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अपनी इस चकराता
भ्रमण की चरचा जब मैंने
एक सहकर्मी से
की तो उन्होंने
कहा, अरे आप तो सारा
जौनसार घूम कर आ गए.
मेरे लिए यह एक नया
शब्द था. जब पूछताछ की
तो पता चला कि चकराता
को दो हिस्सों
में बांटा जाता
है-जौनसार और
बावर. जौनसार निचला
हिस्सा है और बावर ऊपरी
हिस्सा. चकराता एक
आर्मी कैंटोनमेंट एरिया
है.यहाँ अभी
भी रूल्स रेगुलेशंस
आर्मी से नियंत्रित हैं.नया मकान
बनाने की लगभग मनाही है.मकान में
बदलाव के लिए भी आर्मी
के परमिशन की
ज़रुरत पड़ती है.
लगभग लैंसडाउन की
तरह. चकराता से
आगे का एरिया 2-3 साल पहले तक
एकल दिशा मार्ग
था.मतलब एक टाइम पर
एक ही दिशा में गाड़ियां
चलेंगी.कालसी के
पास एक गेट था जो
सात बजे सुबह
खुलता था.इस गेट को
हर ढाई घंटे
पर खोला जाता
था.और भी पाबंदियां थीं.कालसी
से सहिया 18 किलोमीटर
है और हर गाडी को
इसे 1 घंटे में ही
पार करना होता
था.मतलब अगर
आप चले 7 बजे और
सहिया पहुंचे 7:30 बजे.आपको सहिया
में रुके रहना
पड़ता था 8 बजे तक.कुल मिलाकर
आपकी ऐसी की तैसी.हालाँकि
यह कवायद रोड
काफी पतली होने
के कारन था.अब सड़क
अच्छी है और इस तीन
पांच की ज़रुरत
नहीं. शायद हुक्मरानों
को इस बात का अंततः
पता चला गया और यह
व्यवस्था ख़तम की
गयी.अब कभी भी आओ
कभी भी जाओ.
उत्तराखंड चर्चा पर हमारे
मित्र रतन का कहना है--सरकार
को जितना कोसना
है कोस लो.वो तो
नाकारा है ही.आजतक सारा
ध्यान पहाड़ों को
छोड़कर मैदानी इलाकों
पर ही सरकार
का ध्यान रहा
क्यूंकि ज़्यादातर रेवेन्यू
सिडकुल से ही आता है.और यह
भ्रम भी धीरे धीरे टूटता
जा रहा है.जिन बड़ी
कंपनियों की चर्चा
उत्तराखंड में होती
है उनमे से ज़्यादातर का केवल असेंबली यूनिट है
यहाँ पर.प्रोडक्शन
नाम मात्रा का
है.और जिन जिन का
टैक्स रिबेट ख़तम
होता जा रहा है वो
अब बोरिया बिस्तर
बांधकर जा रही हैं.नेता
और अधिकारी दोनों
को पहाड़ो से
कोई लेना देना
नहीं.विधान सभा
भवन तैयार है
गैरसैण में लेकिन
कोई भी अधिकारी
और नेता देहरादून
छोड़ने को तैयार
नहीं.
इसका एक जीता
जागता नमूना हम
भी देख चुके
हैं कि भटवाड़ी
का SDM उत्तरकाशी में
रहता है.
रतन सिंह आगे
कहते हैं-सिर्फ
सरकार को कोसने
से काम नहीं
चलेगा.गढ़वाली भी
कम कामचोर नहीं
हैं.ये दिल्ली
में जाकर ढाबों
पर बर्तन मांज
लेंगे लेकिन यहाँ
काम नहीं करेंगे.ज़्यादातर महिलाएं ही
हैं जो सारा काम करती
हैं.(कृपया गढ़वाली
मित्र नाराज़ न हों). लेकिन
चकराता इसमें अपवाद
है. विकास नगर
से लोखंडी तक
तुम्हे अच्छी खासी
खेती मिलेगी. समृद्ध
क्षेत्र है चकराता.
और हमने रतन
की बात को सच पाया.हमने शानदार
हरे भरे खेत देखे.लगभग
हर ख़ाली जमीन
किसी न किसी फ़सल से
भरी हुई थी. लोखंडी के
पास तो हमने मटर का
खेत हर जगह देखा था.
