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बुधवार, दिसंबर 21, 2016

साबरमती आश्रम

इस यात्रा की भूमिका मैं पहले ही साझा कर चुका हूँ. 
12  दिसंबर को मेरी शादी की सालगिरह है इस साल इस गिरह ने 10 साल सफलतापूर्वक पूरा किया.
शादी के कई पर्यायवाची हैं-ब्याह,विवाह,दाम्पत्य सूत्र बंधन,परिणय सूत्र बंधन, पाणिग्रहण, गठबंधन और हमारे भोजपुरी में "बिआह". ब्याह का अर्थ समझ नहीं आता.बाकी जिसमे भी बंधन है वो शब्द मुझे पसंद नहीं.दरअसल मानव स्वभाव से स्वतंत्र है.बंधन किसे पसंद होगा.मेरी समझ में शादी वही है जिसमे मियां बीवी दोनों स्वतंत्रता का अनुभव करें.बंधन का नहीं. पाणिग्रहण का मतलब एक दूसरे का हाथ थामना है, तो ठीक है. 

बाकी "विवाह" और "बिआह" का अर्थ हमारे एक संस्कृत शिक्षक ने बखूबी समझाया था.आप भी समझिये और हंसिये."विवाह" वह है जिसमे लोग 'वाह वाह' करें."बिआह" वह है जिसमे लोग 'आह आह' करें.आजकल ज़्यादा "बिआह" ही होता है. तो भाई अपने गुरूजी की ये परिभाषा हमेशा याद रहती है.

10 साल को याद करने हम साबरमती आश्रम सुबह 9 :30 बजे पहुँच चुके थे.उसके पहले बता दूँ कि होटल हम 8 :30 बजे छोड़ चुके थे.ओला बुक किये और साबरमती आश्रम पहुंचे. साबरमती एक नदी है जिसके किनारे अहमदाबाद शहर है और यह आश्रम भी.प्रशासन की तारीफ़ करनी होगी कि यह पूरी सम्पदा अभी आश्रम जैसी लगती है.इसके मूल बनावट में छेड़ छाड़ कम से कम की गयी है.यहाँ आकर आप अपनी आवाज़ सुनने में सक्षम होंगे. यहाँ आकर गौरैया की चीं चीं, कोयल की कूक,कौआ का काँव काँव,पिहू पिहू की मधुर ध्वनि,अनेक तोते, बंदरों की किट किट से लगाव हो जाना लाज़िमी है.अनेक पक्षियों का कलरव मंत्रमुग्ध कर देता है.

आगे की कहानी चित्रों की ज़ुबानी.



गाँधी आश्रम का मुख्य दरवाज़ा, फोटो साफ़ नहीं आ पाया
यह पत्र पेटिका जो आश्रम के गेट पर लगी है.लिखा है-
"इस पत्र पेटी पर डाले गए पत्रों पर 'चरखा' की विशेष मोहर लगाई जाएगी"   
Gandhi Ashram site map
यहाँ एक म्यूजियम है जिसमे चित्रों और कुछ असल दस्तावेज़ों के माध्यम से गाँधी की जीवन यात्रा समझाई गयी है.
गाँधी जी के तीन बंदरों के साथ बिटिया रानी  


चित्र प्रदर्शनी के शुरुआत में - गाँधी और कस्तूरबा


चित्र प्रदर्शनी


चित्र प्रदर्शनी-दांडी यात्रा-नमक क़ानून तोड़ते गाँधी जी

कुछ चित्र आश्रम की सुंदरता के


सेल्फी
साबरमती नदी.लेकिन सभी नदियों की तरह यहाँ भी नदी गंदी है.
चुन्नू भाई को जगह बहुत पसंद आयी
 गाँधी जी का आश्रम.जहाँ वो मेहमानों से मिलते थे.
इस ईमारत में कस्तूरबा का कमरा, किचेन और गेस्ट रूम भी है.
चरखा चलाने का demo भी यहाँ होता है.

 म्यूजियम से लिए गए कुछ विचार जिनकी वजह से गांधीजी के प्रति मेरा झुकाव हुआ

गाँधी का लोकतंत्र
"मेरी लोकतंत्र की कल्पना ऐसी है कि उसमे कमज़ोर से कमज़ोर को उतना ही मौका मिलना चाहिए जितना कि समर्थ को....आजकल सारे विश्व में  कोई भी देश आश्रयदाता की नज़र के बिना निर्बलों को देखता ही नहीं....पश्चिम के लोकतंत्र का जो स्वरुप आज विद्यमान है वह...हल्का फासीवाद जैसा है....सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाले बीस इंसान नहीं चला सकते, वह तो प्रत्येक गांव के हर इंसान को चलाना पड़ेगा."

आर्थिक न्याय
"इस देश की और सारे विश्व की आर्थिक रचना ऐसी होनी चाहिए कि जिसमे एक भी प्राणी अन्न वस्त्र के अभाव से दुखी न हो ...जैसे कि हवा और पानी पर सबका समान हक़ है या होना चाहिए ...इन पर किसी व्यक्ति ,देश या समूह का एकाधिकार होना अन्याय है" 

असहयोग
"असहयोग एक बेजोड़ और जबरदस्त हथियार है...असहयोग कोई निष्क्रिय अवस्था नहीं है...असहयोग का मूल, द्वेष और बैर नहीं है...एक प्रकार का जिहाद या धर्मयुद्ध है...असहयोग का अर्थ है स्वरक्षण की शिक्षा...वह अपने आपमें एक लक्ष्य है."
आजकल, आप ठीक से समझेंगे तो "असहयोग", "देशद्रोह" जैसा प्रतीत होगा.


सविनय अवज्ञा
"सविनय अवज्ञा विनयहीन या अनैतिक अवज्ञा से उलटी चीज़ है.इसलिए सविनय अवज्ञा उन्ही कानूनों की हो सकती है जो नीति से समर्थित न हों....वह दूसरों के अधिकारों पर आक्रमण नहीं करेगा....इसलिए सविनय अवज्ञा करने वाला हेतुओं का आरोपण नहीं करेगा,बल्कि प्रत्येक प्रश्न की गुण दोष के आधार पर ही जांच करेगा.सविनय क़ानून भंग प्रेम और भाईचारे पर आधारित है." 










आश्रम दर्शन करते करते 12 बज चुके थे. वहां एक बुक शॉप भी है.हमने भी कुछ किताबें खरीदीं.कुछ श्रीमती जी ने भी.बालक ने एक चरखा लिया.इस तरह हमारी साबरमती आश्रम यात्रा संपन्न हुयी.उसके बाद हम मुकुल के घर गए.वहां गप शप, खाना पीना हुआ.चार बजे के आसपास हम लाल दरवाज़ा पहुंचे खाखरा खरीदने लेकिन ज़्यादातर दुकाने बंद थीं.कोई पर्व था मुसलमान भाइयों का शायद इसलिए.मुकुल ने बताया कि इंदुबेन खाखरावाला एक चेन है यहाँ .वहां से ले सकते हो.इन्टरनेट का सहारा लिया,दुकान ढूंढी.खाखरा लिया और 4 :40 तक रेलवे स्टेशन.5 :40 पर नयी दिल्ली राजधानी और सुबह 7 बजे गुडगाँव...

चुन्नू भाई का चरखा ..इसके बिना गाँधी दर्शन अधूरा रहेगा 
गांधीजी का चरखा महज सूत कातने का यन्त्र ही नहीं है,यह आज़ादी का प्रतीक है.गांधीजी की आज़ादी का मतलब सिर्फ अंग्रेजों को भगाना नहीं था.अंग्रेजों भारत छोडो गांधीजी ने 1942 में कहा उसके पहले वो अंग्रेज़ी क़ानून के हिसाब से ही चलते रहे और आंदोलन करते रहे.उनकी स्वतंत्रता मानसिक, सामजिक और आर्थिक थी.चरखा आर्थिक स्वतंत्रता का प्रतीक है.वो जानते थे कि अगर हम अपने मूलभूत चीज़ कपड़ों के लिए भी परतंत्र रहेंगे तो स्वतंत्रता कभी नहीं आ सकती.गाँधी मानस को स्वतंत्र देखना चाहते थे. हर सम्मेलनों में वो कहते रहे, हम जाति पाती , छुआछूत, ऊँच नीच, धार्मिक भेदभाव को जब तक पालते पोसते रहेंगे, स्वतंत्र नहीं हो सकते.
अंग्रेजों से पहले हमें अपने कुरीतियों से लड़ना होगा.
एक किस्सा-गांधीजी पहली बार बिहार गए.जहाँ उनके ठहरने का जहाँ इंतज़ाम था, वहां खाना दो जगह बन रहा था.गाँधी जी ने कारण पूछा.किसी ने बताया एक जगह ऊंची जातियों के लिए और दूसरी जगह नीची जातियों के खाना पक रहा है.गांधीजी व्यथित हो गए.बोले इस तरह से तो हम कभी आज़ादी पा ही नहीं सकते.और भी बहुत कुछ...तो ऐसे थे गांधीजी..

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