजाक की बात.अब आगे बढ़ते हैं.


थोड़ी देर के लिए मुस्कराहट के साथ सन्नाटा.
इस सन्नाटे जो तोड़ते हुए मैं कहा-जंजैहली चलें क्या?
"            चलो"
बालकों से कहा-बर्फ देखने चलें.दोनों तैयार.हाँ ये पूछा ज़रूर की नानी के यहाँ नहीं जाएंगे क्या?और शाम 6 बजकर 5 मिनट पर हम कश्मीरी गेट बस अड्डे के लिए रवाना हो चुके थे.

कुछ दिन पहले मैंने नीरज गुरु को व्हाट्सएप्प किया -
"क्या हाल चाल?"
"इसका मतलब जंजैहली चल रहे हो."(स्माइली के साथ)
"नहीं भाई उस समय गाँव जाने का टिकट करा चुका हूँ.बस ऐसे ही हाल चाल पूछ लिया"

सार ये कि जंजैहली जाने का कोई प्लान नहीं था.फिर एकदम से एक घटना घटीऔर श्रीमती जी का मन भोपाल जाने का हो गया.टिकट था नहीं तो तत्काल करवाया.तत्काल की वेटिंग 1,2.हालाँकि वो भी कन्फर्म नहीं हुआ और इस शानदार यात्रा का आग़ाज़ हुआ.

शाम 8 बजे बस अड्डे पर हिमाचल परिवहन के बुकिंग काउंटर पर गए.जंजैहली का रास्ता मनाली वाले रास्ते पर मंडी से अलग होता है.मनाली वाले काउंटर पर अपार भीड़ थी और हमेशा की तरह कोई लाइन नहीं थी.पुराने ज़माने के सिनेमा टिकट काउंटर की तरह, दम है तो टिकट ले लो.बड़ी मुश्किल से टिकट वाले के पास पहुंचा.
"मंडी"
"कोई टिकट किसी भी गाडी में नहीं"
"जंजैहली"
"गाड़ी नंबर xxxx  छूटने वाली है.बस के अंदर जाकर पूछो."
"गाड़ी कहाँ खड़ी है?"
"मेरे पॉकेट में.आसपास देखो और लाइन से हटो".वो चिढ चुका था 
जंजैहली वाली बस को ढूँढा.उसके कंडक्टर से पूछा. जवाब मिला-कोई सीट नहीं.
तो इस तरह हिमाचल परिवहन ने हमें बेरहमी से धकिया दिया.

बेटी को भूख लग गयी थी सो वहीँ पर खाना खाया.खाना खाकर बाहर बस अड्डे से निकले ही थे कि आवाज़ आयी-मनाली..मनाली..नहीं भाई अपने को तो मंडी जाना है.तो भाई आ जाओ मंडी उतार देंगे.किराया मनाली का ही लगेगा.वह एक प्राइवेट बस वाला था.बस पास में ही खड़ी थी.देख ताककर 4 टिकट ले लिया.रात 10 बजे के क़रीब बस चली.बस में बैठकर नीरज से अपनी योजना का खुलासा किया और मंडी से आगे के लिए फास्टेस्ट साधन पूछा.नीरज ने कुछ बताया और कहा सुबह फ़ोन करना.तबतक कोई और रास्ता निकल आये.इसी दौरान बस में बैठे बैठे ही लौटने का टिकट हिमाचल परिवहन वॉल्वो से करा लिया.हिमाचल परिवहन की बसें हर हाल में प्राइवेट बसों से अच्छी होती हैं.प्राइवेट बस जहाँ 15-16 घंटे में मनाली पहुंचती हैं वहीँ हिमाचल परिवहन 13-14 घंटे में.बसों का कम्फर्ट भी प्राइवेट से बेहतर होता है.सोने पे सुहागा ये रहा कि ड्राइवर रास्ता भूल गया और हम झेलते झेलते 10:30 पर मंडी से 12 किलोमीटर पहले नेर चौक पहुंचे.  

