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हमारी यात्रा का आखिरी दिन था.2 अक्टूबर, गाँधी/शास्त्री जयंती, मंगलवार. और पहले से तय था कि बस 7 बजे चलेगी.लेकिन पकौड़ियाँ खाते खाते कुछ समय ज़्यादा हो गया और हम चल पाए 7:45 पर. टाइगर लॉज की विशेषता यह है कि यह एक बेहद शानदार लोकेशन पर है. सनराइज देखने के लिए आपको कहीं जाना नहीं पड़ेगा.टाइगर फॉल जाने की पगडण्डी भी ठीक सामने है.तो कुछ फोटोज हम सनराइज के खींचे.नीरज ने हमें पहले ही बताया था कि हम लाखामंडल कम रुकेंगे.उसके रास्ते का आनंद लेंगे और जमकर फोटोग्राफी करेंगे.हम चले और बस थोड़ी ही दूर पर शानदार प्राकृतिक गेंदे का बागान सड़क के दोनों तरफ.अहा..इन नज़ारों के बारे लिखना तो नीरज गुरु जैसे लेखकों का काम है हम तो बस उस अनुभूति से ही आनंदित थे.वहां हम चित्र विचित्र मुद्राओं में फोटोग्राफी किये.
हमारी यात्रा का आखिरी दिन था.2 अक्टूबर, गाँधी/शास्त्री जयंती, मंगलवार. और पहले से तय था कि बस 7 बजे चलेगी.लेकिन पकौड़ियाँ खाते खाते कुछ समय ज़्यादा हो गया और हम चल पाए 7:45 पर. टाइगर लॉज की विशेषता यह है कि यह एक बेहद शानदार लोकेशन पर है. सनराइज देखने के लिए आपको कहीं जाना नहीं पड़ेगा.टाइगर फॉल जाने की पगडण्डी भी ठीक सामने है.तो कुछ फोटोज हम सनराइज के खींचे.नीरज ने हमें पहले ही बताया था कि हम लाखामंडल कम रुकेंगे.उसके रास्ते का आनंद लेंगे और जमकर फोटोग्राफी करेंगे.हम चले और बस थोड़ी ही दूर पर शानदार प्राकृतिक गेंदे का बागान सड़क के दोनों तरफ.अहा..इन नज़ारों के बारे लिखना तो नीरज गुरु जैसे लेखकों का काम है हम तो बस उस अनुभूति से ही आनंदित थे.वहां हम चित्र विचित्र मुद्राओं में फोटोग्राफी किये.
एक घटना और
घटी, हम जहाँ फोटोग्राफी कर रहे थे वो
एक मोड़ था.ऊपर चढ़ती
हुई गाडी दिख
नहीं रही थी.एक गाडी
तेज़ी से ऊपर आयी.सभी
मौज में मशगूल.हालाँकि गाड़ीवाला हॉर्न
बजाते हुए आ रहा था.एकदम से
पास आ गया.झटके में
रोका.फिर समझ आया.भाई
मौज करो लेकिन
थोड़ा देखकर.ढेर सारे चित्र.
चुन्नू बाबू के कैमरे की
बैटरी ख़तम हो गयी और
वो निराश हो
गए.खैर अब ख़तम हो
गयी तो हो गयी.क्या
कर सकते थे.
थोड़ी ही देर
में हम उस जगह आये
जहाँ से बाएं चकराता जाने वाली
सड़क है और दाहिने लाखामंडल
वाली सड़क.हम लाखामंडल की ओर मुड़ चले.
अगला पड़ाव था गौराघाटी .टाइगर फॉल से
गौराघाटी 30 किलोमीटर
है.गौराघाटी सिर्फ
देखकर महसूस किया
जा सकता है.चारों तरफ
से पहाड़ों से
घिरा क्षेत्र.मेरे
मोबाइल की औकात इतनी नहीं
थी कि उसका एक मनमोहक
चित्र निकाल सके.उस घाटी
को देखने के
लिए तो बस विहंग दृष्टि
चाहिए.कुछ फोटो
वोटो लेने के बाद चलने
को हुए.एक हमारे मित्र
की इच्छा हुई
फ़िल्मी स्टाइल में
बस के छत पर यात्रा
करने की.बड़ी मुश्किल से उन्हें
उनके इस ख्याल
के खतरे के बारे में
बताया गया.ड्राइवर
ने तो यहाँ तक कहा-छत पर
ले चलूँगा लेकिन
रस्सी से बांधकर.मंज़ूर है
तो बोलो.अंततः
उन्होंने हमारी बात
समझी और हम आगे बढे.गौराघाटी से लाखामंडल 22 किलोमीटर है.
