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मंगलवार, सितंबर 17, 2019

नृत्यग्राम - नृत्य सीखने सिखाने का गाँव


अगर आपने ,जो जीता वही सिकंदर, फिल्म देखी होगी तो पूजा बेदी ज़रूर याद होंगी।पूजा बेदी के पिता कबीर बेदी हैं।लेकिन क्या आप जानते हैं उनकी माँ कौन थीं।उनकी मां का नाम है प्रोतिमा बेदी।प्रोतिमा बेदी भारत की मशहूर मॉडल थीं जो बाद में प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना बनीं।आप सोच रहे होंगे कि झाड़ झंखाड़ में विचरने वाला ये दुखी आत्मा नाच गाने की बात कैसे करने लगा।

तो क़िस्सा कुछ यूँ है कि...

मुझे नृत्य में कुछ खास दिलचस्पी कभी नहीं रही।बहुत छोटा था तब गाँव में लवंडा नाच देखने को मिलता था।यह नाच न तब मुझे पसंद आता था न अब।अलबत्ता जब धोबी नाच में धुधुकी के ताल और "सुपवा चलनिया कठवतिया ए बालम" के धुन पर जब उनका विदूषक नाचता था तब मजा आ जाता था और हम लोटपोट हो जाते थे।
छठी क्लास में जब शहर आये तब सरकारी स्कूलों में नृत्य कला नामक कोई चीज़ नहीं होती थी।आठवीं नवीं आते आते कुछ प्राइवेट स्कूल शहर में दस्तक दे चुके थे और उनका मुख्य आकर्षण पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी और सरस्वती पूजा के दिन होने वाला रंगारंग कार्यक्रम होता था।तब हमें भी उस रंगारंग कार्यक्रम का इंतज़ार रहता था।अपने स्कूल में "वर दे वीणा वादिनी वर दे" को निपटाकर और लड्डू खाते हुए किसी दूसरे स्कूल पहुँच जाते थे और नाच गाने का आनंद उठाते थे।"चुनमुनिया के माई, लइका लईकी दूनू पढाई", गीत पर थिरकते और इठलाते बालक बालिका भाव विभोर कर देते थे।

ग्यारहवीं बारहवीं का काल कला की दृष्टि से बहुत बोरिंग रहा।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में आकर थोड़ी हरियाली आयी।

‌बनारस में संकट मोचन मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर पर एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है जहाँ देश विदेश के दिग्गज कलाकार, नर्तक, गायक, संगीतकार शिरकत करते हैं।एकदिन मेरे मित्र ने कहा आज संकट मोचन चलते हैं कुछ गाना बजाना देखा जाय।जब पहुंचे तो पता चला मंदिर के प्रांगण में घुसने की भी जगह नहीं।बाहर बड़ी बड़ी टीवी स्क्रीन लगीं थीं उसी में लाइव प्रोग्राम देख सकते थे। घोर निराशा के साथ लंकेटिंग(BHU गेट के पास के क्षेत्र लंका का बेवजह भ्रमण और नयन सुख लाभ) के लिए चल पड़े।जब रात गहराई तो एक बार फिर संकट मोचन गए।भीड़ छंट चुकी थी और वहां कोई नृत्य चल रहा था।पहली बार मैंने एक ऐसा नृत्य देखा जिसमे आँखें बोलती थीं।अंग प्रत्यंग की मुद्राएं भाव प्रदर्शन में सक्षम थीं।और वो नृत्य था ओडिसी।तब से मेरा ओडिसी से जान पहचान है।और बस जान पहचान ही है।
‌गूगल में एक दिन सर्च किया, "attraction within 50 kilometer"(पचास किलोमीटर के अंदर दर्शनीय स्थल)।कई नामों में एक नाम आया - नृत्यग्राम।नृत्यग्राम का गूगल रिव्यु देखा।ज़्यादातर लोगों ने शानदार कहा।कुछ निगेटिव रिव्यु भी थे।उनमें से ज़्यादातर ये थे कि रेसिप्शन पर बैठी बुढ़िया बड़ी खडूस है और कब नृत्यग्राम बंद मिले ये भी कह नहीं सकते।लेकिन ये सभी ने लिखा था कि वहां तक पहुंचने वाला रास्ता बेहद रमणीक है।मेरे यहाँ से दूरी 27 किलोमीटर गूगल बाबा ने बताया और साथ ही बताया एक घन्टा लगेगा जिसे मैंने मन ही मन डेढ़ घंटे कर दिया।
क़रीब 9 बजे हमारी सवारी चल पड़ी।यलहंका थाने से डोड्डाबल्लापुरा जाने वाली सड़क पकड़ी और CRPF हेडक्वार्टर से बाएं मुड़े।यह एक पतली सी बेहद घुमावदार सड़क है जिसके हर मोड़ पर बड़े बड़े शीशे लगे हुए हैं ताकि आपको पता चले कि सामने से भी कोई गाडी आ रही है।यह सड़क IIHR रोड कहलाती है।IIHR का मतलब इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर रिसर्च।इस रोड पर भारत सरकार के दो बेहद उत्कृष्ट संस्थान हैं।IIHR के बागान सड़क के दोनों तरफ हैं और शानदार दृश्य रचते हैं।बैंगलोर जैसे भयानक ट्रैफिक वाले शहर में एक ऐसी सड़क जिसपर ट्रैफिक नगण्य हो और दोनों तरफ अंदर तक तर कर देने वाली हरियाली हो।और क्या चाहिए।हमारा आना सफल हो चुका था भले ही नृत्यग्राम बंद मिले।

