(तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूँ मैं...)
आज उसका फोन आया.उसने कहा सिगरेट छोड़ी की नहीं.बस एक दो पी लेता हूँ.उसने कहा दोस्त क्यों मैं तुझे दिखाई नहीं देता.एक बार ध्यान से देख लो.टाटा मेमोरियल कोई अच्छी जगह नहीं है..
आज उसका भी फोन आया था.अब भी रात रात भर जागते हो.अपना छोड़ पता नहीं किस किस का फ़िक्र करते हो.मैंने कहा-क्या करूँ?बाल बच्चों की फ़िक्र किस माँ बाप को नहीं होती.उसने कहा मुझे देखो..पहले अल्सर हुआ फिर कैंसर.टाटा मेमोरियल कोई मजे की जगह नहीं..
कभी उनसे मिला था.बड़े खुश दिल इंसान थे.एकदिन पता चला लकवा मार गया.चलना फिरना बोलना बंद.इलाज़ के बाद भी सबकुछ ठीक नहीं हुआ.एक दिन उनके घर के सामने से गुजरा.सोचा मिलता चलूँ.देखा घर में अकेले हैं.बीवी बच्चे गांव गए हैं.फटा दूध पी रहे थे.मुझे बड़ी कातर नज़रों से देखे.बैठने का इशारा किया.उनके खाने पीने का इंतज़ाम किया.बीवी पंद्रह दिन बाद आयी.खूब लड़ी.तुम कौन होते हो मेरे मिस्टर को खाना खिलने वाले.उनके "अपने" मर गए हैं क्या...एक दिन पता चला-उन्हें मुक्ति मिल गयी और उनकी नौकरी उनकी बीवी को...
वो बड़ी चंचल थी.उम्र 16 -17 के आस पास.उनके मुक्ति मिलने के बाद कोई "अपना" तलाश रही थी.इतने में कोई बदहवास कार आयी ..और उसे अपने पापा के पास ले गयी...
एक दिन आंटी ने कहा - संजय बाबू, मेरी उम्र 72 साल है.कितना दिन जीऊँगी क्या भरोसा.लेकिन याद रखना जिंदगी आज में ही जीना.कभी "अपने" को भी झाँक लेना.कुछ देर अपने लिए भी जी लेना.उसके कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनों का साथ छोड़ दिया.
अक्सर सोचता हूँ अपने लिए जिऊंगा.लेकिन क्या पता था वक्त के बेरहम थपेड़े "अपने" को छिन्न भिन्न कर देंगे और "अपना" बीवी की साड़ियों और बच्चों के खिलौनों के अलावा कुछ नहीं बचेगा...
आज उसका फोन आया.उसने कहा सिगरेट छोड़ी की नहीं.बस एक दो पी लेता हूँ.उसने कहा दोस्त क्यों मैं तुझे दिखाई नहीं देता.एक बार ध्यान से देख लो.टाटा मेमोरियल कोई अच्छी जगह नहीं है..
आज उसका भी फोन आया था.अब भी रात रात भर जागते हो.अपना छोड़ पता नहीं किस किस का फ़िक्र करते हो.मैंने कहा-क्या करूँ?बाल बच्चों की फ़िक्र किस माँ बाप को नहीं होती.उसने कहा मुझे देखो..पहले अल्सर हुआ फिर कैंसर.टाटा मेमोरियल कोई मजे की जगह नहीं..
कभी उनसे मिला था.बड़े खुश दिल इंसान थे.एकदिन पता चला लकवा मार गया.चलना फिरना बोलना बंद.इलाज़ के बाद भी सबकुछ ठीक नहीं हुआ.एक दिन उनके घर के सामने से गुजरा.सोचा मिलता चलूँ.देखा घर में अकेले हैं.बीवी बच्चे गांव गए हैं.फटा दूध पी रहे थे.मुझे बड़ी कातर नज़रों से देखे.बैठने का इशारा किया.उनके खाने पीने का इंतज़ाम किया.बीवी पंद्रह दिन बाद आयी.खूब लड़ी.तुम कौन होते हो मेरे मिस्टर को खाना खिलने वाले.उनके "अपने" मर गए हैं क्या...एक दिन पता चला-उन्हें मुक्ति मिल गयी और उनकी नौकरी उनकी बीवी को...
वो बड़ी चंचल थी.उम्र 16 -17 के आस पास.उनके मुक्ति मिलने के बाद कोई "अपना" तलाश रही थी.इतने में कोई बदहवास कार आयी ..और उसे अपने पापा के पास ले गयी...
एक दिन आंटी ने कहा - संजय बाबू, मेरी उम्र 72 साल है.कितना दिन जीऊँगी क्या भरोसा.लेकिन याद रखना जिंदगी आज में ही जीना.कभी "अपने" को भी झाँक लेना.कुछ देर अपने लिए भी जी लेना.उसके कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनों का साथ छोड़ दिया.
अक्सर सोचता हूँ अपने लिए जिऊंगा.लेकिन क्या पता था वक्त के बेरहम थपेड़े "अपने" को छिन्न भिन्न कर देंगे और "अपना" बीवी की साड़ियों और बच्चों के खिलौनों के अलावा कुछ नहीं बचेगा...
Sanjay Ji... After a long time.
जवाब देंहटाएंgood one