हमारे घूमगुरु नीरज के साथ की
गयी यात्राओं का
हासिल कुछ विशिष्ट
होता है. मसलन
रैथल यात्रा की
बात करूं तो एक एक
पल हासिल ही
था. मैं एक पर्यटक कैटेगरी
का व्यक्ति हूँ.
शिमला मनाली नैनीताल
जैसे जगहों से इतर
किसी भी पर्वतीय
जगह पर नहीं गया था.
रैथल एक शानदार
यात्रा रही जिसमे
एक हिमालयी गाँव
के अलावा कुछ
अद्भुत(जो बाद में पता
चला) महामानवों से
मुलाक़ात हुयी. गंगोत्रीयात्रा भी यादगार
रही जिसमे नेलांग,
सातताल ट्रेक के
दौरान साग भात और मार्कण्डेय मंदिर न भूलने वाले पल
हैं. इसी कड़ी में चकराता
यात्रा भी विशिष्ट
है.
"रामचंद्र
कह गए सिया से, ऐसा
कलयुग आएगा |
दोनों तरफ से
मैसेज होंगे, मिलने
कोई नहीं आएगा
||"
यह मैसेज भेजा था उदय
झा जी ने जो हमारी रैथल यात्रा के सहयात्री थे. जिन्हे मैंने उनके घर पर मिलने का वादा
कर चुका था. मैं बहुत जल्दी घुलने मिलने वाला व्यक्ति नहीं हूँ. रैथल यात्रा भी महज
दो दिनों की थी. जिसमे से सिर्फ एक दिन ही झा जी का साथ मिला.
हाँ रात्रि अंताक्षरी में उनकी सहभागिता देखकर ये समझ गया था ये एक मिलनसार इंसान हो सकते हैं. औपचारिक बातचीत के अलावा कुछ खास परिचय भी नहीं हुआ. सो उनसे मिलने का वादा भी सिर्फ़ औपचारिकता ही थी. बाद में फेसबुक पर उनके पोस्ट, फोटोग्राफी, बाबा रणविजय द्वारा उनके बारे में किये गए कमेंट पढ़ने के बाद ये लगा कि उदय सर(इसके बाद सर का प्रयोग नहीं करूंगा) एक दिलचस्प इंसान हैं और उनसे मिलने चलेंगे. लेकिन सिर्फ़ मिलने के लिए विकास नगर जाना थोड़ा ज़्यादा लगा.
हाँ रात्रि अंताक्षरी में उनकी सहभागिता देखकर ये समझ गया था ये एक मिलनसार इंसान हो सकते हैं. औपचारिक बातचीत के अलावा कुछ खास परिचय भी नहीं हुआ. सो उनसे मिलने का वादा भी सिर्फ़ औपचारिकता ही थी. बाद में फेसबुक पर उनके पोस्ट, फोटोग्राफी, बाबा रणविजय द्वारा उनके बारे में किये गए कमेंट पढ़ने के बाद ये लगा कि उदय सर(इसके बाद सर का प्रयोग नहीं करूंगा) एक दिलचस्प इंसान हैं और उनसे मिलने चलेंगे. लेकिन सिर्फ़ मिलने के लिए विकास नगर जाना थोड़ा ज़्यादा लगा.
दिन-ब-दिन बढ़ते गए और वो दिन भी आया जब नीरज ने अपनी इस यात्रा का एलान
किया. मुझे घूमने की इच्छा तो हर समय रहती है लेकिन कई बार परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं. फिर भी तय किया कि शून्य प्लान की तहत चलेंगे.
देहरादून से आने जाने का ट्रेन टिकट भी करा लिया. झा जी से देहरादून विकासनगर चकराता
लोखंडी की जानकारी भी ली. यात्रा से 4-5 दिन पहले नीरज का मैसेज आया कि आप देहरादून
के बाद कैसे जाएंगे.मैंने कहा-29 की सुबह झा जी के यहाँ.उसके बाद का पता नहीं.नीरज
ने कहा-इधर उधर कहाँ करेंगे.विकास नगर से हमारे साथ लटक लो.या दिल्ली से ही साथ चलो.सोच
विचार शुरू हुआ-अगर दिल्ली से नीरज के साथ हो लिया तो झा जी से ठीक से मुलाक़ात नहीं
हो पाएगी.इसलिए नीरज को जवाब भेजा-भाई देहरादून तक ट्रेन से जाऊंगा और उसके बाद विकास
नगर से दिल्ली तक आपके साथ लटका रहूंगा.