हमलोग लोखंडी से
चकराता की ओर चलने वाले
थे. नीरज ने समय निर्धारित
किया था 10 बजे.मैं
अपनी आदत के अनुसार जल्दी
जग गया.बच्चे
भी नहा धोकर
तैयार. बेटी और मैं सड़क
पर रेंग रहे
थे.एक सफ़ेद रंग का
तार पड़ा हुआ था. मैंने
उठा लिया और बेटी खेलने
लगी.तार को तोड़ दिया.
और रोना चालू.
कुछ चुभ गया ऊँगली में.
देखा तो पाया कि यह
एक ऑप्टिकल फाइबर
केबल है.और बहुत बारीक
टुकड़े ऊँगली में
चुभ गए थे.कुछ तो मुझे भी चुभे और 3-4 दिन
में दर्द कम हुआ.वहीं पर एक भाई मिले
बोले इसे बच्चों
से दूर रखिये
कैंसर का खतरा होता है.मुझे खुद 3-4 दिन तक चुभता
रहा, हर चुभन में कैंसर
एक पॉइंट बढ़ता
जा रहा था.अब ठीक
है वरना रोज़
कैंसर का ही ख्याल रहता
था.
जिस भाई भाई
ने हमें उस केबल से
आगाह किया उसके
पास 2 बड़ी बोरी मटर
थी.
मैंने पूछा-ये
कहाँ से लाये?
"अपने खेत से.."
"मटर हो गयी?
कहाँ घर है आपका?"
"ऊँदवा".
ये ऊँदवा वही
है जिसका रास्ता
बुधेर के रेस्ट
हाउस के बगल से जाता
है.
मैंने पूछा-कितना
दूर है?
बोले-घोड़े से
साढ़े तीन घंटे
लगते है.मतलब 10 किलोमीटर
तो होगा ही.
"कहाँ ले जा
रहे हैं?"
"विकासनगर"
"चकराता
नहीं बिकती?"
"नहीं हम तो
विकास नगर ही ले जाते
हैं"
"कैसे ले जायेंगे,
बस से?"
"नहीं, बस चकराता
तक ही जाएगी,कोई और
गाडी जो विकास
नगर जाये"
और उसी समय
चकराता से त्यूणी
की बस लोखंडी
से गुज़री. समय
था सुबह के साढ़े नौ
बजे.
बाकी मित्र नहा
धोकर आ चुके थे और
नाश्ते पर टूट पड़े.पराठे
खाये गए.10:45 पर
लोखंडी से हमारी
सवारी चल चुकी थी.
एक घंटे में
चकराता पहुंचे. सभी
लोगों को राजमा
खरीदना था. बड़ी तारीफ़ सुनी
थी यहाँ के राजमा की.जनता पहुंची
राजमा लेने, मैं
और चुन्नू बाबू
बाजार देखने लगे.इतने में
एक मूर्ती देखी-विकास पुरुष
गुलाब सिंह.उस समय तो
कुछ पता नहीं
था.बाद में पढ़ा वो
एक पॉलिटिशियन थे जो निर्विरोध विधायक
चुने गए थे.कुलमिलाकर उनका निर्विरोध
जीतना ऐतिहासिक घटना
थी.
हमारा आज
का प्लान था
टाइगर फॉल जाने
का और फॉल चकराता से 20 किलोमीटर है.हालाँकि एरिअल डिटेन्स
मात्र 2.5 किलोमीटर है.कभी मौका मिला
तो पैदल जायेंगे.
अपने होटल जो टाइगर
फॉल के पास ही था,
पहुंचे 2:15 पर.भूख
लगी थी.लेकिन
खाना नहीं बना
था. मैंने होटल
वाले से कहा कि कुछ
खाने को हो तो बच्चों
को दे दीजिये.उसने कहा
अपने लिए खाना
बनाया है. अगर आप कहें
तो दे दूँ..लाइए..
फिर क्या था,
चुन्नू मुन्नू जो
करेले के नाम से नफरत
करते हैं करेले
की रसीली सब्ज़ी
रोटी चावल और दाल खाये.हमारे होटल
के आगे मिर्ची
के ढेर सारे
पौधे थे.एक पौधा ऐसा
भी था जिसमे
मिर्ची ऊपर की तरफ थी.मैंने सभी
से उस पौधे का परिचय
कराया.
खाना खाते खाते 4 बज गए. हम लोग 4:30 बजे टाइगर फॉल
के लिए चल पड़े.हमारे
होटल से दो रास्ते थे.
