मंगलवार, दिसंबर 20, 2016

महात्मा मंदिर, मुकुल और कांकरिया लेक

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अगर आप गूगल बाबा की शरण लें और टाइप करें "Best places to visit in ahmedabad " तो रिजल्ट आएगा साबरमती आश्रम, स्वामीनारायण मंदिर अक्षरधाम, इसकॉन टेम्पल, लाल दरवाज़ा, विंटेज कार म्यूजियम इत्यादि इत्यादि..आपको कहीं भी "महात्मा मंदिर" नहीं दिखेगा.

विंटेज कार म्यूजियम से निकलने के बाद मैंने मुकुल को फ़ोन किया.मुकुल के बारे में बता दूं कि इनका पूरा नाम "मुकुल कुमार सिंह 'मन्ना'" है.घर में बुलाने का नाम मुन्ना तो आपने सुना होगा लेकिन "मन्ना" नामक अनोखे किरदार ये अकेले हैं.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इनसे मेरी दोस्ती कैसे हुई याद नहीं.हाँ एक ही क्लास में पढ़ना एक कारण हो सकता है. लेकिन सम्पूर्ण कारण नहीं.इस हिसाब से तो सैकड़ों दोस्त होते.तो भाई आलम ये था कि लैट्रिन बाथरूम छोड़कर मैं इनके साथ, या ये मेरे साथ, जो भी कह लीजिये..लगभग हर जगह पाए जाते थे.माफ़ी चाहता हूँ एक और जगह थी जहाँ मुझे इनके साथ का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता था.BHU के मित्र इसे भली भांति समझ सकते हैं.तो हालात अभी भी है कि कोई BHU का मिलता है तो मेरे हाल चाल के बाद दूसरा सवाल ये होता है कि "संजय जी , ये मुकुलवा का क्या हाल है".इससे अंदाज़ा आप लगा सकते हैं कि ये BHU प्रसिद्ध व्यक्ति थे.मुकुल साहब इनदिनों भारत के सबसे बड़े बैंक में चीफ मैनेजर हैं और आजकल अहमदाबाद में हैं.

आमतौर पर दोस्तों के बीच मैं बहुत प्रैक्टिकल और दार्शनिक इंसान के रूप में जाना जाता हूँ.कभी कभार "दुखी आत्मा" जैसी उपाधियाँ भी मिली हैं.रोना और रोने वाले दोनों पसंद नहीं.लेकिन जब मैं बनारस से गोरखपुर आया तो कई दिनों तक खाने की मेज पर मुकुल की याद आयी और आँखें भी डबडबाईं.गोरखपुर आने के बाद भी मेरा BHU आना जाना लगा रहा.ISM वाले डॉक्टर अभय कुमार सिंह अक्सर बोलते थे-संजय जी आपने डिस्टेंस लर्निंग में एडमिशन लिया है क्या. तो भाई मुकुल साहब से मेरा रूहानी निस्बत रहा है.

मुकुल ने सुझाव दिया कि आप महात्मा मंदिर जाइये. वर्ल्ड क्लास स्टेट ऑफ़ आर्ट म्यूजियम है.आपको पसंद आना चाहिए.मैंने ओला बुक किया.वही गाडी वही ड्राइवर.मुस्कुराते हुए हम गाडी में बैठे.और चल पड़े महात्मा मंदिर गाँधी नगर.एक जगह अमरुद भी खरीदे.3 :50 पर महात्मा मंदिर गाँधी नगर पहुँच चुके थे.कार म्यूजियम से गाँधी नगर 22 -23  किलोमीटर है .गाँधी नगर गुजरात की राजधानी है.अहमदाबाद से थोड़ी दूर.यहाँ आकर आपको चंडीगढ़ की याद आएगी.बिलकुल वैसी ही सड़कें वैसी ही बसावट.वैसा ही मेंटेनेंस.महात्मा मंदिर में टिकेट के लिए वेटिंग थी.लेकिन बहुत व्यवस्थित हालात थे.एक सुरक्षाकर्मी ने वेटिंग रूम में बैठाया. 15 मिनट में टिकट मिला.चार साल से ऊपर के बच्चे का टिकट लगता है.प्रति व्यक्ति 10 रुपये.फिर थोड़ी देर में प्रवेश मिला.अंदर भी वेटिंग थी.4 :30 बजे हमारा बुलावा आया.दरअसल 50 -50 के ग्रुप में अंदर भेजते हैं.महात्मा मंदिर एक विशाल गुम्बद नुमा ईमारत है.जिसके अंदर तीन तलों पर प्रदर्शनी है.  गांधीजी के जन्म से लेकर अवसान तक का अनुभव एक प्रभावी तरीके से आप ले सकते हैं.प्रदर्शनी चित्र, ऑडियो और विडियो का शानदार समिश्रण है.ऑडियो के लिए यन्त्र एंट्रेंस पर ही दे दिया जाता है.

