मंगलवार, फ़रवरी 14, 2017

नीमराणा की बावड़ी

 स्वभाव से मैं घुमंतू हूँ और कोशिश रहती है कि पावों में जो चक्करघिन्नी लगी है वो घूमती रहे.तो उसी चक्करघिन्नी को घुमाते हुए शनिवार को हमने प्लान बनाया नीमराणा का.कारन गुडगाँव के पास होना.बहुत पास भी नहीं है.गुडगाँव में मैं जहाँ रहता हूँ वहां से पूरे 100  किलोमीटर दूर.
यहाँ मैं नीमराणा के इतिहास की चरचा नहीं करूंगा.वो आप गूगल से ले सकते हैं.नीमराना जाने के रास्ते में और वहां पहुँचकर जो जो विचार मेरे मन में आये और जो मैंने प्रत्यक्ष देखा वो लिखूंगा.कुछ चित्र तो होंगे ही.

सुबह 10:30  पर हम घर से चले.वाहन चालक का जिम्मा सम्हाला श्रीमती जी ने.सिग्नेचर टावर के पास पेट्रोल टंकी फुल कराई और आगे बढे.पूरे जयपुर हाइवे पर ट्रकों का परिचालन इतना बेतरतीब होता है कि आप चाहकर भी लेन ड्राइविंग न कर पाएं.हर लेन में ट्रक होते हैं.फिर भी हम दाएं बाएं करते हुए 12:30  हंस रिसोर्ट हल्दीराम पहुंचे.पहले हलके हुए फिर हल्का फुल्का खाना खाया.वहां बच्चों के लिए झूले वगैरह भी हैं.10-15  मिनट तक बच्चे खेलत रहे.01:30  बजे हम वहां से आगे बढे.यहाँ से नीमराना 32 किलोमीटर है.

हल्दीराम




बालकों की मस्ती
NH8 पर शाहजहांपुर टोल (टोल टैक्स Rs 121/-) पार करने के बाद हमने सर्विस लेन ले लिया और दाहिने तरफ NH8 पार कर गए.ये जगह नीमराणा ही है,किला/महल यहाँ से 2 किलोमीटर दूर है.2:20 हो चुके थे.किला पहुंचे.गाडी पार्क की. कोई पार्किंग शुल्क नहीं लगा.वहां पर एक ऊंटगाड़ी और एक ऊँट दिखाई दिए.मैंने एक ऊँटवाले से पूछा भाई यहाँ पर देखने घूमने फिरने के लिए क्या क्या है.बोला-एक तो ये महल है.लेकिन ये 2 बजे विजिटर के लिए बंद हो जाता है. सिर्फ जिनका रूम बुक है वो ही जा सकते हैं.दूसरी एक बावड़ी है जो यहाँ से एक किलोमीटर दूर है.देख लीजिये.चाहो तो ऊँट की सवारी भी कर सकते हो.मैं ऊँट पर बावड़ी छोड़ दूंगा.

तबतक चुन्नू भाई ने कहा-पापा पैदल चलते हैं.फिर क्या.ऊँटवाले से रास्ता पूछा और चल पड़े बावड़ी की ओर.एक बात और-ऊँट वाले ने बिलकुल भी ज़ोर जबरदस्ती नहीं दिखाई.आमतौर पर उसका जवाब ये होता-साहब बहुत दूर है बावड़ी.रास्ता ख़राब है.आपके पास दो दो बच्चे हैं.कहाँ पैदल थक जायेंगे.आइये ऊंटगाड़ी से छोड़ देता हूँ.खैर वो भला आदमी था.बावड़ी का रास्ता थोड़ा बदबूदार था.शायद महल का पानी किसी गढ्ढे में गिराते होंगे और पानी सड़ रहा था.ऐसा मुझे लगा.उसके बाद एक बाग़ से होते हुए मुख्य सड़क पर आ गए.हमारे साथ साथ एक ऊँट गाड़ी भी आ रही थी.बावड़ी मुख्य सड़क पर ही है.सड़क पर एक "VIP स्कूल" है और उसके बाद बावड़ी.
बावड़ी के रास्ते का बाग़