28 सितम्बर 2018, रात
9 बजे 12687 मदुरै देहरादून एक्सप्रेस हज़रत निजामुद्दीन से पकड़ी और 29 की सुबह 5 बजे
देहरादून पहुँच गया.अरे हाँ एक बात बताना तो भूल ही गया देहरादून में मेरे एक मित्र
रहते हैं - रतन सिंह.मूलतः विकास नगर के आस पास के ही हैं.आजकल देहरादून सचिवालय में
कार्यरत हैं.उनसे भी मिलने का प्लान बन गया था.इसलिए झा जी को मैसेज किया कि आपके पास
11-12 बजे तक पहुँच पाउँगा. सुबह सुबह रतन के पास पहुंचे.नहाया धोया.पूरी सब्ज़ी दबाकर
खाया.ढेर सारी गप्पें लड़ाई.पुराने दिनों और मित्रों को याद किया.और 10 बजे विकास नगर
की ओर कूच कर गए.देहरादून से विकास नगर तक का बस वाले ने तीन सीट के 130 रुपये लिए.अभी
तक समझ नहीं पाया एक टिकट कितने का था. किसी को पता हो तो बताये.लगभग 11:30 बजे विकास
नगर पहुँच चुके थे.उदय साहब को कॉल किया.थोड़ी ही देर में वो आपने वाहन के साथ प्रकट
हुए और हमें अपने घर ले गए.
जहाँ झा जी रहते हैं
वो एक बेहद शांत और सुरम्य जगह है.चारों तरफ हरियाली है.धान के खेतों से घिरे होने
के कारण थोड़ा ऊमस भी था.लेकिन दिल्ली वालों के लिए किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं.झा
जी आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं.उनसे मिलकर तनिक भी नहीं लगा कि दो अपरिचित(कम परिचित
तो कह ही सकता हूँ) परिवार मिल रहे हैं.ढेर सारी गप्पें हुई.सुख दुःख की बातें.समाज
और पहाड़ों की बातें.बाग़ और बगीचों की बातें .जीवन का उतार चढाव .ख़ुशी का मार्ग..और
पता नहीं कितनी बातें.
अगर आप अपने एहसासों
का तर्जुमा लफ़्ज़ों में कर सकते हैं तो आप एक अच्छे लेखक हो सकते हैं.मेरे पास यह हुनर
होता तो 4 - 5 पन्ने तो उदय भाई साहब के बारे में लिख डालता.खैर इतने से ही काम चलाता हूँ-झा जी एक बेहद मिलनसार, हंसमुख और सतत
उत्साह में रहने वाले व्यक्ति हैं.उनसे मिलकर आप सहज आनंद से भर जाते हैं.उसके बाद
मैं नि:शब्द हूँ.
नीरज बाकी मित्रों
के साथ दो ढाई बजे
तक आने वाले
थे.लेकिन चूहों
से कुतरी हुई
सीट वाली बस को बदलने
में उन्हें काफी
वक़्त लगा और वो लोग
अपने नियत समय
से 3 घंटे लेट हो
गए थे.12:45 पर
नीरज ने मैसेज
किया कि वो लोग मेरठ
पार कर कए हैं.मतलब
5-6 बजे से पहले विकास
नगर नहीं पहुँच
सकते.पूरी टीम
के लिए भोजन
तैयार था.
कुछ बातें विकास
नगर के बारे में हुईं.विकास नगर
एक मैदानी इलाक़ा
है जहाँ से पहाड़ शुरू
होते हैं.यमुना
पास ही बहती है.उत्तराखंड
की सेब चर्चा
के दौरान झा
जी ने बताया
कि यहाँ एक गोल्डन सेब
भी होता है जिसका स्वाद
थोड़ा अलग होता
है.चलिए खरीद
लाते हैं.मोटरसाइकिल
से मार्किट गए.दो किलो
सेब खरीदे.एक
एक खाये भी.वहां मैंने
डाकपत्थर का बोर्ड
देखा.पूछ डाला-वहां कोई
पत्थर वत्थर है
क्या!!. अरे नहीं,
डाकपत्थर एक बैराज
है.वहां पर यमुना से
एक कैनाल निकाली गयी है.टरबाइन
लगाकर बिजली पैदा
की जाती है. साथ
ही पूछा - चलेंगे?मैंने कहा-चलिए.फिर
हम थोड़ी ही देर में
डाकपत्थर बैराज के
रास्ते पर थे.रास्ता कैनाल
के साथ साथ है.झा
जी बोले-यहाँ
सिंचाई और बिजली
विभाग की कॉलोनियां
हैं.कैनाल 80-100
फुट तक गहरी है.मैं
चकित...कई बार पूछा -100 फुट!!!अरे
नहीं क्या बात
करते हैं.हालाँकि
ये मेरा अज्ञान
था.उनकी बात
पर संशय करने
की कोई वजह मेरे पास
नहीं था.डाकपत्थर बैराज के
पास टोंस और यमुना का
संगम है.हम वहां एक
टरबाइन के पास भी गए
जो टोंस पर था.झा
जी ने बताया
- टोंस का पानी एक टनेल
द्वारा 12 किलोमीटर
दूर से इस टरबाइन में
आता है.हमने कुछ फोटो
भी खींचे.
घर आये तो
देखा बेटी झा जी की
सातवीं में पढ़ने
वाली बिटिया के
साथ घुल मिल गयी है.बेटा बोर
हो रहा था.इस दौरान
हमारे एक और सहयात्री डॉ विवेक
पाठक जी वहां आये.थोड़ी
ओशो चर्चा हुई,
जे कृष्णमूर्ति को
भी याद किया
गया. कुछ पुस्तकें भी
उन्होंने लीं और
लोखंडी की ओर प्रस्थान
कर गए.
नीरज एंड कंपनी
का आगमन क़रीब
5:30 पर हुआ.तात्कालिक प्लान ये
बना था कि टीम
अगर खाना खाने
से मना कर देती
है तो चाय और समोसे
की पार्टी होगी.लेकिन सभी
ने भोजन का सम्मान किया
और खाने के बाद तारीफों
के पुल बाँध
दिए.खाना था ही इतना
स्वादिष्ट.वहां से
हम 6:30 पर चले.अँधेरा
हो चुका था.हमारी एक
सहयात्री शालिनी जी
जो सपरिवार थीं.उन्हें चकराता
ही ठहरना था.
हम 8:30 चकराता
पहुंचे.उन्होंने वहां
होटल लिए और हम आगे
बढे. और आखिर में हम
9:45 रात को लोखंडी पहुंचे.डॉ पाठक
पहले से ही विराजमान थे.सभी ने खाना
खाया.और निद्रा
के आगोश में...अब सफर
कुछ चित्रों के
साथ.
रतन सिंह
डाकपत्थर बराज - टरबाइन जिसमे पानी टनेल द्वारा टोन्स से आता है
डाकपत्थर बराज - पीछे यमुना का विशाल पाट
उदय झा जी - इनके साथ एक सेल्फी तो बनती है
डाकपत्थर बराज - यमुना का विशाल पाट
डाकपत्थर बराज - यमुना का विशाल पाट और जल प्रवाह
डाकपत्थर बराज - यमुना का विशाल पाट
शालिनी जी, उनका बेटा, हमारा ड्राइवर, R K सुनेजा जी और निशांत जी(सेल्फी लेते हुए)-उदय जी के घर पर
और ये पहुंचे लोखंडी
बहुत जीवन्त यात्रा वृतांत संजय जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रशांत सर
हटाएंअपका यात्रा वृतांत पड़ा ये बेहद सरल शब्दो मे लिखा और सभी को समझ मे आने वाला है।शानदार संजय जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, उत्साहवर्धन के लिए।
हटाएंअपका यात्रा वृतांत पड़ा ये बेहद सरल शब्दो मे लिखा और सभी को समझ मे आने वाला है।शानदार संजय जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,संजय जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अक्षय जी
हटाएंBhut bdhiya vivran
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंBahut badhiya...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हनुमान जी
हटाएंउत्तम कार्य बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत ही बढ़िया संजय जी..
जवाब देंहटाएंथैंक्स
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंअति सुंदर।।
जवाब देंहटाएंमैं भी विकासनगर ही रहता हूँ!!
जवाब देंहटाएंमेरा भी इस यात्रा में जाने का मन था लेकिन आवश्यक काम मेफँसा होने के कारण ना
जा सका!!
कोई बात नहीं जी अगली बार।
हटाएं