बुधवार, जुलाई 31, 2019

कर्नाटक भ्रमण - रंगनाथिट्टू पक्षी अभयारण्य और मैसूर पैलेस

21 जुलाई को चून्नू भाई का जन्मदिन है।लगभग हर साल मैं अपने दोस्तों को बुलाता हूँ और खान पान मेल मिलाप होता है।इस साल बैंगलोर में हूँ।मेल मिलाप कार्यक्रम की जगह घूमने का कार्यक्रम बनाया गया।हालाँकि चून्नू बाबू की इच्छा थोड़ी कम थी।
दिल्ली से आते वक़्त मैंने कार बेच दी। बैंगलोर में ऑफिस घर से 10 किलोमीटर दूर है।बैंगलोर के महान ट्रैफिक में इस 10 किलोमीटर को सरकारी बस 1 घंटे में तय करती है।अगर आप अपने वाहन से आते हैं तो एक शॉर्टकट है और यह 10 किलोमीटर आधे घंटे में तय हो जाता है।कार चलाना मुझे पसंद नहीं।साथ ही कार को लेकर मेरी फिलोसोफी यह कि कार लोन लेकर नहीं ख़रीदनी है।फिर तो भइया न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।कार खरीदना कैंसिल कर दिया गया।और बात स्कूटी पर अटकी।चूँकि मैं रोज़ स्कूटी से ही आना जाना करूंगा इसलिए स्कूटी श्रीमती जी के लिए कभी उपलब्ध नहीं रहेगी।तो तय ये हुआ कि दो स्कूटी खरीदी जाय।एक प्लान यह भी था कि थोड़ी दूरी की यात्रायें भी स्कूटी से कर ली जाएंगी।

दो एक्टिवा 5g एक लाल और एक ब्लू खरीद ली गयी।पैसे का ज़्यादा टंटा नहीं पड़ा।कुछ पैसे पिछली कंपनी से लेने थे और कुछ नयी कंपनी ने जॉइनिंग बोनस दिए थे।
अब आते हैं मुद्दे पर।चून्नू बाबू का बर्थडे था और उनके बर्थडे के बहाने हम अपनी अपनी ख़्वाहिश पूरी करने के फिराक में थे।आमतौर पर भारतीय माता पिता यही करते हैं।

अपने एक सहकर्मी से पूछे कि कुछ घूमने फिरने की जगह बताइये।उन्होंने बताया-

"नंदी हिल" आलरेडी विजिटेड(घूम चूका हूँ).
"लालबाग़ गार्डन" आलरेडी विजिटेड.
"Iscon टेम्पल" आलरेडी विजिटेड.
फिर उन्होंने खीजकर हंसते हुए कहा पहले ये बताओ कहाँ कहाँ घूम चुके हो, फिर बताता हूँ।
आगे उन्होंने बताया-
"Kokkare bellur bird sanctuary" , यहाँ पर बहुत सारे माइग्रेटरी बर्ड्स आते हैं और सभी पेड़ों पर रहते हैं।यहाँ मानव और पक्षी एक साथ निवास करते हैं।अद्भुत दृश्य होता है।
"Ranganathittu bird sanctuary" यहाँ भी बर्ड्स दिखेंगे।यहाँ बोटिंग भी होती है और ढेर सारे मगरमच्छ होते हैं जो बोटिंग के दौरान दिखते हैं।
"गगनचुक्की फॉल"
"शिवनासमुद्र फॉल"
.....
......
और ढेर सारे जो 150 किलोमीटर के रेंज में हैं।
अब बात थी जायेंगे कैसे।कार रेंट की जाय।या स्कूटी से चलें।..... स्कूटी से चलें......।एक विकट समस्या थी. मुनमुन स्कूटी पर बैठते ही सोने लगती है.कार में कभी नहीं सोती. इसका निदान अमेज़न से लिया गया. बच्चों को बांधने वाली एक बेल्ट आती है.एक अच्छा बेल्ट सोच समझकर आर्डर कर दिया.700 रुपये वाला.बेल्ट आया काफी अच्छा. मजबूत भी था. तो इस बेल्ट का हर समय इस्तेमाल किया गया.हालाँकि बेटी का कहना था कि भैया जब ऐसे ही बैठ सकता है तो मैं क्यों नहीं.बेटी के और भी सवाल हैं जिनके उत्तर हम नहीं दे पा रहे हैं. गुणीजन मदद करें. मलसन भैया का बर्थडे जुलाई में मेरा अक्टूबर में क्यों. आपने अकेले अकेले सिर्फ भैया को ही क्यों घुमाया मुझे साथ क्यों नहीं ले गए(ये उन यात्राओं की बात होती है जो बेटी के जनम से पहले की हैं).और भी कुछ अनुत्तरित सवाल हैं. कुल मिलकर यह बेल्ट बड़े काम का रहा.हालाँकि एक बार बेटी बेल्ट के बावजूद गर्दन एक तरफ झुकाने लगी तो अतिरिक्त सुरक्षा के लिए श्रीमती जी की चुन्नी से भी बांधा गया.हालाँकि इसकी कोई जरूरत नहीं थी.   

शनिवार सुबह 6 बजे हमारी स्कूटियाँ चल पड़ीं।

प्लान इस तरह बना।
कोक्कड बेल्लूर नहीं जायेंगे क्योंकि वहां अभी केवल काले बर्ड्स हैं।ऐसा गूगल ने बताया।
शिवन्नसमुद्र नहीं जायेंगे क्योंकि इस बार बारिश न होने की वजह से फॉल में पानी नहीं है।
सबसे पहले रंगनाथीट्टू जायेंगे और बोटिंग करेंगे।यह बैंगलोर से 155 किलोमीटर है मैसूर रोड पर।मैसूर यहाँ से 15 किलोमीटर है।अब जब मैसूर के इतना नज़दीक आ गए हैं तो मैसूर पैलेस तो बनता है। टाइम बचेगा तो मैसूर को थोड़ा और देखेंगे।अगले दिन सोमनाथपुर और तालकाडू जायेंगे और वापस बैंगलोर। 

सुबह 6 बजे गूगल जी ने बताया कि हम 155 किलोमीटर 3 घंटे 26 मिनट में तय कर लेंगे।हमारा अनुमान था 5 घंटे क्योंकि हम खाना पीना भी तो करेंगे।7 बजते बजते चून्नू मुन्नू को भूख लग गयी और हम मैसूर रोड BHEL के सामने एक दुकान पर रुके।दोनों बालक इडली सांभर खाये।हमें अभी भूख नहीं थी सो नहीं खाये। थोड़ा आगे बढे और 8 बजे के आसपास हम शहर से बाहर थे।मैसूर हाईवे पर अभी चौड़ीकरण का काम चल रहा है इसलिए ट्रैफिक थोड़ा ज़्यादा था।मतलब फ्री नहीं था।हमलोगों को इतना ज्यादा स्कूटी चलाने की आदत नहीं है नतीज़तन पिछवाड़े में दर्द उठने लगा। तबतक एक इडली सांभर वाला दिखा सड़क के किनारे एकदम सूनसान जगह पर।फिर क्या बहुत ही स्वादिष्ट इडली सांभर और दाल वडा खाया गया। घडी पर नज़र पड़ी तो पता चला हम लेट होते जा रहे थे।चलते चलते रामनगरम आया।हाँ जी ये वही रामनगरम है जिसके पास ऐतिहासिक मूवी शोले की शूटिंग हुई थी।उसकी पहाड़ियां सड़क से भी दिखती हैं।थोड़ी देर रुके रामनगर आराम के लिए।दिक्कत ये थी कि स्कूटर पर बैठते ही पिछवाड़े में दर्द शुरू हो जा रहा था।चून्नू बाबू को बताया तो वो हँसते हँसते लोट पोट हो गए।रामनगरम से थोड़े आगे मथुरा गोकुल रेस्टोरेंट में चाय पी गयी।फिर हमारी सवारी तेज़ी से चली और मंड्या होते हुए 12 बजे रंगनाथीट्टू पक्षी अभयारण्य पहुंचे। गोया पूरे छह घंटे. मंड्या में बारहों मास भयंकर जाम मिलता है।भला हो गूगल का जिसने हमें पहले ही कहीं और से घुमा फिराकर मंड्या के ट्रैफिक को बाईपास करा दिया।बर्ड सैंक्चुअरी के गेट पर देखा कुछ लोग लौट रहे हैं।पता चला कावेरी में जल स्तर ऊपर आ जाने के कारण बोटिंग बंद है।हमें भी थोड़ी निराशा तो हुई लेकिन 155 किलोमीटर स्कूटी चलने के बाद सैंक्चुअरी तो देखना बनता है। 180 रुपये(2 वयस्क, 1 बच्चा 2 स्कूटी) की पर्ची कटाई और अंदर दाखिल हुए।यह बर्ड सैंक्चुअरी डॉ सलीम अली की बनायीं हुई है।जिनको सलीम अली के बारे में पता न हो वो गूगल करें।अभी के लिए सिर्फ इतना कि वो भारत के सबसे बड़े पक्षी वैज्ञानिक थे।पक्षी अभयारण्य शानदार है और दर्शनीय भी।बिना बोटिंग के भी।आगे की कहानी चित्रों की ज़ुबानी।

डॉ सलीम अली ने तत्कालीन मैसूर के राजा को इस स्थान को वन अभयारण्य के रूप में स्थापित करने के लिए राज़ी कर लिया.1940 में यह स्थान इस रूप में अस्तित्व में आया. 

यहाँ डॉ सलीम अली इनफार्मेशन सेंटर है जहाँ बड़ी रोचक तरीकों से पक्षियों के बारे में बताया गया है।कुछ वाइल्डलाइफ से सम्बंधित सवाल भी हैं जिनका जवाब बटन दबाकर देना होता है।सही पर ग्रीन लाइट और गलत पर रेड लाइट जलती है।बच्चों को मजा आता है।साथ ही बटन दबाने पर विभिन्न प्रकार के चिड़ियों की आवाज़ भी सुनी जा सकती है।


पूरे अभयारण्य में जगह जगह बड़ी सुरम्य जगहों पर ऐसी बैठने के लिए बनाया गया है.यहाँ बैठकर आराम किया जा सकता है.

नजदीक से तो एक कौआ ही दिखा.बाकी पक्षी दूर थे.नौका विहार के समय ये नज़दीक से जरूर दिखते हैं.

और ये कावेरी नदी और पेड़ों पर बैठे सफ़ेद पक्षी





है न जबरदस्त   


वॉच टावर






बच्चों के लिए आकर्षक जानकारी


अपना राष्ट्रीय फूल कमल और कमलगट्टे के दर्शन 

एक शानदार सुरम्य और आनंददायी जगह का आनंद उठाते उठाते 2 बज गए।सबको भूख भी लग गयी।अभयारण्य में ही एक रेस्टोरेंट है।हम लोग वहीँ खाना खाये।खाना अच्छा था।

अब बारी थी मैसूर की।हमने होटल भी बुक नहीं किये थे।शनिवार होने की वजह से दिक्कत होना लाजिमी था सो तय ये हुआ कि सबसे पहले होटल लेते हैं फिर पैलेस चलेंगे।मैसूर पैलेस से डेढ़ किलोमीटर पहले एक चर्च है-सेंट फिलोमिना चर्च।उसकी दीवार के साथ साथ कारें खड़ीं थीं।और सामने लाइन से कई होटल थे।हमने कारों के पास ही स्कूटी खड़ी की।यहीं पहले ठिकाना ढूंढते हैं फिर आगे बढ़ेंगे।तबतक एक बंदा आया बोला, स्कूटी यहाँ से हटा लीजिये, यह कार पार्किंग है।सामने होटल के साइड रखिये।फिर हमने वाहनों को सामने खड़ा किया और उसी बन्दे से होटल के बारे में पूछा।उसका भी होटल वहीँ था।कमरा बड़ा था।सामने चर्च था। AC नहीं था न उसकी जरूरत थी।वीकेंड होने के कारण 1500 से नीचे होने को वो तैयार नहीं हुआ।हम भी ज़्यादा घूम घाम नहीं करना चाहते थे।कमरा ले लिया।कमरे में दो क्वीन साइज बेड लगे थे जो हमारे लिए काफी थे।
हाथ मुंह धोकर थोड़ा आराम करने लगे।4 बज गया।होटल वाले से पूछा भाई पैलेस एंट्री कितने बजे तक होती है, बताया, 5 बजे तक।फटाफट पैलेस गए टिकट लिया घूम आये।एक बार मैं पहले भी आया हूँ।फोटो देखने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।इस बार उतना मजा नहीं आया।बहुत सारी रेलिंग लगा दी गयी है। टीपू सुल्तान की एक सोने की कुर्सी हुआ करती थी उसकी जगह 2-3 चाँदी की कुर्सियां रख दी गईं हैं।बहुत चीज़ों को दूर से ही देखना है।वगैरह वगैरह।फिर भी पैलेस है शानदार।चित्र देखिये।


मैसूर पैलेस के सामने का चौराहा

मैसूर पैलेस के अंदर से बाहर का दृश्य











शेर के दांत तोड़ ही देंगे  





वहां हाथी भी थे

वहां हाथी भी थे

लौट कर आये तो अभी उजाला था.होटल के पास ही चर्च था.बेटी ने कहा देखने चलते हैं.फिर क्या देखिये.
सेंट फिलोमिना

सेंट फिलोमिना चर्च   


सेंट फिलोमिना चर्च   

सेंट फिलोमिना चर्च - सुबह में कमरे से
चुन्नू बाबू द्वारा ली गयीं कुछ तस्वीरें



 

  


अगले दिन - सोमनाथपुर और तालकडू के मंदिर और गग्गनचुक्की फॉल 

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