गुरुवार, दिसंबर 15, 2016

साबरमती आश्रम(अहमदाबाद) यात्रा की प्लानिंग और कार म्यूजियम भ्रमण

बच्चों, महात्मा गाँधी पर लेख लिखो.बचपन में जब स्कूल में बोला जाता तो तत्काल प्रभाव से हम लिखने लगते-महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869  को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था.उनके पिता राजकोट के दीवान थे.उनका पूरा नाम मोहनदास करम चंद गाँधी था.उन्हें हम प्यार से बापू भी कहते हैं.उन्होंने ने हमें सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और अंग्रेजों से आज़ादी दिलाई....वगैरह वगैरह...
तब न तो हमें सत्य का मतलब पता था न ही अहिंसा की परिकल्पना.
थोड़े बड़े हुए तो असहयोग, सविनय अवज्ञा जैसे अबूझ शब्दों से भी पाला पड़ा.इन शब्दों की समझ आते आते उम्र 30 के पर हो गयी.गाँधी जी के बारे में मेरे विचार बदलते रहे हैं.छुटपन में गांधीजी निबंध की चीज़ रहे.हाइ स्कूल के आस पास इतिहास की मजबूरी.
कॉलेज के दिनों में और उसके बाद, गाँधी जी के विरोध की फुसफुसाहट भी सुनने को मिलने लगी.मसलन-"गाँधी जी चाहे होते हो भगत सिंह को फांसी नहीं होती", "गाँधी जी चाहते तो सारे मुस्लिम पाकिस्तान चले जाते", "नाथूराम गोडसे ने ठीक किया" आदि आदि...
इसी दौरान कुछ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक उपन्यास पढ़ने का अवसर मिला.कुछ फिल्मे देखीं.बीबीसी के आर्काइव पढ़े और कुछ पुस्तकें भी.गांधीजी के विचारों को पढना और उन्हें गुनना धीरे धीरे जीवन में आने लगा.उनकी तुलना आज की भारतीय राजनीति से करने लगा और आहिस्ता आहिस्ता "महात्मा" गाँधी से रिश्ता जुड़ने लगा.और अब ये रिश्ता इतना प्रगाढ़ हो गया कि "साबरमती आश्रम" दर्शन की इच्छा बलवती होती चली गयी.

मेरा मन घुमंतू है और श्रीमती जी का भी.शादी की दसवीं सालगिरह के लिए मैंने श्रीमती से साबरमती आश्रम चलने को कहा तो वो फ़ौरन मान गयी.फिर क्या.फटाफट प्लान बन गया.train ticket booked .hotel booked .

आश्रम एक्सप्रेस में टिकट न मिल पाने के कारण हमने अहमदाबाद राजधानी का टिकट बुक किया.अब राजधानी वाक़ई पैसे वालों के लिए हो गयी है.हम जैसे लोग तो बस मजबूरी में जाते हैं.1610  रुपये का टिकट 2300  रुपये का पड़ा.ये कमाल है डायनामिक फेयर प्राइसिंग का.12958 स्वर्ण जयंती अहमदाबाद राजधानी  930 KM 14 घंटे में जाती है.यानी औसत गति 66 किलोमीटर प्रति घंटा.राजधानी के नाम पर कलंक.आम तौर पर किसी भी राजधानी की औसत गति 85 से कम नहीं है.सोने पे सुहागा ये कि अक्सर लेट रहती है.ज़्यादा नहीं एक डेढ़ घंटे.तो ट्रेन पुराण को थोड़ी गति देते हैं.8 :40 रात को आने वाली गाड़ी गुडगाँव आई 9 ;15 पर.जयपुर 1 :30  ,आबू रोड 7 :15 साबरमती सवा दस और अहमदाबाद जंक्शन दस चालीस.गोया पूरा एक घंटा लेट.
इस दौरान मैंने कुछ चीज़ें नोट की.आबू रोड के बाद बहुत सारे एरंडी(castor) के खेत दिखे.बाक़ायदा खेती होती है इधर.हमारे यहाँ तो एरंडी(रेड़) के कुछ लावारिस पौधे ही लोगों को परेशान कर देते हैं.ये निहायत ही उपेक्षित पौधा है.बचपन में इनके बीजों के गंडे गिनते थे हम.एक दूसरे की हथेली फसाकर बीच में रेड़ के बीज रखकर दबाते थे.जिसका टूट गया वो हार गया और 1 गंडा बीज जीतने वाले को देगा.आजकल इसका उपयोग होलिका दहन में किया जाता है.
पिताजी बताते थे कि पुराने ज़माने में ऊंची जातियां दलितों को रेड़ से पीटती थी."रेड़ से पीटना" मतलब अत्यधिक उत्पीडन. आज भी रेड़ से पीटे जाने को भूले बिसरे मुहावरे की तरह प्रयोग किया जाता है हमारे एरिया में.
काम की बात: एरंडी आयुर्वेद के हिसाब से बहुत उपयोगी पौधा है.इसके तेल से बहुत सारी दवाइयां बनाई जाती हैं.हरे पत्ते को जोड़ो के दर्द के निवारक के रूप में उपयोग किया जाता है.Castor Oil किसको नहीं पता.