बावड़ी के रास्ते का बाग़
बावड़ी के रास्ते

बावड़ी राजस्थान में जगह जगह पाई जाती है.चूँकि राजस्थान अति कम वर्षा वाला क्षेत्र है इसलिए जल संग्रह के लिए ऐसी बावड़ियां बनाई गयी थी.कहते हैं नीमराना की बावड़ी 12 मंज़िल थी लेकिन हमें 9 मंज़िल ही दिखी.लोगों ने कहा 3  मंजिल ज़मीन में दफ़न है.
वर्तमान हालात:बेहद ख़राब.सीढ़ियां बेहद खतरनाक.पेशाब और मलमूत्र की बदबू.कोई रखरखाव नहीं.कई कांच के टुकड़े बिखरे हुए.नीचले स्तर पर तो मैंने कुछ लोगों को दारु पीते भी देखा.खैर हम सावधानी पूर्वक नीचे गए.देखा.फोटो लिए और ऊपर पहुंचे.वो कुआँ भी देखा जिससे पानी बावड़ी में आता होगा.अब दोनों ही सूख गए हैं.सुरक्षा का कोई इंतज़ाम नहीं.साथ में बच्चे हो तो विशेष ध्यान दें.कुएं में न झाकेँ तो बेहतर.डरावना लगता है.प्रशासन की बदइंतज़ामी देखकर दुःख हुआ.नहीं तो ये एक शानदार पर्यटक और ज्ञानवर्धक स्थल होता.

ज्ञान की बात:इतनी बुराई करने मतलब ये नहीं कि वहां न जाया जाय.इस बावड़ी को देखकर इस बात का सहज अंदाज़ लगाया जा सकता है कि राजस्थान में कितनी शानदार जल व्यवस्था थी.इसका ज़िक्र जगह जगह पर अनुपम मिश्र ने की है.अनुपम मिश्र देश के ख्यातिप्राप्त जल वैज्ञानिक कहे जा सकते हैं.उनके बारे में ज़्यादा जानने के लिए गूगल करे और वर्तमान रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने उनका इंटरव्यू लिया था, उसे you tube पर देखें.(अनुपम मिश्र 19 दिसम्बर 2016 को इस दुनिया से गुज़र गए). तो बेहद शानदार और ज्ञानवर्धक जगह देखने के बाद हम 3:45 पर किले के पास वापस आ गए.


बावड़ी का प्रवेश

चुन्नू भाई मम्मी के साथ सीढियां उतरते हुए 

बावड़ी का सबसे निचला तल

बावड़ी की दीवारें

ऊपर आते हुए..हाँफते हुए

बावड़ी का प्रवेश

बावड़ी का ऊपर से लिया गया चित्र

कुआँ जिससे बावड़ी में पानी आता था

बावड़ी के आस पास से लिया गया चित्र. पीछे नीमराणा किला दिखाई दे रहा है.

बावड़ी के आस पास से लिया गया चित्र. सुना है अब यहाँ एक पर्यटक स्थल विकसित करने का प्लान है.

बिटिया रानी बड़ी सयानी

कुछ चित्र कैमरा बरबस खींच लेता है


चल बेटा सेल्फी ले ले रे ..  

किले के रिसेप्शन पर गए.वहां रेट बोर्ड देखकर सर चकरा गया.विजिटर एंट्री प्रति व्यक्ति 1900 रुपये और बच्चों  का प्रति बच्चा 500 रुपये है.विजिटिंग टाइमिंग वीक डेज में 9:30 से 2:30 है.और वीकेंड्स पर 12:30 से 2:30 है.पता चला ये पूरा किला/महल एक होटल है.उस होटल को देखने के लिए 1900 रुपये मुझे बहुत ज़्यादा लगे.और हाँ अगर आप रूम बुक करते हैं तो विजिटर एंट्री फ्री.यानी 1900 रुपये रूम रेट में 100 % adjustible है.रूम रेट 4500 रुपये से 30000 रुपये तक है.ऑनलाइन बुकिंग उपलब्ध है.तो भाई हम 2 :30 के पहले भी आते तब भी किला/महल/होटल नहीं देखते.
वहां से हम 4 बजे चले.अब वाहन चालक का काम मैंने संभाला.5 बजे ओल्ड राव होटल पहुंचे.पराठे और पकौड़े खाये.6 बजे वहां से चलकर 7 बजे घर पहुँच गए.