गौराघाटी से आगे बढ़ते
ही दूर से एक मोड़ दिखा.नीरज ने कहा अब आया जबरदस्त नज़ारा.मैंने कहा मुझे पता है.नीरज
ने कहा - नहीं पता.सच बताऊँ तो जो नज़ारा था उसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी. हिमाच्छादित
चोटी. बेहद खूबसूरत.नजर भरकर देखने लायक.शिखा जी तो इतनी अभिभूत हो गयी थी सभी चलने
को तैयार हो गए तब भी वो उस दृश्य को निहारे जा रहीं थीं.हमारा ड्राइवर परेशान था,
जल्दी में था.कहाँ खो जाती हैं ये मैडम. उसे क्या पता उस अनुभूति को कैमरा तो क़ैद नहीं
कर सकता.यहाँ हमने ढेर सारे फोटो लिए. दीप्ति ने तो "विश्वात्मा" के उस अमर
गाने पर डांस भी किया.
इस दौरान मैंने अपने
पसंद के कुछ गाने बस में बजाये.ज़्यादातर जनता कान बंद करके लहूलुहान हुई जा रही थी.जब
मुझे महसूस हुआ कि ये तो मित्रों के लिए टॉर्चर है तत्काल बंद करने का निर्णय लिया.तो
इस तरह मौज करते गाते गुनगुनाते लाखामंडल के गेट पर पहुंचे.समय था दिन के 11 बजे.पांडव
गुफा का रास्ता गेट से थोड़ा पहले से ही ऊपर की ओर जाता है.पक्की सीढ़ियां बनी हैं.ऊपर
गुफा के पास पानी पीने के लिए नल भी लगा है.गुफाओं में एक मंदिर भी विद्यमान है.थोड़ी
देर वहां बिताकर हम लाखामंडल मंदिर पहुंचे. यह मंदिर आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया
के द्वारा संरक्षित है.ऐसा लिखा था कि पांडवों का लाक्षागृह यही है.लेकिन नीरज का विचार
इससे इतर है.एक लाक्षागृह उत्तर प्रदेश के बागपत में हैं. नीरज का कहना है कि कुरक्षेत्र वहां, इंद्रप्रस्थ
वहां फिर लाक्षागृह यहाँ कैसे. बात में दम है और मैं पूर्णतया सहमत हूँ.यमुनोत्री क्षेत्र
में तो पांडव पश्चाताप की आग में जलते हुए अपने आपको स्वर्ग पहुँचाने आये थे.
थोड़ी देर फोटोग्राफी
और पूजा पाठ के बाद अब पेट पूजा की बारी थी.वहीँ पर पार्किंग में ही एक खाने पीने की
दुकान थी.किसी ने पराठा तो किसी ने मैगी खाई. क़रीब एक बजे हम चल पड़े वापसी की ओर.डॉ
पाठक विकास नगर के क़रीब पहुँच चुके थे.लाखामंडल के बाद लगभग 4 किलोमीटर के बाद यमुना
पार करके हम पहुँचते हैं विकास नगर यमुनोत्री मुख्य मार्ग पर. यमुना पुल से 44 किलोमीटर
पर एक रास्ता बाएं केम्पटी फॉल के लिए चला जाता है. उससे हमें क्या हमें तो विकासनगर
जाना था और उस जगह से महज 10 किलोमीटर आगे मुख्य सड़क पर ही एक शानदार झरना इंतज़ार कर
रहा था.
झरना देखते ही सभी चार्जड. गाडी रोक ले भाई. ड्राइवर बेचारा निराश. आज दिल्ली
पहुँचने में आधी रात होनी तय है.शिखा जी को इंगित करते हुए बोला वो मैडम तो अब ध्यान
लगा लेंगी.गए 45 मिनट. मैंने कहा भाई ऐसा नहीं है.सभी को जल्दी है सब आ रहे हैं टेंशन
न लो. उस झरने की धारा पर सूरज की किरणें इंद्रधनुष बना रहीं थी. झरने के नीचे ढेर
सारी भैसें शान से नहा रहीं थी. उन्हें वन गुज्जर नीचे लेकर जा रहे थे.नीरज ने उनके
मालिक से बातचीत भी की. टाइगर फॉल की तर्ज़ पर इसका नाम बफैलो फॉल रखा गया.नहीं नहीं
ये जम नहीं रहा-रेनबो फॉल ज़्यादा जंचता है.वैसे इसका असली नाम कृष्णा फॉल है.आधा घंटा बिताने के बाद हम आगे बढे.