दूसरी बात, यहाँ राजधानी एक्सप्रेस में लोकल सवारियां खूब चलती हैं.ये आपको राजधानी एक्सप्रेस के पैसेंजर ट्रेन होने का पक्का एहसास करा देंगी.

10:40 पर अहमदाबाद जंक्शन पहुंचकर फटाफट एक ऑटो से 11 बजे तक होटल पहुँच गए.अहमदाबाद जंक्शन को यहाँ के लोग कालूपुर स्टेशन भी कहते हैं.दरअसल पूरा एरिया कालूपुर है.

होटल वाले ने आईडी कार्ड माँगा.मैंने अपना ड्राइविंग लाइसेंस दे दिया.उसे बिहार का ड्राइविंग लाइसेंस पसंद नहीं आया.फिर उसने आधार कार्ड माँगा जो हमारे पास नहीं था.होटल वाले ने कहा की सॉफ्ट कॉपी भी चलेगी मेल कर दीजिये.मैंने मेल कर दिया.नहा धोकर, होटल के ही रेस्टोरेंट से खाना खाकर 1 :30  बजे हम घूमने चले. मौसम थोड़ा गरम था.चुन्नू भाई की इच्छा विंटेज कार म्यूजियम देखने की थी.हमने उन्हें प्राथमिकता दी.एक ऑटो वाले से बात की.उसने OLA बुक करने की सलाह दी.बोला सस्ता पड़ेगा.यहाँ दिल्ली से थोड़ा अलग अनुभव हुआ.खैर हमने ओला बुक की और पहुँच गए विंटेज कार म्यूजियम.2 बज चुके थे.अरे हाँ एक बात  बताना भूल गया.होटल मैंने जानबूझकर कांकरिया लेक के पास लिया था ताकि शाम का आनंद लेक के पास लिया जाय.होटल से म्यूजियम की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है.यहाँ की एंट्री फीस 50 रुपये प्रति व्यक्ति है और कैमरे के लिए 100 रुपये अलग से.
थोड़ा विराम...
सभी हिंदुस्तानी शहरों की तरह अहमदाबाद में भी गाय माता सडकों पर विचरण करते दिखीं.गाड़ी चालकों का मूल मंत्र"गाय हमारी माता है.हमको कुछ नहीं आता है."ट्रैफिक लाइट की धज्जियाँ उड़ाती गाड़ियां हर जगह मिली.दो दिन में सिर्फ आश्रम रोड पर ट्रैफिक रेड लाइट पर रुका मिला.अन्यथा कोई भी कहीं से आपके सामने आने की चुनौती पेश कर देगा.कुल मिलाकर अहमदाबाद की सडकों पर अपनापन सा लगा.
तो चलते हैं कार म्यूजियम.यहाँ सैकड़ों पुरानी गाड़ियां हैं.दुनिया के सारे छोटे बड़े ब्रांड.मर्सिडीज़ ,रोल्स रॉयस, बेंटले और न जाने क्या क्या..बाक़ी आप चित्रों में देखिये.

प्यारी बहना का फोटो चुन्नू भाई ने लिया



कुछ कहानियों में मैंने फिटन पढी थी अब देख भी लिया













बालकों ने टॉय ट्रेन की भी ज़िद की तो उन्होंने उसका भी आनंद लिया.कुल मिलाकर अच्छी जगह है.3 :15 पर हम फुरसत हो लिए.  बहुत कुछ अगले पोस्ट में......

2 टिप्‍पणियां: