सोमवार, जुलाई 09, 2018

गंगोत्री यात्रा - भागीरथी और गंगोत्री मंदिर

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

चलो जी थोड़ा ज्ञान बघारते हैं.

नदियां पूरी दुनियां में विशिष्ट स्थान रखतीं हैं. दुनिया के लगभग सभी बड़े शहर नदियों के किनारे हैं.लंदन थेम्स के किनारे है. मास्को मॉस्क्वा नदी के किनारे हैं. दिल्ली यमुना तो बनारस गंगा के..लगभग पूरे विश्व में नदियों को बहुत आदर देने की परंपरा रही है.क्यों?उत्तर बेहद आसान है और सभी जानते हैं.दरअसल मानव सभ्यता का विकास ही नदी घाटियों में हुआ. सिंधु घाटी सभ्यता सिंधु नदी के किनारे, मेसोपोटामिया की सभ्यता दजला और फुरात नदियों के बीच में, मिस्र की सभ्यता नील और चीन की सभ्यता ह्वांगहो नदी के किनारे फली फूली. अब इसके कारण की बात करते हैं. मानव जब संगठित रहना शुरू किया और मांस से अनाज खाना शुरू किया तो उसने ऐसी भूमि की तलाश की जो अनाज के लिए उपयुक्त हो पानी की उपलब्धता हो. नदी के किनारे की ज़मीन सर्वाधिक उर्वर होती है और पानी तो था ही. इस तरह लोग नदियों के किनारे जगह जगह रहने लगे.धीरे धीरे सभ्यता का और विकास हुआ लेन देन(व्यापार) की शुरुआत हुई.व्यापार के लिए भी नदियां उपयुक्त थीं.लकड़ी के बड़े बड़े लठ्ठे जो तैरते थे उनपर सामान लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाने लगा.कालांतर में नावों का उपयोग होने लगा.
तो चूँकि नदियां हर तरह से मानव के लिए उपयोगी हैं इसलिए मानव ने उन्हें आदर देना शुरू कर दिया.

अब आते हैं अपनी यात्रा पर - गंगोत्री. यानी गंगा का उद्गम. भारत में पवित्र नदियों में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा इत्यादि हैं.गंगा उनमे सबसे आदरणीय , पूजनीय है क्यूंकि यह भारत के सर्वाधिक मैदानी इलाकों को लाभ पहुंचाती है. पूजा इसलिए क्यूंकि भारत में सम्मान देने का श्रेष्ठतम तरीक़ा पूजा वंदना ही है.हमारे घर में पंडित श्रीराम आचार्य का फोटो है और पिताजी रोज़ उसकी पूजा करते हैं. हालाँकि मेरा नदियों को सम्मान देने का तरीका थोड़ा भिन्न है-नदियों में मल मूत्र त्याग न करें, फूल माला न सड़ायें, लाशें न बहाएं, नाले का पानी न बहाएं, फैक्टियों का अपशिष्ट पदार्थ से नदी को ज़हरीला न बनायें वगैरह वगैरह. पूजा पाठ में मेरी कोई रूचि नहीं.

12 बजे के क़रीब हमलोग नेलांग से गंगोत्री मार्ग पर आ चुके थे और थोड़ी ही देर में गंगोत्री.होटल पहले से बुक था.लोकेशन अल्टीमेट - एकदम भागीरथी के किनारे. हाँ थोड़ा रखरखाव की कमी अवश्य लगी.सबसे पहले तो सबको भूख लगी थी.एकदम से होटल के रेस्टोरेंट पहुंचे और धड़ाधड़ आर्डर दे दिया. होटलवाला अपने काम में लग गया. चूँकि खाना आने में बहुत देर हो रही थी सो मैंने एक चक्कर गंगोत्री मंदिर का भी लगा आया.मंदिर निकट ही था.होटल वापस आया तो अभी तक खाना नहीं बना था.भूख के मारे हाल बुरा.खैर बन्दे ने खाना लगाया और हम टूट पड़े. और फिर आराम. 5 बजे के क़रीब नीरज हम लोगों को सूर्यकुंड ले गए.भागीरथी ग़ज़ब वेग से एक कुंड में गिरती है.उसका कुछ धार्मिक आख्यान भी था वहां लेकिन अपने को उससे कोई लेना देना नहीं.बेहद शानदार नज़ारा  था. घुमते घुमते हम पहुंचे गंगोत्री मंदिर के घाट पर जहाँ लोग भागीरथी में स्नान करते हैं. यहाँ भी हमारे एकमात्र वीर पुरुष अजय जी ने भयंकर ठन्डे पानी से नहाया.मैंने वीडियो भी किया. श्रीमती जी ने भी गंगा जल भरा. भागीरथी का जल वहां पर मटमैला है लेकिन कुछ घंटों बाद बालू नीचे बैठ जाता है और पानी निर्मल हो जाता है.

एक बात और - मैं बार बार भागीरथी भागीरथी बोल रहा हूँ. तो बता दूँ कि उद्गम के पास गंगा का नाम भागीरथी ही है. काफी बाद में देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी एक साथ मिलती हैं और उसके बाद भागीरथी गंगा कहलाती है.

उसके बाद हम पहुंचे सामूहिक रूप से गंगोत्री मंदिर. श्रीमती जी फटाफट मंदिर हो आईं. बाकी जनता भी मंदिर गयी तबतक मंदिर बंद हो चुका था और अनाउंसमेंट हुआ 1 घंटे में खुलेगा. 7 बजे मंदिर तो खुला लेकिन अर्थदान करनेवाले श्रद्धालुओं के लिए.तो निराश सभी जन पंडों को भला बुरा कहते हुए होटल लौटे.

मेरी बस सुबह 5 बजे थी हरिद्वार के लिए. मैं और नीरज गए बस देखने कौन सी बस है.वहां गया तो ड्राइवर बोला ऑनलाइन बुकिंग है क्या. कौन सी सीट है आपकी. अरे रे रे मैंने तो आपकी सीट किसी और को दे दी.चलिए कोई बात नहीं आप सुबह आ जाना उन्हें कहीं और बैठा दूंगा. मतलब ये कि उत्तराखंड परिवहन गंगोत्री होने वाली ऑनलाइन बुकिंग की जानकारी बस कंडक्टर को भी नहीं देता.

चुन्नू मुन्नू ने मोमोस खाने की फरमाइश की. फिर क्या नीरज साहब ने चूनु के साथ साथ अपने लिए मोमोस मंगवाए.मैंने सिर्फ चावल दाल.अजय जी ने थुक्पा और उमेश जी ने बर्गर. उसके बाद सबने गुलाबजामुन भी खाई. आखिर में नीरज के रूम में बैठकर गपशप 11 बजे तक होती रही.सुबह 5 बजे बस पकड़ी और शाम 6 बजे तक हरिद्वार. और हाँ उसी बस से उमेश जी और अजय जी भी आये. बाकी जनता मोटरसाइकिल   वाली थी.
इसबार हम खाते पीते आये और उल्टियां नहीं हुईं. ये हमारी उपलब्धि थी.

हरिद्वार में उमेश जी और अजयजी को दूसरी बस पकड़नी थी.मैंने ट्रेन टिकट बुक किया था हरिद्वार से.१०:५० ग़ाज़िआबाद पहुंचे और १२ बजे तक घर.

इति यात्रा  ...


होटल के रेस्टोरेंट में एक पुष्प - है न बेहद खुशनुमा

गंगोत्री धाम
सीढ़ी के नीचे हमारा कमरा - सामने भागीरथी           
कैसा लगा
सूर्य कुंड
इस धंधे को देखकर तन बदन में आग लग जाती है, बस अभी तक भस्म नहीं हुआ.
भागीरथी में नहाने के घाट
यहाँ धारा बेहद तीव्र है           
नीरज ने बताया बुढेरा यहाँ की जनजाति है 
सायंकालीन आरती वाले भक्त
अजय जी थुकपा के साथ

इस तरह इस यात्रा का शानदार समापन. दूसरे दिन 27 तारीख़ को...    
भटवाड़ी में सुलभ शौचालय
नज़ारे हम क्या क्या न देखें   
ये चित्र कब लिया पता नहीं 

और अंत में सभी मित्रवर को साधुवाद..

6 टिप्‍पणियां: