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आज का ब्लॉग एक फोटो अल्बम है.30 तारीख की सुबह
अपनी आदत के हिसाब से
जल्दी उठ गए थे और
नहा धोकर तैयार.जब तक
बीवी बच्चे भी
तैयार होते हैं
तब तक घूम आता हूँ
बाहर.होटल के ठीक
सामने एक बड़ा सा टीला
जैसा था.उसपर चढ़ आया.उससे भी
ऊंची जगह दिख रही थी
वहां नहीं गया.थोड़ी देर
में श्रीमती जी
और बच्चे जब
तैयार होकर आये
तब और ऊपर जाने का
मन बनाया.बालक
तो ज़्यादा ऊपर
नहीं गए लेकिन
मैं ऊपर गया.वहां से
पता चला उससे
भी ऊपर एक चोटी जैसा
है.नहीं गया.दरअसल वो
पूरी धार है जो होटल
से कम ही दिखती है.वहीँ पर
बेटी को ठण्ड लगने लगी.कुछ फोटोग्राफ
लिए और फटाफट
नीचे आये.बेटी
के पैर में तेल लगाकर
खूब रगड़े,कम्बल
ओढ़ाए. डर था कहीं ठण्ड
न लग जाय नहीं तो
सारी ट्रिप का
सत्यानाश.लेकिन ये
सिर्फ बुरे ख़याल
ही रहे.थोड़ी
ही देर में बेटी चंगी
हो चुकी थी.पराठे खाये
गए.आज की योजना थी
मोइला टॉप और बुधेर केव
जाने की.
जहाँ हमारा होटल
था, उस जगह का नाम
लोखंडी है.अगर आप गूगल
में लोखंडी सर्च
करेंगे तो छत्तीसगढ़ की कोई जगह दिखेगी.लोखंडी उत्तराखंड
खोजेंगे तो किसी होटल का
नाम आएगा.कभी
भी वो जगह नहीं मिलेगी.दरअसल यह
जगह लोहारी गाँव
के अन्तर्गत है
जो यहाँ से ठीक नीचे
है.दूरी 4.5 किलोमीटर.गाँव तक
पक्की सड़क बनी है. लेकिन
गूगल देव अभी इस सड़क
को दिखाने में असमर्थ
हैं.हालाँकि सैटलाइट व्यू
में यह सड़क साफ़ दिखती
है.तो निष्कर्ष
यह निकला कि
हमारा होटल लोखंडी
टिब्बा ग्राम लोहारी
में हैं. इसे
होटल वाले ने भी कन्फर्म
किया.
नाश्ता करके हमलोग
10 बजे के आसपास बुधेर
केव की
ओर चले.होटल
से लगभग साढ़े
तीन किलोमीटर तक
वन विभाग की
सड़क है.जहाँ सड़क ख़तम
होती है वहां फॉरेस्ट रेस्ट हाउस
है जिसकी बुकिंग
कालसी से होती है.रेस्ट
हाउस तक गाडी से जाया
जा सकता है.हम भी
गए.उसके बाद
मोइला/बुधेर जाने
के लिए डेढ़ किलोमीटर की पैदल चढ़ाई है.शुरू में
थोड़ी कठिन, उसके
बाद आसान रास्ता,
और आखिर में थोड़ी
सी चढ़ाई के बाद एक
शानदार बुग्याल हमारा
स्वागत करता है.हमलोग 1
घंटा 15 मिनट लगाए
डेढ़ किलोमीटर चढ़ने
में. समय था 11:45
.मैंने बुग्याल सिर्फ
सुने थे अब देख भी
लिया. घास का हरा भरा
चित्ताकर्षक मैदान.खूब
मस्ती किये.यहाँ
वहां उछले कूदे.परी मंदिर
देखी और बुधेर
केव भी. यहाँ मैंने अपने फ़ोन में ऊंचाई देखी.समुद्र तल से 2744
मीटर.
कमाल की बात
यह है कि चकराता से
रास्ते भर बुधेर
केव के दिशा निर्देश मिलेंगे लेकिन
केव देखकर आप
कहेंगे, आइला-ये गुफा है!!!एक बेहद
छोटी सी गुफा जिसमे पानी
रिस रहा था.लेकिन शानदार
बुग्याल गुफा पर नज़र ही
नहीं जाने देता.
पूरे बुग्याल में वोडाफोन
को छोड़कर सभी
प्रकार के मोबाइल
नेटवर्क काम कर रहे थे.कोई कम
कोई ज़्यादा.दो
बज चुका था और भूख
लगने लगी थी.खाने प्रोग्राम
यह था कि हमारा होटलवाला
मोइला टॉप पर ही खाना
ले आएगा. लेकिन
जब वो 2 बजे
तक नहीं आया
तो उससे कहा
गया भाई तुम रेस्ट हाउस
तक खा ले आओ हम
भी वही आते हैं.फिर
क्या था सबने वापसी की
राह पकड़ी.रेस्ट
हाउस के पास हमारा शानदार
भोजन हुआ.यहाँ
से कुछ लोग गाडी से
तो कुछ लोग पैदल चलने
को तैयार हुए.मैं पैदल
ही आया. रास्ते
में नीरज से
"हुस्न पहाड़ो का
..." वाले गाने के
दृश्यों पर चर्चा
हुई, कि
ये दृश्य कहाँ
के हो सकते हैं.इस
तरह हम टहलते
हुए 5:45 बजे तक होटल
पहुंचे. होटल आते ही नीरज ने कहा, चलो, कहाँ. अरे चलो न..बाकी सबको बता दूँ, नहीं चलो देर हो जाएगी. वाशरूम जाना है, आकर कर लेना..अरे भाई कहाँ जाना है...आखिर गुरु तो गुरु है..तुरंत गाडी स्टार्ट और एक जगह पहुँच गए.शानदार रुई के पहाड़.. नीचे चित्र देखिये..
और आज की यात्रा
समाप्त हुई.
कुछ और बातें
चित्रों के साथ साथ ..
हमारे होटल के ठीक सामने की सड़क से लिया गया चित्र. दाहिने से आती सड़क चकराता से आ रही है और बाएं त्यूनी जा यही है. जिस पर हम खड़े हैं यह सड़क लोहारी गाँव जा रही है.इसी सड़क से बुधेर/मोइला जाने का रास्ता अलग हो जाता है.सामने वो टीला और उसके ऊपर पेड़ों के बीच टीला, जिसपर हम सुबह घूम रहे थे बच्चो के साथ.
एक शानदार सुबह. जो सड़क है वो लोहारी गाँव जा रही है.
हमारी सराय
होटल के ठीक सामने घाटी की तरफ
टीले से लिया गया फोटो - सामने वाली सड़क को गूगल नहीं दिखाता
दिन के आठ बजे चाँद देखिये
और ये सूरज
होटल के सामने वाले टीले पर-बेटी को ठण्ड लगने लगी थी
टोली - रेस्ट हाउस के पास. यहाँ से सबको पैदल चलना था.
फॉरेस्ट रेस्ट हाउस
फॉरेस्ट रेस्ट हाउस
वीर तुम बढे चलो-मोइला डांडा की ओर
थक गए..आराम..मंज़िल बस थोड़ी दूर..
डॉ स्वप्निल, चुन्नू-मुन्नू
श्रीमती जी
बिटिया रानी बड़ी सयानी
बुग्याल के प्रथम दर्शन
परी मंदिर - नाम क्यों पड़ा पता नहीं.लेकिन देखने से पक्का लगता है कि यह यहाँ के ग्राम देवता का मंदिर रहा होगा.अभी जीर्ण अवस्था में हैं.
कई बार लगा फोटो कम कर दूँ, लेकिन कर नहीं पाया
चुन्नू बाबू परी मंदिर के देहरी पर
परी मंदिर, हमारी परी, परी की मम्मी और खाखरा
टोली टीले पर
और ये परी मंदिर के पिछवाड़े , दोनों ड्राइवर(एक टेम्पो ट्रेवलर का और दूसरा डॉ विवेक पाठक का) और मुसाफिर साहब, एक और बात हुयी, डाक्टर साहब के ड्राइवर ने पूछा, आप पहाड़ी हैं क्या?मैंने कहा-किस एंगल से पहाड़ी लग रहा हूँ.शुद्ध बिहारी हूँ भाई. एकदम प्लेन का. उसने कहा - आपके बच्चे बड़े आराम से पहाड़ चढ़ गए इसलिए शक हुआ. और मुझे अंदर से ख़ुशी हुई.
प्राकृतिक तालाब जो सर्दियों में जम जाता है.
बुग्यालों में भेड़ें न हों तो बुग्याल कैसा
यह फोटो क्यों महत्वपूर्ण है-पता लगाओ.
मोइला डांडा एक सुन्दरतम फोटो.इसमें बुधेर केव भी दिख रही है.
डॉ विवेक पाठक और मिलिंद, बीच में चुन्नू मुन्नू बुधेर केव के मुहाने पर
बुधेर केव फतह के उपरांत
बुधेर केव फतह के उपरांत शिखा जी
बुधेर केव
और ये रहा मेरी नज़र में श्रेष्ठतम छायाचित्र
चुन्नू बाबू की मस्ती
वो ऊपर नीरज एंड कंपनी मौज कर रही है.आ भी जाओ.भूख लगी है.
ये ये घास जो बेहद मजबूत थी.चुन्नू बाबू उसपर जम्प कर रहे हैं.
एक और दुर्लभ चित्र
और वापसी की ओर
5:45 तक वापसी
सुरमई शाम इस तरह आये
साँस लेते हैं जिस तरह साये
हैं न बादलों के पहाड़
अगला भाग - चकराता और टाइगर फॉल
अति उत्तम विवरण।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र
हटाएंवाह, कमाल कर दिए 👌❤️
जवाब देंहटाएंबस आपका साथ रहा तो कमाल करते रहेंगे😊
हटाएंबहुत ही बढ़िया..
जवाब देंहटाएंफ़ोटो देखकर लगता है,हम भी आपके साथ ही घूम रहे है
बहुत बहुत धन्यवाद सर
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