शनिवार, मई 02, 2020

गुमनाम है कोई - बरसात में गोवा



1965 वाली गुमनाम फ़िल्म भले ही किसी ने न देखी हो लेकिन लगभग हर किसी के पास से "गुमनाम है कोई बदनाम है कोई" ज़रूर गुज़रा होगा।क्या आपको पता है इस गाने में और फ़िल्म में फिल्माए गए खंडहर कहाँ के हैं।हम अपने इस पोस्ट में वहीं चलेंगे और कुछ शानदार तस्वीरें दिखाएंगे।

अगर आपको घूमना फिरना पसंद है तो कभी न कभी आपके ज़ेहन में गोवा ज़रूर आया होगा।जो देश से बाहर नहीं जा सकते उनके लिए गोवा हनीमून के लिए पहली पसंद है।क्यों न हो, आखिर अपने देश मे विदेशों जैसे सुंदर बीच जो हैं गोवा में।समुंदर के लहरों के बीच अठखेलियां करना किस नवीन जोड़ी को पसंद नहीं आएगा।
तो बिना किसी भूमिका के बताता चलूँ कि गोवा अपने शानदार बीचेज और चर्चेज के लिए जाना जाता है।माफी चाहता हूं, गोवा के कसीनो का नाम न लूँ तो गोवा प्रेमी नाराज़ हो जाएंगे।

हमारा प्लान गोवा जाने का तब बना जब बारिश का मौसम था।बारिश का मौसम गोवा के लिए सर्वोत्तम तो कतई नहीं।लेकिन हम उनमे से हैं जो ज़्यादा सोचते नहीं।मुझे ट्रेन सबसे ज़्यादा पसंद है कहीं आने जाने के लिए।लेकिन बैंगलौर से गोवा ट्रेन 16 घंटे में पहुंचाती है और बस का दावा था 12 घंटे में पहुंचाने का।सो स्लीपर बस का टिकट बुक किया।बस चली 8 बजे रात को।मुझे बस में नींद नहीं आती लेकिन 12 घंटे का लालच था।सोचा था सुबह पहुंच जाएंगे और पूरे दिन और अगले दिन घूमेंगे।शाम को ट्रेन पकड़ेंगे और वापसी।लेकिन पिलान तो बस पिलान होता है।रात भर बारिश होती रही।ऊपर से बस वाले ने सम्पूर्ण गोवा की सवारियां बैठा रखी थी।उछलते कूदते बस चलती रही और सुबह 5 बजे कहीं रुकी।कोई ढाबा था।घनघोर बारिश हो रही थी।ढाबा बंद था लेकिन शौचालय खुला जिसकी ज़रूरत ज़्यादा थी।वहां निवृत हुए।इंटरनेट पर देखा, गोवा 90 किलोमीटर।लगा 3 घंटे तो बहुत हैं।8 बजे पहुँच जाएंगे।लेकिन बस ने वो वो रूट लिए जो मैप में थे ही नहीं।11 बजे मडगांव बस स्टैंड पहुंचे।

यहां पर एक गलती हुई।यह बड़ी गलती मैंने होटल बुकिंग में भी की थी।
हुआ कुछ यूं कि, आने का टिकट ट्रेन का था।ट्रेन वास्को से थी।दिमाग़ में आया कि रेलवे स्टेशन के पास होटल ले लेते हैं।लौटते समय आसानी रहेगी।हालांकि सबकुछ उल्टा पड़ गया।दरअसल ज्यादार टूरिस्ट स्पॉट पणजी में हैं जो वास्को से डेढ़ घंटे की दूरी पर है। मडगांव से वास्को की दूरी कम है ।

