शनिवार, अप्रैल 03, 2010

बिहार उत्सव 2010

एक दिन पेपर में पढ़ा, प्रगति मैदान में बिहार उत्सव का आयोजन बिहार सरकार ने किया है.कल गुड फ्राइडे की छुट्टी थी.सोचा थोडा घूम लिया जाय.बिहारी हूँ ..थोडा प्यार तो है बिहार से.थोडा प्यार इसलिए कह रहा हूँ..क्यूंकि ज्यादा प्यार पनप नहीं पाया.थोड़ी चिढ इसलिए हो गयी ..वहां का अतिभ्रस्ट प्रशासन देखकर.बिना पैसा दिए एक भी काम सरकारी टेबल पर से नहीं खिसकता.ऐसा नहीं है की दिल्ली का मुरीद हूँ.यहाँ भी कमोबेश वही हालत हैं.लोगों के पास पैसा है इसलिए लोगों को घूस देने से यहाँ परहेज नहीं.यहाँ लोगों ने आत्मसात कर लिया है "घूस संस्कृति" को.ऐसा नहीं होता तो तो ३ साल के बच्चे के एडमिशन के लिए 20 हजार से 2 लाख रुपये तक स्कूलों में घूस नहीं दिए जाते.यहाँ के शरीफ कहे जाने वाले लोग 2 लाख रुपये देकर शान से अपना गुणगान करते रहते हैं.पेपर,टीवी में मीडिया वाले बहुत कुछ कहते हैं.कोई फायदा 6 साल से मैंने तो नहीं देखा.यहाँ भी ट्रैफिक पुलिस 100-50 रुपये में अपना काम चला लेती है.चलो जी ये तो रही अपने मन की भड़ास.आगे "बिहार उत्सव की बात करते हैं"


शाम को 6 बजे प्रगति मैदान पहुंचा.गेट नंबर दस पर सिक्यूरिटी वाले ने ,जो की बोली से बिहारी लग रहा था,बड़ी शान से हमें रास्ता बताया.अति सभ्य लहजे में.आम तौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता.खैर शायद बिहारी बिहारी का प्यार रहा हो.

बिहार उत्सव पहुंचा.अन्दर पहुंचकर बिहार के अतीत को चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से देखकर मन अभिभूत हो गया. बिहार हैंडलूम के बहुत से स्टाल थे.बांस के बने शो पीसेस बड़े अछे लगे .मैंने भी दो सस्ती चीजें खरीदी.बांस के बने गाँधी जी की मूर्ती काबिले तारीफ़ थी.लेकिन 2000 की होने के वजह से मैंने नहीं खरीदा.अपने जिला भभुआ का हाथी स्टाल भी एक बार देखने के लिए अच्छा था.

साथ ही अपनी प्रतिक्रिया भी बोर्ड पर लिखने की व्यवस्था लाजवाब लगी.कुल मिलकर बिहार के ब्रांडिंग का यह अच्छा प्रयास लगा.हाँ अभी और बहुत कुछ करना बाकी है.ऐसा तो लगा ही.नितीश कुमार को धन्यवाद.

बाहर बिहार का मशहूर लिट्टी चोखा का स्टाल भी अच्छा लगा.हमने भी लिट्टी चोखा खाया.

शाम के करीब सात बजे संगीत का कार्यक्रम भी खूब रहा."जय जय भैरवी असुर नसावनि" विद्यापति के इस भक्ति गीत से शुरू इस कार्यक्रम में कई लोकगीत प्रस्तुत किये गए जो मनमोहक और मंत्रमुग्ध कर देने वाले थे.कलाकारों का गीतों पर अभिनय भी आनंदित करने वाला था.आनंद इतना था की मेरे 20 महीने के बच्चे ने भी ताली बजायी जो की भोजपुरी यहाँ सुन भी नहीं पाता.

7 :15 बज चुके थे.मुझे गुडगाँव आना था.चल पड़ा.9 बजे घर पहुंचा.मन में जय जय भैरवी असुर नसावनि की धुन बज रही थी. 

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