एक ठीक सामने
पगडण्डी जाती थी टाइगर फॉल
की ओर और दुसरी मुख्य
सड़क.डॉ पाठक अपनी गाड़ी
से जाने को तैयार हुए
और बाक़ी जनता
पैदल पगडंडी के
रास्ते.पगडण्डी सड़क
को एक जगह
क्रॉस भी करती है.5 बजे
हम टाइगर फॉल
के क़रीब पहुँच
चुके थे.वहां हमें एक
नाले को पार करना था.लोगबाग जुटे
चप्पल निकालकर पार
कर रहे थे.लेकिन नीरज
ने कहा कि हम
तो पार नहीं
करेंगे.ऐसी जगह से पार
करेंगे जहाँ पानी
कम हो या न हो.पीछे आये..देखा वहां
भी पानी में
पाँव डालना ही
था.फिर क्या
करते जूते निकले
और नाला पार.और चंद
लम्हों में टाइगर
फॉल का अविस्मरणीय
नज़ारा.
मेरा प्लान तो
नहाने का कतई नहीं था.लेकिन टाइगर
की गर्जन करते
हुए जलप्रपात के
पास अपने आपको
जाने से न रोक सके
और बिना नहाये
ही अंदर तक नहा गए.मैंने इतना
शानदार फॉल अभी तक नहीं
देखा था.अपलक निहारते रहे.थोड़ी
देर में बाहर
आये तो देखा बाकी लोग
लौट रहे हैं.क्या करते.थोड़ी देर
और रुकने की
इच्छा का गला घोंटते हुए
हम भी लौट आये.वापसी
में बच्चे डॉ
साहब की गाड़ी से आये.हम तो
फिर उसी रास्ते
से आये.
रात को सड़क किनारे शिशिर
चांदनी रात में सभी का जमावड़ा हुआ.हमारे गुरुवर नीरज अपने कुछ संस्मरण और ज़रूरी ज्ञान
सबमें बांटे. और ये एलान करते हुए कि सुबह 7 बजे बस चल देगी लाखामंडल की ओर, इसलिए सभी 7 बजे तक बस में बैठ जाँय, सभा का विसर्जन किया.फिर भोजन और आराम.. निशांत दंपत्ति ने रात टेंट में गुज़ारने की ख्वाहिश रखी जिसे नीरज ने पूरा भी किया। कुछ चित्र देखिये..
लोखंडी होटल के पास एक पुष्प
लोखंडी होटल के पास दिशा निर्देश
लोखंडी होटल के पास दिशा निर्देश
चकराता में गुलाब सिंह की प्रतिमा
चकराता में
टाइगर फॉल के ऊपर हमारा होटल
होटल के पास एक पुष्प
होटल के पास एक पुष्प
टाइगर लॉज के सामने का दृश्य
टाइगर लॉज के सामने का दृश्य
ये वो मिर्ची का पौधा है जिसके फल ऊपर की ओर हैं-सुना है बेहद तीखे होते हैं.
टाइगर फॉल जाने वाली सड़क
और ये वो जगह जहाँ नाला पार करना था और हमलोगों अपनी चालांकी का परिचय देते हुए पीछे लौट आये.
और वो जगह जहाँ नाला पार करना पड़ा - लौट के बुद्धू घर को आये, सामने धान के खेत हैं
टाइगर फॉल के प्रथम दर्शन
टाइगर फॉल-पानी के छींटे यहाँ तक आ रहे थे. अद्भुत और अविस्मरणीय
और टाइगर फॉल के ठीक सामने-बिना नहाये नहा लिए
लौटते वक़्त नाला पार किये अब भीग चुके थे काहे का डर
लौटते वक़्त नाला पार किये अब भीग चुके थे काहे का डर
लहलहाती फ़सल देखने का सुख
वापसी की राह
यहाँ तक गाडी से आ सकते थे.यहाँ से बच्चे गाडी से गए.
इसके ऊपर सड़क है और मैं सीधे यही से नीचे आ गया.हालाँकि यह खतरनाक था.
वापसी की राह
इनका तो कोई भी पोज़ लो आकर्षक ही होता है.
और टाइगर लॉज वापसी
अगला भाग - पांडव गुफा, लाखामंडल और वापसी
बहुत सुंदर 👍
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबेहतरीन
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