बस में हम परेशान हो चुके थे।बेटी तंग करने लगी थी।वास्को मडगांव से थोड़ा पास में है।हम इतने परेशान थे कि सोचे पहले पणजी चलते हैं फिर वास्को आएंगे ये फ़ैसला भी ग़लत था।बस रोते धोते 12 के क़रीब पणजी बस स्टैंड पहुंची।बस से उतरते ही टैक्सी और होटल वालों ने धावा बोल दिया।ये उनका काम था लेकिन मन जब खिन्न हो गया हो तो गुस्सा आने लगता है।मैने सबको मना कर दिया।10 मिनट खड़े रहे।वहीं पर ब्रश भी किया।मिजाज़ थोड़ा ठीक हुआ तो ओला उबर देखा।गोवा में ओला और उबर नहीं चलते। कभी कोशिश हुई थी लेकिन वहां के टैक्सी यूनियन ने मार पीटकर, हड़ताल करके उन्हें भगा दिया।लेकिन सरकार के बहुत मान मनौअल के बाद एक ऐप बेस्ड टैक्सी शुरू हुई, GoaMiles। इस दौरान एक टैक्सी वाला आया।पूछा, कहाँ जाना है।मैंने कहा-वास्को।पता नहीं क्यों वो चिढ़कर बोला, क्या रखा है वास्को में।पणजी में ही सबकुछ है।मैंने भी चिढ़कर कहा भाई तुझसे क्या मतलब।वास्को चलना है तो बता।बोला चलूँगा।1300 रुपये लूंगा।मैंने मना कर दिया।1100, जा भाई चलता बन।सर यहां ओला उबर नहीं चलते।और भुनभुनाता हुआ चला गया।फिर क्यों न एक कोशिश goamiles की की जाय।डाउनलोड किया ।होटेल तक का किराया देखा 700 रुपये।बारिश फिर से शुरू हो गई।एक टैक्सी बुक की।वो आया और हम चले अपने होटल, वास्को रेलवे स्टेशन के पास।वो टैक्सी वाला भी रास्ते भर वास्को में क्यों होटल ले लिया, वहां कुछ नहीं है, वगैरह वगैरह कहता गया।जल्दी ही वास्को पहुंच गए।लगभग सवा बजे थे।होटल पहुंचे।गलती से ही लेकिन बड़ी शानदार होटल बुक हो गया था।सुंदर कमरे के साथ स्टाफ भी बड़ी तमीज़दार।जब आपको किसी होटल में बूढ़े लेकिन बेहद प्रोफ़ेशनल वेटर मिल जाँय समझिए आप अच्छे होटल में आ गए हैं।यह वास्को का एक पुराना लेकिन बहुत मेंटेंड होटल है।सभी टैक्सी वाले जानते भी हैं। यहां होटल लेने का एक फायदा यह हुआ कि वास्को के बारे में कुछ जानने का मौक़ा मिला।अन्यथा आप बीच, चर्च और कसीनो घूमकर लौट आएंगे। एक वास्को निवासी की जुबानी - सर कभी गोआ का रौनक़ वास्को ही था।यहां के बीचेज सुंदर थे।एयरपोर्ट पास में था और वास्को ही मुख्य रेलवे स्टेशन था।अभी मडगांव है।तब मुझे समझ आया वास्को की अपनी विरासत है और ये होटल कभी गोआ की रौनक का हिस्सा रहे होंगे।हर शहर अपने होने का एहसास दिलाता है।आप वास्को में नहीं आएंगे तो उन पुराने लेकिन सुंदर सड़कें जो कि गोवा की चमचमाहट की गवाह हैं देख नहीं पाएंगे।

मैंने पूछा - आख़िर ये रौनक वास्को से पणजी कैसे चली गयी।
सर, ये मसला पेचीदा और राजनीतिक है।पणजी गोवा की राजधानी है।कई नेताओं ने वहां बीच और रिसोर्ट खरीदे।वास्को में ट्रेन थी, एयरपोर्ट था, और बेहतरीन बीचेज़ थे। इससे लोग पणजी के बजाय यहीं रहना पसंद करते थे।फिर राजनीति शुरू हुई।हर शहर की तरह यहां भी एक रेड लाइट एरिया है।यह कहा जाने लगा कि इससे गोवा की बदनामी हो रही है।नेताओं के प्रभाव से सबसे पहले मडगांव को मुख्य स्टेशन बनाया गया।खूब बदनामी की गई मीडिया में भी।यहां के सुंदर बीचेज़ का रखरखाव बंद कर दिया गया।वो गंदे हो गए।कभी मौका मिले तो बायना बीच जाइएगा।देखकर अंदाज़ लग जायेगा कि कितना सुंदर रहा होगा लेकिन सफाई नहीं है।नतीजा धीरे धीरे लोग पणजी जाने लगे।पणजी नया था।होटल नए थे।रिसोर्ट भी अच्छे और नए थे।ऊपर से खूब प्रचार भी किया गया।वास्को की बदनामी तो थी ही।यहां का व्यापार ठप्प हो गया धीरे धीरे।यहां अब बंदरगाह है।कुछ टूरिस्ट स्पॉट है।लोग दिन में आकर देख जाते हैं।ठहरने के नाम पर आप जैसे भूले भटके टूरिस्ट ही आते हैं। 
उनकी बात में कितनी सच्चाई थी ये तो नहीं पता लेकिन इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।राजनीति इतनी ताकतवर होती है कि वो इतिहास भूगोल बदल सके।फिर भी कोई जानना चाहे तो जान सकता है।

