बुधवार, मई 05, 2010

कुछ शेरो शायरी..

टीवी लगभग रोज ही देखता हूँ.आज दूरदर्शन पर नज़र फिसल गयी.घर-मकान जैसे कुछ शब्द सुनाई पड़े.फिर मैंने नज़र गड़ाई और कार्यक्रम देखने लगा.शेरो शायरी के अलावा गाने भी जबरदस्त लगे.पेश है चंद शेर जिन्हें मैं लिख पाया-

"पहले बड़े शान से रहते थे लोग मकानों में.
अब लोगों के दिलो जाँ में मकान रहते हैं."

"मेरे छप्पर के मुकाबिल है आठ मंजिल का मकान
ये मेरे हिस्से की शायद धूप भी खा जाएगा."

"शज़र जब हक निभाना छोड़ देते हैं
परिंदे आशियाना छोड़ देते हैं,
कुछ ऐसे परिंदे हैं अना वाले
कफ़स में आबोदाना छोड़ देते हैं."

"जिससे दब जाएँ कराहें घर की
कुछ न कुछ शोर मचाये रखिए."

"पापा पहले तो डाटेंगे
फिर बोलेंगे हाँ,ला देंगे,
आज फिर हुआ है घर में झगडा
जो मम्मी देंगी,खा लेंगे."

ऐसे अनेक शेर बड़ी दिनों बाद सुनने को मिले.हाँ अफ़सोस ..मैं सारे लिख नहीं पाया.क्या करूँ..खिटिर पिटिर की आदत में लिखना भूल सा गया हूँ.

1 टिप्पणी:

  1. शज़र जब हक निभाना छोड़ देते हैं
    परिंदे आशियाना छोड़ देते हैं,
    कुछ ऐसे परिंदे हैं अना वाले
    कफ़स में आबोदाना छोड़ देते हैं."

    " ये विशेष कर पसंद आया.."
    regards

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