थोड़े
आगे एक जगह है हथियारी.वहां एक ओशो आश्रम है-ओशो पिरामिड.सुनेजा जी ने सुझाव दिया यहाँ
थोड़ी देर ठहराव का.लेकिन समय की नज़ाकत को देखते हुए हम आगे बढ़ चले. कभी यहाँ से गुज़रे
तो ज़रूर आएंगे. 4:00 बजे के क़रीब हम विकास नगर थे.ड्राइवर की इच्छा थी यहाँ चाय पानी
की.
अरे हाँ भूल गया, उदय
झा जी ने मैसेज किया था लौटते समय समोसे चाय की पार्टी होगी.नीरज से बात कर ली है.आ
जाना.लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि वो खुद लोखंडी जा पहुंचे.और हम एक शानदार चाय समोसे की पार्टी
से वंचित रह गए.
विकास नगर से चलकर हरबर्टपुर
होते हुए जंगल पार करके मिर्ज़ापुर(सहारनपुर) नामक जगह पर हम रुके.कोई नीचे नहीं उतरा.
सिर्फ ड्राइवर चाय पीने उतरा. फिर मैंने भी चाय ली.केले खरीदे. नीरज ने कहा भाई सीधे
गणपति ढाबे पर रुकियो. फिर क्या था छुटमलपुर होते हुए गणपति ढाबा मुज़फ्फरनगर.समय 7:30 शाम.खाना खाये और 10:45 तक ग़ाज़िआबाद.और 11:40 तक ग्रेटर नॉएडा.
इस यात्रा के दौरान सुरा
सेवन करने वाले समाज से कहीं भी सरोकार नहीं रहा.शालिनी जी ने पूछा भी था कि कोई होटल
बताएं जहाँ कि ड्रिंक करने वाले लोग न हों.हम रात में आसमान में सुकून से तारे निहार
सकें.
इस पूरी यात्रा के बाद
नीरज के बारे में मैंने कुछ नोट किया. बातचीत के मामले में नीरज में काफी बदलाव हुआ है जो उनके चाहने वालों के लिए सकारात्मक है.कई लोगों की शिकायतें थीं कि गुरूजी बोलते बहुत कम हैं.ऐसा मुझे भी लगता था.इस यात्रा
में नहीं लगा. मैं तो घर भी गया था तब भी नहीं लगा.20 मिनट तक अच्छी बातचीत हुयी थी.बाक़ी
हम इनके ब्लॉग की भाषा के तो क़ायल हैं ही.
कुछ फोटोज देखिये
सुबह-ए-टाइगर फॉल
सुबह-ए-टाइगर फॉल
सुबह-ए-टाइगर फॉल
सुबह सुबह पहाड़ खिल उठते हैं
सुबह सुबह पहाड़ खिल उठते हैं
ध्यान से देखिये डॉ साहब सेल्फी ले रहे हैं
सड़क किनारे गेंदे ही गेंदे
अब जो शॉट ले रहे हैं वो तो बाद में ही पता चलेगा
रेलगाड़ी - रेलगाड़ी
इन हसीन वादियों से दो-चार नज़ारे चुरा लें तो
गौराघाटी
गौराघाटी के पास
ये है वो शानदार जबरजस्त ज़िंदाबाद नज़ारा
घूर काहे रहे हो बे
इन नज़ारों को तुम देखो और मैं तुम्हें देखते हुए देखूं..
हमारा ड्राइवर - थोड़ी जल्दीबाज़ी में था
बिटिया रानी कभी कभी मुस्कानी
पांडव गुफा की ओर
पांडव गुफा
पांडव गुफा
लाखामंडल मंदिर
लाखामंडल मंदिर
लाखामंडल मंदिर
मंदिर के पास बिटिया को भुट्टे का पौधा देखना था
और ये है वहां के शौचालय का रखवाला.शौचालय के नज़दीक भी फटके तो ज़ोर से चिल्लाता था-१० रुपये लगेंगे.
विकास नगर के रास्ते साथ साथ बहती यमुना
और ये रहा रेनबो फॉल
रेनबो फॉल
हथियारी ओशो आश्रम - पक्का आऊंगा
विकास नगर से पहले
और यहाँ पेट पूजा
-इति यात्रा
शानदार लेखन संजय जी। और फोटो तो कमाल के हैं ही।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मित्रवर
हटाएंमस्त ज़बरदस्त संजय जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रिंकू जी
हटाएंघूर काहे रहे हो बे 😂
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्रवर
हटाएंGajab...
जवाब देंहटाएंDhanyavaad mitr
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