प्लान कुछ इस तरह था कि होटल पहुंचेगे, खाना खाएंगे।दो स्कूटी किराये पर लेंगे और गोवा की मुख्य जगहें घूम लेंगे।बारिश का मौसम है इसलिए बहुत तो नहीं घूम सकते।अपने तय समय से हम चार घंटे लेट थे।फिर भी खा पीकर 3 बजे तक फ्री हो गए।बारिश फिर शुरू हो गई।थोड़ा कम।रिमझिम वाली।स्कूटी से घूमने का विचार छोड़ दिया गया।क्योंकि हमारे पास समय कम था इसीलिए सोचा गया कि सबसे फेमस बीच कलंगूट चला जाए।कलंगूट बीच पणजी में है।अफसोस हो रहा था।होटल पणजी में ही लेना चाहिए था।ख़ैर जब ओखल में सर रख दिया तो मूसल से क्या डरना।रिमझिम बारिश में एक टैक्सी बुलाई और चल पड़े कलंगूट बीच की ओर।एक घंटे में पहुंच गए।बारिश थम चुकी थी।वहीं एक दुकान पर चाय पिये।बीच मन को आनंदित करता है।अनंत जलराशि की गर्जना और उसमें उछलते कूदते मानव एक अजीब सा मिश्रित भाव पैदा करते हैं।हम भी किनारे किनारे थोड़े से पानी मे चलने लगे।थोड़ी दूर पर बाघा बीच दिखाई दिया।उधर ही निकल पड़े।फ़ोटो लिए।मौज मस्ती चल ही रही थी कि बारिश की बूंदे फिर से पड़ने लगीं।तेजी से वापस लौटे लेकिन बारिश तेज़ हो गई और हम सब बुरी तरह भीग गए।भीगने से तो कोई समस्या नहीं हुई लेकिन जूते भीग गए बाद में कई दिनों तक उनमे बदबू रही।कई दिन धूप में सुखाया फिर भी।वापस उसी चाय वाली दुकान में आये।कुछ खाये पिये।छह बजे चुके थे।हम अब वापसी की सोच रहे थे।बारिश अभी भी हो रही थी।टैक्सी पता किया।goamiles पर एक भी टैक्सी नहीं।इतने में एक बन्दा आया।पूछा कहाँ जाएंगे।मैंने कहा वास्को।बोला 1300 लगेंगे।मैंने 900 कहा।वो नहीं माना।फिर बोला अच्छा चलो।हम गाड़ी में बैठे।अंधेरा होने को था।गाड़ीवाला एक बेहद सूनसान जगह पर सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर दिया।बोला मेरे पास लाइसेंस नहीं है।उधर पुलिस चेक कर रही है।मेरी एक और गाड़ी आ रही है उसे बुला रहा हूँ।बारिश तेज़ थी।टूरिस्ट प्लेसेस डर मुझे नहीं लगता लेकिन उलझन हो रही थी।हम भीग चुके थे और जल्दी होटल जाना चाहते थे।ड्राइवर क़रीब आधे घंटे के बाद आया एक टैक्सी लेकर।बोला इनको पैसे दे दीजियेगा।हम आगे बढ़े।यहां एक और गड़बड़ थी।यह टैक्सी वाला नहीं जानता था कि हमे कहाँ जाना है।उसे पिछले बंदे ने कहा था एयरपोर्ट की सवारी है।बातों बातों में जब हमने कहा कि हम वास्को रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में जाएंगे तो उसका माथा ठनका।ख़ैर बन्दा वास्को का ही रहनेवाला था और सही सलामत उसने हमें पहुंचा दिया।होटल पहुंचे।कपड़े बदले।और कम्बल में घुस गए।साढ़े आठ बजे खाना खाया और सो गए।उस होटल का खाना भी अच्छा था।

कलंगूट बीच


यह फोटो अनायास ही खींचा गया है लेकिन लग रहा है लोग जानबूझकर लाइन बनाकर खड़े हैं. 










दूसरे दिन सुबह उठे।इस दौरान पूछताछ से पता चला कि वास्को से पणजी शटल सर्विस है जो अच्छी और किफ़ायती है।किसी ने बताया कि स्टेशन से बाहर निकलो और नाक की सीध में सड़क के अंततक जाओ।जहाँ टी पॉइंट आयेगा वही पर राइट साइड में शटल लगी होंगी।हमारे होटल से कुल दूरी लगभग एक किलोमीटर।पैदल चल पड़े।आसानी से शटल मिल गयी।यहां से पणजी और मडगांव दोनों जगह के लिए शटल मिलती है।इस शटल में 16 सीट है।15 सीट फुल होने पर बस चल पड़ती है।हमारे बैठते ही बस चल पड़ी और लगभग एक सवा घण्टा में हम पणजी बस अड्डे पर थे।