"शानदार...अद्वितीय...अविस्मरणीय...अद्भुत प्रदर्शनी.."

मैं कहूँगा कि अहमदाबाद में इससे बेहतर और कोई जगह नहीं.
महात्मा मंदिर के अंदर कैमरा ले जाना मना है.आज के जीवन की चौथी मूलभूल आवश्यकता (रोटी, कपडा और मकान के बाद) मोबाइल फोन आप ले जा सकते हैं लेकिन फोटो खींचने और विडियो करने की मनाही हैं.मेरे हिसाब से मनाही होनी भी चाहिए.क्योंकि वहां रिकॉर्ड करने से ज़्यादा, समझने और महसूस करने लायक गांधीजी से आप रु-ब-रू होते हैं.वहाँ राजनेता/नेता गाँधी से ज़्यादा महात्मा और समाजसेवी गाँधी की झलक मिलेगी जिसका भारत एक ऐसा भारत है जिसमे व्यक्ति की आज़ादी सबसे बढ़कर है.इंसान से बढ़कर कोई जाति, कोई वर्ग और कोई धर्म नहीं.यहाँ गाँधी दर्शन को बेहद सरलता से दर्शाया गया है.तकनीक का शानदार इस्तेमाल है.मसलन, एक बंद गोल हाल में जब चारों तरफ से विडियो ऐसे चलने लगे मानो आप गाँधी के साथ बैठे हों और उनकी सभा में शरीक हो रहे हों, तो बाहर निकलने के बाद आप चकित और स्तब्ध हो जायेंगे.  ऐसी और कई प्रदर्शनियां आपको अभिभूत कर देंगी.महात्मा मंदिर के बारे में ज़्यादा जानने के लिए गूगल में "mahatma mandir " टाइप करें.
गांधीजी के जीवन दर्शन की कुछ बातें इस डायरी के आखिरी हिस्से में करूंगा.यहाँ से हम 6 बजे बाहर आये.कुछ चित्र बाहर से खींचे.देखिये.




 
ये वो ईमारत है जिसके अंदर प्रदर्शनी है

ये प्रवेश टिकट है.अफ़सोस ये गुजराती में है.
महात्मा मंदिर एक बहुत बड़ा परिसर है, जो गोल ईमारत है उसका नाम "दांडी कुटीर" है. 

शाम छह बजे और चन्दा मामा
चल बेटा सेल्फी ले ले रे
कांकरिया लेक:पुनः OLA बुक किये.7 बजे तक कांकरिया लेक पहुंचे.महात्मा मंदिर से कांकरिया लेक 30 किलोमीटर है.कांकरिया लेक एक मानवनिर्मित झील है जिसके किनारे तमाम मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं.चिड़ियाघर भी इसी के किनारे है.प्रवेश टिकट वयस्क का 10  रुपये और बच्चों का 5  रुपये है.अंदर जाने के बाद हम हॉट एयर बलून में गए.ये थोड़ा महंगा है लेकिन पहला अनुभव तो लेना बनता था.हमने लिया.एक बेहद रोमांचक amusement पार्क भी है.तरह तरह के झूले, कई उसमे से मुझे बेहद खतरनाक लगे, मौजूद हैं.यहाँ भी टिकट 300 (वयस्क) 200 (बच्चा) लगता है.लेकिन एक बार टिकट लेने के बाद आप सारे झूलों और खिलौनों का मजा ले सकते हैं.बच्चे बहुत एन्जॉय किये.मेम साहब को भी बहुत मजा आया.मुझे बड़े झूलों पर डर लगता है इसलिए थोड़ा दूर ही रहा.यहाँ हम खाते पीते मौज मस्ती करते झील का आनंद लेते 10 बजे रात तक अपने होटल में आ गए.कांकरिया लेक के बारे में सारी जानकारी इन्टरनेट पर विस्तार से उपलब्ध है.यहाँ कुछ चित्र देखिये.
हॉट एयर बलून 
हॉट एयर बलून से लिया गया चित्र 

बटरफ्लाई पार्क 
बिटिया रानी.झील के पीछे एयर बलून 

ऐसे कई झूले हैं यहाँ



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