बिलासपुर में नीरज को फ़ोन लगाया.नीरज ने बताया जल्दी आना है तो टैक्सी से आ जाओ.बस भी मिल जावेगी.लेकिन टाइमिंग का नहीं पता.नेर चौक पर उतर जाओ.एक टैक्सी वाला वहीं पर है. नंबर देता हूँ.नेर चौक पहुंचकर टैक्सीवाले को फ़ोन करके पास के ही रेस्टोरेंट में पराठा खाने लगे.जल्दी ही टैक्सी वाला आया और हम चल पड़े जंजैहली की ओर.रस्ते में एटीएम से पैसे निकाले और मस्त मस्त नज़ारों का आनंद लेते हुए 1:1० पर जंजैहली पहुंचे.नीरज ने हमारे लिए होटल में कमरे बुक कर रखे थे.कमरा शानदार था.तीन बेड.दो बढ़िया आरामकुर्सियाँ.टेबल.और पीछे कलकल करती नदी का मधुर स्वर. ठण्ड बहुत थी.नहाने जैसे पापकर्म से छुट्टी ले ली.हालाँकि गीजर उपलब्ध था, फिर भी.खाना खाया.बढ़िया मिक्स वेज और कढ़ी जिसे नीरज ने अपने लिए बनवाया था और बिना खाये  ग्रुप के साथ बूढा केदार के ट्रेक पर निकल गए थे.बूढा केदार ट्रेक पर नीरज द्वारा निर्मित शानदार वीडियो यहाँ देखिये.

तो बात ये हुई कि नीरज साहब चले गए बूढा केदार और खाना खाकर हम फ़ुरसत में .2 बजे थे.होटल वाले से पूछा बर्फ कितनी दूर है.जवाब मिला-7 किलोमीटर दूर.गाड़ी मिल जाएगी.फिर उसी ने एक गाडी वाले को फ़ोन किया.4०० रुपये में आना जाना 3 घंटे के अंदर.बर्फ शिकारी देवी के रास्ते पर ही हमारे होटल से 5 किलोमीटर आगे थी.बहुत सारी.बालक बेहद खुश.खेलना चालू.लेकिन ठण्ड बहुत थी.हाथ सुन्न हो गए.मुनमुन ने थोड़ी ही देर में हाथ खड़े कर दिए.हो गया खेलना.वहीं टहलते रहे.फोटो खींचते रहे.हिमाचल पर्यटन वहां एक पार्क विकसित करने वाला है जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री ने हाल ही में किया है.4 बजे तक वापिस आ गए और रज़ाई के अंदर.
सात बजे फ़ोन आया नीरज का. हमारे कमरे में आ जाओ. 
खूब गपशप हुई. रात का खाना खाकर और सुबह शिकारी देवी जाने का प्लान बनाकर सो गए.थकन बहुत थी साथ ही माइनस 3 डिग्री तापमान भी.सुबह सात बजे तक सोते रहे.

कुछ बात तो है.घर में होते हैं तो आलस ज़्यादा आती है सुबह उठने में.लेकिन पहाड़ों में सुबह नींद अपने आप खुलती है.जागो तो एकदम खिला खिला सा महसूस करो.हम भी 7 बजे तक जागे.नहाते धोते नाश्ता करते 10:30 बज गए.आज हमें शिकारी माता मंदिर जाना था.मंदिर की पार्किंग जंजैहली से 16 किलोमीटर दूर है और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है.पार्किंग से मंदिर के लिए पक्की सीढ़ियां बनाई गयी हैं जो लगभग 1 किलोमीटर हैं.हमारा होटल जंजैहली शिकारी मार्क पर जंजैहली से 2 किलोमीटर आगे था.यहाँ से हम गाडीसे शिकारी माता के लिए चले.7 किलोमीटर के बाद भारी बर्फ की वजह से रास्ता गाड़ियों के जाने लायक नहीं है.हम गाड़ी से उतरे और आगे के 7 किलोमीटर के लिए पैदल चल पड़े. समय था 10:50.