-इति नीमराणा यात्रा   

बुधवार, दिसंबर 21, 2016

साबरमती आश्रम

इस यात्रा की भूमिका मैं पहले ही साझा कर चुका हूँ. 
12  दिसंबर को मेरी शादी की सालगिरह है इस साल इस गिरह ने 10 साल सफलतापूर्वक पूरा किया.
शादी के कई पर्यायवाची हैं-ब्याह,विवाह,दाम्पत्य सूत्र बंधन,परिणय सूत्र बंधन, पाणिग्रहण, गठबंधन और हमारे भोजपुरी में "बिआह". ब्याह का अर्थ समझ नहीं आता.बाकी जिसमे भी बंधन है वो शब्द मुझे पसंद नहीं.दरअसल मानव स्वभाव से स्वतंत्र है.बंधन किसे पसंद होगा.मेरी समझ में शादी वही है जिसमे मियां बीवी दोनों स्वतंत्रता का अनुभव करें.बंधन का नहीं. पाणिग्रहण का मतलब एक दूसरे का हाथ थामना है, तो ठीक है. 

बाकी "विवाह" और "बिआह" का अर्थ हमारे एक संस्कृत शिक्षक ने बखूबी समझाया था.आप भी समझिये और हंसिये."विवाह" वह है जिसमे लोग 'वाह वाह' करें."बिआह" वह है जिसमे लोग 'आह आह' करें.आजकल ज़्यादा "बिआह" ही होता है. तो भाई अपने गुरूजी की ये परिभाषा हमेशा याद रहती है.

10 साल को याद करने हम साबरमती आश्रम सुबह 9 :30 बजे पहुँच चुके थे.उसके पहले बता दूँ कि होटल हम 8 :30 बजे छोड़ चुके थे.ओला बुक किये और साबरमती आश्रम पहुंचे. साबरमती एक नदी है जिसके किनारे अहमदाबाद शहर है और यह आश्रम भी.प्रशासन की तारीफ़ करनी होगी कि यह पूरी सम्पदा अभी आश्रम जैसी लगती है.इसके मूल बनावट में छेड़ छाड़ कम से कम की गयी है.यहाँ आकर आप अपनी आवाज़ सुनने में सक्षम होंगे. यहाँ आकर गौरैया की चीं चीं, कोयल की कूक,कौआ का काँव काँव,पिहू पिहू की मधुर ध्वनि,अनेक तोते, बंदरों की किट किट से लगाव हो जाना लाज़िमी है.अनेक पक्षियों का कलरव मंत्रमुग्ध कर देता है.

आगे की कहानी चित्रों की ज़ुबानी.



गाँधी आश्रम का मुख्य दरवाज़ा, फोटो साफ़ नहीं आ पाया
यह पत्र पेटिका जो आश्रम के गेट पर लगी है.लिखा है-
"इस पत्र पेटी पर डाले गए पत्रों पर 'चरखा' की विशेष मोहर लगाई जाएगी"   
Gandhi Ashram site map
यहाँ एक म्यूजियम है जिसमे चित्रों और कुछ असल दस्तावेज़ों के माध्यम से गाँधी की जीवन यात्रा समझाई गयी है.
गाँधी जी के तीन बंदरों के साथ बिटिया रानी  


चित्र प्रदर्शनी के शुरुआत में - गाँधी और कस्तूरबा


चित्र प्रदर्शनी


चित्र प्रदर्शनी-दांडी यात्रा-नमक क़ानून तोड़ते गाँधी जी

कुछ चित्र आश्रम की सुंदरता के


सेल्फी
साबरमती नदी.लेकिन सभी नदियों की तरह यहाँ भी नदी गंदी है.
चुन्नू भाई को जगह बहुत पसंद आयी
 गाँधी जी का आश्रम.जहाँ वो मेहमानों से मिलते थे.
इस ईमारत में कस्तूरबा का कमरा, किचेन और गेस्ट रूम भी है.
चरखा चलाने का demo भी यहाँ होता है.

 म्यूजियम से लिए गए कुछ विचार जिनकी वजह से गांधीजी के प्रति मेरा झुकाव हुआ

गाँधी का लोकतंत्र
"मेरी लोकतंत्र की कल्पना ऐसी है कि उसमे कमज़ोर से कमज़ोर को उतना ही मौका मिलना चाहिए जितना कि समर्थ को....आजकल सारे विश्व में  कोई भी देश आश्रयदाता की नज़र के बिना निर्बलों को देखता ही नहीं....पश्चिम के लोकतंत्र का जो स्वरुप आज विद्यमान है वह...हल्का फासीवाद जैसा है....सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाले बीस इंसान नहीं चला सकते, वह तो प्रत्येक गांव के हर इंसान को चलाना पड़ेगा."