‌इस एरिया का नाम हेस्सरघट्टा है।हेस्सरघट्टा एक बड़ी झील भी है।झील के रास्ते में थोड़ा सा पहले सड़क बायीं ओर घूम जाती है और एक बेहद सूनसान हरी भरी लहराती हुई सड़क का रूप ले लेती है।इस सड़क पर 10 बजे दिन में भी कोई नहीं था और दोनों तरफ झाड़ियां थीं।लग ही नहीं रहा था कि यहाँ कुछ हो भी सकता है।अंदर थोड़ा डर भी था।तभी एक बोर्ड दिखाई दिया गवर्नमेंट फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट।फिर लगा यहाँ कुछ तो है।नृत्यग्राम का बोर्ड भी लगा था।ये बात पक्की थी गूगल बाबा सही दिशानिर्देश कर रहे हैं।

‌10 बजकर 15 मिनट पर हम नृत्यग्राम के गेट पर थे।

‌नृत्यग्राम गुरु शिष्य परंपरा की तरह चलने वाला एक ओडिसी नृत्य का स्कूल है।विशेष जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है।संक्षेप में मैं यहाँ जानकारी साझा करूंगा।प्रोतिमा बेदी की एक बार मॉडल शूटिंग थी लेकिन गलती से ओडिसी नृत्य के ऑडिटोरियम में पहुँच गयीं।उन्होंने दो लोगों को ओडिसी नृत्य करते देखा और वो उसमें खो गयीं।उन्हें लगा यही हैं मेरी मंज़िल जिसकी मुझे तलाश थी।उन्होंने मॉडलिंग छोड़ दी, गुरु केलुचरण महापात्रा से ओडिसी सीखने लगीं और एक विख्यात ओडिसी नृत्यांगना के रूप में उनका पुनर्जन्म हुआ। उन्होंने नृत्य सीखने सिखाने की गुरु शिष्य परंपरा के तहत एक 'नृत्यग्राम' की स्थापना की।कर्नाटका सरकार ने उनके इस विशिष्ट कार्य के लिए ज़मीन लीज़ पर दी।10 एकड़ में फैला यह गाँव एक विशिष्ट शैली के स्थापत्य कला के लिए दर्शनीय है। कालांतर में उन्होंने नृत्य भी छोड़ दिया और अपना सारा कुछ मशहूर ओडिसी नृत्य कलाकार सुरुपा सेन को सौंप कर हिमालय भ्रमण के लिए निकल गईं।अपने हिमालय भ्रमण के दौरान ही वो लैंडस्लाइड के चपेट में आ गईं और उनकी मृत्यु हो गयी।

‌जब हम पहुंचे तो गेट पर 2 कारें भी थीं जो यहाँ भी कोई आता है का सबूत दे रहीं थीं।एक छोटा सा बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है कि पहले ऑफिस जांय।जब गेट के अंदर घुसे तो एक छोटा मंदिर जैसा दिखा जो बाद में पता चला कि गुरु केलुचरण महापात्रा के स्मृति में बनवाया गया।पूरा परिसर ऐसा लगता है जैसे किसी सैकड़ों साल पुराने गाँव में आ गए हैं जिनकी इमारतें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहीं है।इमारतों का यह डिज़ाइन भारत के जाने माने आर्किटेक्ट गेरार्ड दा कुन्हा  ने किया था।1990 में इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने किया था।यह सम्पूर्ण परिसर हराभरा तो है ही, शांति इतनी की आप अपने पदचाप भी सुन सकें।आफिस पहुंचे।एक महिला बैठीं थी।उन्होंने बताया कि प्रति व्यक्ति 100 रुपये देने होंगे।बच्चों की एंट्री फ्री है।जहाँ भी नृत्य के रिहर्सल चल रहे हैं उनका फोटो लेना मना है।इसलिए हम यहाँ एक भी फोटो नृत्य का नहीं लगा पाएंगे।
आगे बढे तो एक हॉल में सुरुपा सेन 4 नर्तकियों को सिखा रहीं थीं। हमें बहुत अच्छा लगा और हम बैठकर लगभग 20 मिनट तक देखते रहे।इस स्कूल की खूबी यही है कि आप नृत्य देख सकते हैं।बस उनका फोटो रिकॉर्डिंग मना है।जूते पहने सकते हैं लेकिन जूते पहनकर डांस फ्लोर पर नहीं चढ़ सकते।डांस फ्लोर अच्छे हैं।वहाँ पहुंचकर आप देख समझ पाएंगे कि नृत्य में एक एक शब्द की भाव मुद्रा कितनी मेहनत होती है।हम 20 मिनट तक "पंकज लोचन" शब्द पर आँखें कैसी होनी चाहिए, ये देखते रहे।वैसे ही क़रीब 10 मिनट तक "अद्भुत" शब्द पर नृत्य देखते रहे।कोई भी कला सीखने में कैसे उम्र गुजर जाती है एक झलक वहां देखने को मिला।वहां चार हॉल हैं और एक एम्फी थिएटर है।यह पूरी तरह एक आवासीय विद्यालय है।

‌इंटरनेट पर मिली जानकारी के अनुसार नृत्यग्राम अभी फण्ड की कमी जूझ रहा है इसलिए ओडिसी छोड़कर किसी भी नृत्य की शिक्षा अभी नहीं दी जा रही।योजना ओडिसी के साथ भरतनाट्यम, कथकली, कत्थक, मणिपुरी की शिक्षा की भी थी।आर्थिक मदद के लिए इसके कुछ हिस्से को होटल ताज ने एक रिसोर्ट की तरह विकसित किया था।उसका नाम "कुटीरम" है।अभी वह बंद मिला।शायद वो भी ठीक से चल नहीं पा रहा होगा।

‌हम वहां साढ़े बारह बजे तक आनंद विभोर हुए।वापस आते समय हेस्सरघट्टा झील भी गए लेकिन उसमें पानी बिलकुल नहीं था।इस साल बंगलोर में बारिश न के बराबर हुई है इसलिए सारे झरने सूखे हुए और झीलें भी।

‌फोटो लेते हुए खाते पीते ढाई बजे तक घर वापिस आ गए।

अब कुछ तस्वीरें देखिये


कुछ जगहें जहाँ फोटोग्राफी की जा सकती है.इसलिए यह फोटो आपको इंटरनेट पर हर जगह मिलेगा. 

गेट के पास लगा बोर्ड - ज़रूरी जानकारी
गेट के पास  

केलुचरण महापात्रा स्मृति मंदिर

ऑफिस के पास



सभी जगह ऐसे ही रास्ते हैं 




वहां बड़े बड़े पेड़ थे जिनमे ये फूल थे.नाम नहीं मालूम


एम्फीथिएटर

यहाँ एक कुआँ था.मजेदार बात एक तरफ घंटी एक तरफ बाल्टी.समझो..    


वहां शरीफे के पौधे भी थे..


शरीफा या सीताफल

वापसी  , गेट के पास

केलुचरण महापात्रा

गेट के सामने कुटीरम रिसोर्ट.एक नोटिस लगा था अगली सूचना तक बंद रहेगा. 

वहां तक जाने वाली सड़क

यही वो बोर्ड था जिसे देखकर हम समझे हम सही रास्ते पर हैं.

दो नहीं - चार बकरियां  

सर्वत्र सड़कें ऐसी ही हैं 

हेस्सरघट्टा झील की एंट्री.

झील पूरी तरह सूखी पड़ी है. 

IIHR रोड

IIHR

IIHR के बागान

IIHR रोड

और आखिर में IVRI
 - इति यात्रा