मंज़िल से ज़्यादा खूबसूरत रास्ते होते हैं.सड़क एक नाले के किनारे किनारे बनी है.नाला जम चुका था.चारों तरफ बर्फ की चादर बिछ गयी थी.जहाँ भी धूप थी वहां की बर्फ पिघल गयी थी.कहीं कहीं तो बर्फ की वजह से फिसलन भी हो गयी थी.फोटो वोटो लेते हुए फिसलन से बचते बचाते चलते रहे.जब पार्किंग  1 किलोमीटर रह गयी तो श्रीमती जी ने हार मान ली.अब नहीं चल सकते.बेटी भी थक चुकी थी.दोनों ने निर्णय लिया रुकने का.हमलोग आगे बढे.साथ ही मैंने कहा-यहाँ जंगल में तेंदुए हैं हल्ला गुल्ला करते रहने.बच्चों को तेंदुए उठाकर ले जाते हैं.केवल 1 किलोमीटर रह गया है हिम्मत आ जाय तो आ जाना.

2:40 पर हम शिकारी माता पार्किंग पहुँच गए.पीछे देखा तो श्रीमती जी भी आ रहीं हैं.थकान की वजह से हमने ऊपर सीढ़ियां न चढ़ने का निर्णय लिया और वहीं रुक गए.हमारे एक और मित्र शुभम भी रुक गए.बाक़ी जन ऊपर शिकारी माता गए.हमने वहीं से फोटो वोटो लिए और आराम किये.4:45 पर मंदिर से लौट कर सभी आ गए और हमारी वापसी की यात्रा आरम्भ हुई.लोगों ने बताया ऊपर पानी नहीं था.हालाँकि मंदिर के पास पानी की व्यवस्था है.चूँकि आजकल कोई नहीं आता इसलिए पानी की भी व्यवस्था नहीं हैं.मित्रों ने बर्फ पिघलाकर गले को तर किया.

अँधेरा होता जा रहा था.जंगलों में वैसे अँधेरा जल्दी हो जाता है.6 बजे तक एकदम अँधेरा हो गया.घनघोर जंगल में मोबाइल टॉर्च की रौशनी में धीरे धीरे उतरते रहे.पैर जवाब दे रहे थे लेकिन उतरना तो था ही.एक जगह तो पैर फिसल गया और मैं गिरते गिरते बचा.सड़क मार्ग पर चलने की वजह से कोई दिक्कत नहीं हो रही थी.सिर्फ थकान थी.जैसे तैसे हांफते हुए 6:45 पर गाड़ी के पास पहुंचे और 7 बजे तक होटल.
होटल पहुंचकर चाय की चुस्की ली गयी.बाहर आग जलाई गयी और घेर कर बैठ गए.नीरज जी के एक चाहने वाले प्रवीण जी नीरज से मिलने जंजैहली आये थे.सबके साथ ढेर सारी गपशप, बकवास, ठहाके, कहकहों का दौर चला.फिर खाना और रात्रि विश्राम.