आर्थिक न्याय
"इस देश की और सारे विश्व की आर्थिक रचना ऐसी होनी चाहिए कि जिसमे एक भी प्राणी अन्न वस्त्र के अभाव से दुखी न हो ...जैसे कि हवा और पानी पर सबका समान हक़ है या होना चाहिए ...इन पर किसी व्यक्ति ,देश या समूह का एकाधिकार होना अन्याय है" 

असहयोग
"असहयोग एक बेजोड़ और जबरदस्त हथियार है...असहयोग कोई निष्क्रिय अवस्था नहीं है...असहयोग का मूल, द्वेष और बैर नहीं है...एक प्रकार का जिहाद या धर्मयुद्ध है...असहयोग का अर्थ है स्वरक्षण की शिक्षा...वह अपने आपमें एक लक्ष्य है."
आजकल, आप ठीक से समझेंगे तो "असहयोग", "देशद्रोह" जैसा प्रतीत होगा.


सविनय अवज्ञा
"सविनय अवज्ञा विनयहीन या अनैतिक अवज्ञा से उलटी चीज़ है.इसलिए सविनय अवज्ञा उन्ही कानूनों की हो सकती है जो नीति से समर्थित न हों....वह दूसरों के अधिकारों पर आक्रमण नहीं करेगा....इसलिए सविनय अवज्ञा करने वाला हेतुओं का आरोपण नहीं करेगा,बल्कि प्रत्येक प्रश्न की गुण दोष के आधार पर ही जांच करेगा.सविनय क़ानून भंग प्रेम और भाईचारे पर आधारित है." 










आश्रम दर्शन करते करते 12 बज चुके थे. वहां एक बुक शॉप भी है.हमने भी कुछ किताबें खरीदीं.कुछ श्रीमती जी ने भी.बालक ने एक चरखा लिया.इस तरह हमारी साबरमती आश्रम यात्रा संपन्न हुयी.उसके बाद हम मुकुल के घर गए.वहां गप शप, खाना पीना हुआ.चार बजे के आसपास हम लाल दरवाज़ा पहुंचे खाखरा खरीदने लेकिन ज़्यादातर दुकाने बंद थीं.कोई पर्व था मुसलमान भाइयों का शायद इसलिए.मुकुल ने बताया कि इंदुबेन खाखरावाला एक चेन है यहाँ .वहां से ले सकते हो.इन्टरनेट का सहारा लिया,दुकान ढूंढी.खाखरा लिया और 4 :40 तक रेलवे स्टेशन.5 :40 पर नयी दिल्ली राजधानी और सुबह 7 बजे गुडगाँव...

चुन्नू भाई का चरखा ..इसके बिना गाँधी दर्शन अधूरा रहेगा 
गांधीजी का चरखा महज सूत कातने का यन्त्र ही नहीं है,यह आज़ादी का प्रतीक है.गांधीजी की आज़ादी का मतलब सिर्फ अंग्रेजों को भगाना नहीं था.अंग्रेजों भारत छोडो गांधीजी ने 1942 में कहा उसके पहले वो अंग्रेज़ी क़ानून के हिसाब से ही चलते रहे और आंदोलन करते रहे.उनकी स्वतंत्रता मानसिक, सामजिक और आर्थिक थी.चरखा आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक है.वो जानते थे कि अगर हम अपने मूलभूत चीज़ कपड़ों के लिए भी परतंत्र रहेंगे तो स्वतंत्रता कभी नहीं आ सकती.गाँधी मानस को स्वतंत्र देखना चाहते थे. हर सम्मेलनों में वो कहते रहे, हम जाति पाती , छुआछूत, ऊँच नीच, धार्मिक भेदभाव को जब तक पालते पोसते रहेंगे, स्वतंत्र नहीं हो सकते.
अंग्रेजों से पहले हमें अपने कुरीतियों से लड़ना होगा.
एक किस्सा-गांधीजी पहली बार बिहार गए.जहाँ उनके ठहरने का जहाँ इंतज़ाम था, वहां खाना दो जगह बन रहा था.गाँधी जी ने कारण पूछा.किसी ने बताया एक जगह ऊंची जातियों के लिए और दूसरी जगह नीची जातियों के खाना पक रहा है.गांधीजी व्यथित हो गए.बोले इस तरह से तो हम कभी आज़ादी पा ही नहीं सकते.और भी बहुत कुछ...तो ऐसे थे गांधीजी..

मंगलवार, दिसंबर 20, 2016

महात्मा मंदिर, मुकुल और कांकरिया लेक

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

अगर आप गूगल बाबा की शरण लें और टाइप करें "Best places to visit in ahmedabad " तो रिजल्ट आएगा साबरमती आश्रम, स्वामीनारायण मंदिर अक्षरधाम, इसकॉन टेम्पल, लाल दरवाज़ा, विंटेज कार म्यूजियम इत्यादि इत्यादि..आपको कहीं भी "महात्मा मंदिर" नहीं दिखेगा.

विंटेज कार म्यूजियम से निकलने के बाद मैंने मुकुल को फ़ोन किया.मुकुल के बारे में बता दूं कि इनका पूरा नाम "मुकुल कुमार सिंह 'मन्ना'" है.घर में बुलाने का नाम मुन्ना तो आपने सुना होगा लेकिन "मन्ना" नामक अनोखे किरदार ये अकेले हैं.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इनसे मेरी दोस्ती कैसे हुई याद नहीं.हाँ एक ही क्लास में पढ़ना एक कारण हो सकता है. लेकिन सम्पूर्ण कारण नहीं.इस हिसाब से तो सैकड़ों दोस्त होते.तो भाई आलम ये था कि लैट्रिन बाथरूम छोड़कर मैं इनके साथ, या ये मेरे साथ, जो भी कह लीजिये..लगभग हर जगह पाए जाते थे.माफ़ी चाहता हूँ एक और जगह थी जहाँ मुझे इनके साथ का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता था.BHU के मित्र इसे भली भांति समझ सकते हैं.तो हालात अभी भी है कि कोई BHU का मिलता है तो मेरे हाल चाल के बाद दूसरा सवाल ये होता है कि "संजय जी , ये मुकुलवा का क्या हाल है".इससे अंदाज़ा आप लगा सकते हैं कि ये BHU प्रसिद्ध व्यक्ति थे.मुकुल साहब इनदिनों भारत के सबसे बड़े बैंक में चीफ मैनेजर हैं और आजकल अहमदाबाद में हैं.

आमतौर पर दोस्तों के बीच मैं बहुत प्रैक्टिकल और दार्शनिक इंसान के रूप में जाना जाता हूँ.कभी कभार "दुखी आत्मा" जैसी उपाधियाँ भी मिली हैं.रोना और रोने वाले दोनों पसंद नहीं.लेकिन जब मैं बनारस से गोरखपुर आया तो कई दिनों तक खाने की मेज पर मुकुल की याद आयी और आँखें भी डबडबाईं.गोरखपुर आने के बाद भी मेरा BHU आना जाना लगा रहा.ISM वाले डॉक्टर अभय कुमार सिंह अक्सर बोलते थे-संजय जी आपने डिस्टेंस लर्निंग में एडमिशन लिया है क्या. तो भाई मुकुल साहब से मेरा रूहानी निस्बत रहा है.

मुकुल ने सुझाव दिया कि आप महात्मा मंदिर जाइये. वर्ल्ड क्लास स्टेट ऑफ़ आर्ट म्यूजियम है.आपको पसंद आना चाहिए.मैंने ओला बुक किया.वही गाडी वही ड्राइवर.मुस्कुराते हुए हम गाडी में बैठे.और चल पड़े महात्मा मंदिर गाँधी नगर.एक जगह अमरुद भी खरीदे.3 :50 पर महात्मा मंदिर गाँधी नगर पहुँच चुके थे.कार म्यूजियम से गाँधी नगर 22 -23  किलोमीटर है .गाँधी नगर गुजरात की राजधानी है.अहमदाबाद से थोड़ी दूर.यहाँ आकर आपको चंडीगढ़ की याद आएगी.बिलकुल वैसी ही सड़कें वैसी ही बसावट.वैसा ही मेंटेनेंस.महात्मा मंदिर में टिकेट के लिए वेटिंग थी.लेकिन बहुत व्यवस्थित हालात थे.एक सुरक्षाकर्मी ने वेटिंग रूम में बैठाया. 15 मिनट में टिकट मिला.चार साल से ऊपर के बच्चे का टिकट लगता है.प्रति व्यक्ति 10 रुपये.फिर थोड़ी देर में प्रवेश मिला.अंदर भी वेटिंग थी.4 :30 बजे हमारा बुलावा आया.दरअसल 50 -50 के ग्रुप में अंदर भेजते हैं.महात्मा मंदिर एक विशाल गुम्बद नुमा ईमारत है.जिसके अंदर तीन तलों पर प्रदर्शनी है.  गांधीजी के जन्म से लेकर अवसान तक का अनुभव एक प्रभावी तरीके से आप ले सकते हैं.प्रदर्शनी चित्र, ऑडियो और विडियो का शानदार समिश्रण है.ऑडियो के लिए यन्त्र एंट्रेंस पर ही दे दिया जाता है.

"शानदार...अद्वितीय...अविस्मरणीय...अद्भुत प्रदर्शनी.."

मैं कहूँगा कि अहमदाबाद में इससे बेहतर और कोई जगह नहीं.
महात्मा मंदिर के अंदर कैमरा ले जाना मना है.आज के जीवन की चौथी मूलभूल आवश्यकता (रोटी, कपडा और मकान के बाद) मोबाइल फोन आप ले जा सकते हैं लेकिन फोटो खींचने और विडियो करने की मनाही हैं.मेरे हिसाब से मनाही होनी भी चाहिए.क्योंकि वहां रिकॉर्ड करने से ज़्यादा, समझने और महसूस करने लायक गांधीजी से आप रु-ब-रू होते हैं.वहाँ राजनेता/नेता गाँधी से ज़्यादा महात्मा और समाजसेवी गाँधी की झलक मिलेगी जिसका भारत एक ऐसा भारत है जिसमे व्यक्ति की आज़ादी सबसे बढ़कर है.इंसान से बढ़कर कोई जाति, कोई वर्ग और कोई धर्म नहीं.यहाँ गाँधी दर्शन को बेहद सरलता से दर्शाया गया है.तकनीक का शानदार इस्तेमाल है.मसलन, एक बंद गोल हाल में जब चारों तरफ से विडियो ऐसे चलने लगे मानो आप गाँधी के साथ बैठे हों और उनकी सभा में शरीक हो रहे हों, तो बाहर निकलने के बाद आप चकित और स्तब्ध हो जायेंगे.  ऐसी और कई प्रदर्शनियां आपको अभिभूत कर देंगी.महात्मा मंदिर के बारे में ज़्यादा जानने के लिए गूगल में "mahatma mandir " टाइप करें.
गांधीजी के जीवन दर्शन की कुछ बातें इस डायरी के आखिरी हिस्से में करूंगा.यहाँ से हम 6 बजे बाहर आये.कुछ चित्र बाहर से खींचे.देखिये.




 
ये वो ईमारत है जिसके अंदर प्रदर्शनी है

ये प्रवेश टिकट है.अफ़सोस ये गुजराती में है.
महात्मा मंदिर एक बहुत बड़ा परिसर है, जो गोल ईमारत है उसका नाम "दांडी कुटीर" है. 

शाम छह बजे और चन्दा मामा
चल बेटा सेल्फी ले ले रे
कांकरिया लेक:पुनः OLA बुक किये.7 बजे तक कांकरिया लेक पहुंचे.महात्मा मंदिर से कांकरिया लेक 30 किलोमीटर है.कांकरिया लेक एक मानवनिर्मित झील है जिसके किनारे तमाम मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं.चिड़ियाघर भी इसी के किनारे है.प्रवेश टिकट वयस्क का 10  रुपये और बच्चों का 5  रुपये है.अंदर जाने के बाद हम हॉट एयर बलून में गए.ये थोड़ा महंगा है लेकिन पहला अनुभव तो लेना बनता था.हमने लिया.एक बेहद रोमांचक amusement पार्क भी है.तरह तरह के झूले, कई उसमे से मुझे बेहद खतरनाक लगे, मौजूद हैं.यहाँ भी टिकट 300 (वयस्क) 200 (बच्चा) लगता है.लेकिन एक बार टिकट लेने के बाद आप सारे झूलों और खिलौनों का मजा ले सकते हैं.बच्चे बहुत एन्जॉय किये.मेम साहब को भी बहुत मजा आया.मुझे बड़े झूलों पर डर लगता है इसलिए थोड़ा दूर ही रहा.यहाँ हम खाते पीते मौज मस्ती करते झील का आनंद लेते 10 बजे रात तक अपने होटल में आ गए.कांकरिया लेक के बारे में सारी जानकारी इन्टरनेट पर विस्तार से उपलब्ध है.यहाँ कुछ चित्र देखिये.
हॉट एयर बलून 
हॉट एयर बलून से लिया गया चित्र 

बटरफ्लाई पार्क 
बिटिया रानी.झील के पीछे एयर बलून 

ऐसे कई झूले हैं यहाँ