लाइब्रेरी मुझे हमेशा आकर्षित करती है.स्टेशन के पास वाचनालय। वास्को। 

हमने शिक्षा का महत्त्व किस कदर गिरा दिया है कि अब कोई लाइब्रेरी नहीं बनती. जो पुरानी  हैं उनकी  हालत ख़राब है। 
खुशकिस्मती ये थी कि आज बारिश नहीं हो रही थी।यहां से हमे पुराना गोआ जाना था जहां एक से एक भव्य चर्च हैं।उनमें से एक है बोम जीसस चर्च जिसे हमने नेट पर पढ़ा था।एक ऑटो वाले से पूछे तो उसने 90 रुपये बताया।लपक लिए और चल पड़े बोम जीसस चर्च ।रास्ते मे कई बोर्ड मिले जिनमे लिखा था-पुरणै गोएँ।मतलब पुराना गोवा।थोड़ी देर में हम अद्भुत, विशाल, अनोखे गिरिजाघर के पास थे।इसमे किसी की ममी भी रखी हुई हैआइये कुछ फोटो देखें।
बोम जीसस चर्च 

बोम जीसस चर्च  अंदर

बोम जीसस चर्च के अंदर ममी 




बोम जीसस चर्च  के सामने एक कैथेड्रल








सामने बोम जीसस चर्च


यहाँ एक म्यूज़ियम भी  है जहाँ फोटो ले सकते हैं वीडियो नहीं 



म्यूज़ियम

एक और चर्च

और अब गुमनाम खँडहर की ओर 

अब आइये उस जगह पर जिसका मैंने वादा किया था।जी हां उस गुमनाम फ़िल्म वाली जगह का।फ़िल्म में दिखाए गए खंडहर सेंट अगस्ताइन चर्च के हैं।यह चर्च भी पास में ही है।खंडहर दर्शनीय है।यहां उसका इतिहास भी लिखा है।इस चर्च को पुर्तगालियों ने तोड़ दिया था।1947 में जब देश आजाद हुआ तब गोवा आज़ाद नहीं हुआ था।गोआ को आज़ादी मिली 1961 में जब गोवा भारत का हिस्सा बना।जैसा कि सब जगह हुआ, ज़्यादातर अमीर लोग गोवा की इस आज़ादी के ख़िलाफ़ थे।एक ड्राइवर ने बताया कि अभी भी गोवा के किसी नागरिक को पुर्तगाल आसानी से नागरिकता दे देता है।
गुमनाम फ़िल्म की शूटिंग हुई 1964 में और रिलीज़ हुई 1965 में।
आइये कुछ चित्र के साथ मजे करें।

















चुन्नू भाई पता है क्या कर रहे हैं 

गूगल ट्रांसलेट से ये ट्रांसलेट कर रहे हैं.


यहां से जब चले तब फिर बारिश शुरू हो गयी और हम एक चर्च में ही शरण लिए।चर्च के केयरटेकर से बातचीत किये।जैसा कि पूरी क्रिश्चियनिटी भूतों और प्रेतों की कहानियों से भरी है, उसने भी कई कहानियां सुनाई।बारिश बंद हुई और हम आगे बढ़े।खाना खाया पास के ही एक रेस्टोरेंट में।खाना बकवास था।अगला पड़ाव था डौना पाउला।टैक्सी में बैठे।बारिश शुरू।वहां पहुंचे तो बारिश तेज़ हो गई।फिर भी कुछ देर रुके।बातचीत में मैंने ड्राइवर को बताया कि मैं वास्को जाऊंगा।उसने कहा सर में उधर ही जाऊंगा।300 रुपये एक्स्ट्रा दे दो।आपको छोड़ दूंगा।और उसने छोड़ भी दिया।हमलोग रूम चेकआउट करके अपना बैग वहीं छोड़ चुके थे।स्टेशन के पास ही बायना बीच है।वही पैदल पैदल पहुंच गए और 8 बजे तक रहे।वापस आये , होटल में ही खाया, और स्टेशन आ गए।फिर क्या ट्रेन चली और अगले दिन बैंगलोर।

यह चर्च जहाँ हमने बारिश में शरण ली

डौना पाउला-कुछ खास नहीं लगा 

बायना बीच के पास
बायना बीच के पास






गोवा हमें बहुत अच्छा लगा. कई बार आने लायक. बहुत सी जगहें छूटनी थीं  सो छूट गयीं अगली बार के लिए.




बाय बाय गोवा फिर आएंगे 





-इति यात्रा।

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