हर यात्रा का कुछ हासिल होता है.इस बार भी कुछ विशिष्ट लोगों से मुलाकात हुई.हमारे मित्रों में से एक थे राकेश शर्मा जी.राकेश जी एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं.जंजैहली के बाद उनका अगला पड़ाव था पालमपुर जहाँ एक लीडरशिप प्रोग्राम में उन्हें लेक्चर देना था.लौटते वक़्त मंडी में उनसे बहुत सारी बातें हुई.वो दलितों के हितों की रक्षा में उनकी आवाज़ बनते हैं.राकेश जी एक NGO में काम करते हैं साथ ही "शून्यकाल" नामक ऑनलाइन पोर्टल के सह-संपादक हैं.शून्यकाल नामक यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी समाज के वंचितों के लिए काम करते हैं.उनसे ढेर सारी सामाजिक और राजनीतिक चर्चा हुई.मजा आ गया.कुछ लोग तो हैं जो वंचितों की बात रखते हैं वर्ना यहाँ तो मंदिर,मस्जिद,मूर्ती,गाय,नेहरू,पटेल इत्यादि से ही किसी को फ़ुरसत नहीं.राजस्थान के घुमंतू जातियों पर भी उन्होंने काफी काम किया है और उनका जीवन नजदीक से देखने का प्रयास किया है.मैंने उनसे पूछा - आपके घर में, आपके इस प्रोफेशन से दिक्कत नहीं हुई.बोले-हुई.लेकिन जब मेरे फोटो और विचार अख़बार में छपने लगे और टीवी पर आने लगा तो लोगों को लगा कुछ तो अच्छा ही कर रहा होगा.अब सब ठीक है.कुल मिलाकर राकेश जी से मुलाकात शानदार रही.

दूसरी शख्सियत थे शुभम साहब.IIT  में पढ़े लिखे हैं.आईआईटियन हमेशा ही मुझे आकर्षित करते हैं.शुभम और हर्षित के बीच अनेक टेक्निकल बात चित हुई.मुझे तो कुछ पल्ले नहीं पड़ा लेकिन कुछ अच्छा ही था.तीसरे मित्र थे मुनीष राठौर.ये पंजाब पुलिस में फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट हैं और बहुत केयरिंग नेचर के हैं.अँधेरे में हर जगह फिसलन में रास्ता बताते आये.

25 तारीख को वापसी थी.सोकर उठे.नाश्ता किये.इधर उधर टहले.1 बजे मंडी के लिए प्रस्थान कर गए.4 बजे मंडी.10:30 पर हिमाचल परिवहन. 7:30 सुबह दिल्ली बस अड्डा और 8:30 बजे ग्रेटर नॉएडा.

अब कुछ चित्र देखिये...

हमारी सराय
चुन्नू मुन्नू की मस्ती



बिटिया रानी बड़ी सयानी 


इकलौती फैमिली फोटो 





आग सेंकते हुए 

होटल के ठीक पीछे नदी 

सेब के बगान - कुछ पेड़ चूने से रंगे हुए थे कीड़ों से बचाने के लिए.चुन्नू बाबू ने पूछा बाकी क्यों  नहीं रंगे.इसका जवाब मेरे पास नहीं है.

बर्फ वाले रास्ते

जहाँ सीधी धूप है वहां बर्फ नहीं है

कहीं से दिखती पर्वत श्रंखला 
नाले का पानी जम गया है 
डॉन


पत्थर की नाव में बरफ़ 





यहाँ एक हैंड पंप था.हाथ जमा देने वाला पानी.

शिकारी माता जाने के दो रास्ते हैं.एक जंजैहली से और दूसरा सनारली से. रायगढ़ में दोनों मिल जाते हैं.









और ये पहुंचे शिकारी माता पार्किंग 



पार्किंग के पास शौचालय भी है. अभी ताला लगा हुआ है.


इस फोटू की खासियत यह कि चुन्नू बाबू ने खुद अपनी तस्वीर ली है.
पार्किंग के पास आराम - पीछे सीढ़ियां शिकारी माता जा रही हैं


और ये वापसी 



अगर आपको 'snake ' खाना हो तो यहाँ आ सकते हैं.ये नहीं समझ आया snake शाकाहारी कैसे हो गया.

पंडोह डैम

मंडी 

मंडी 

मंडी -यहाँ पक्षियों की चहचहाट जोरों पर थी.एक अरसे बाद इतनी सुनी.

और आखिर में बस का इंतज़ार 
-इति यात्रा
-नीरज गुरु को कोटिशः धन्यवाद  

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुपरफास्ट ... प्लानिंग से लेकर लिखने तक...

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  2. क्या बात है बहुत अच्छा लिखते है

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